Rourkela News: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला के शोधकर्ताओं ने जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर प्रो. अंगना सरकार के मार्गदर्शन में काम करते हुए अपशिष्ट जल में फार्मास्यूटिकल के प्रदूषक तत्वों की रोकथाम की प्रक्रिया विकसित की है। दो चरणों की इस प्रक्रिया में एडजार्प्शन और बायोडिग्रेडेशन को जोड़ा गया है, ताकि एंटीबायोटिक्स, गैर-स्टेरायडल एंटी- इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (एनएसआइडी) जैसे फार्मास्युटिकल कम्पाउंड और सिंथेटिक रंगों के प्रदूषक तत्वों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का समाधान हो. यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ वॉटर प्रोसेस इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया गया था. प्रोफेसर अंगना सरकार ने अपनी शोध टीम डॉ कस्तूरी पोद्दार, डॉ देवप्रिया सरकार (शोध स्नातक) और प्रीतम बाजीराव पाटिल (शोध विद्वान) के साथ संयुक्त रूप से यह शोध पत्र लिखा है.
पूरी तरह से फिल्टर नहीं हो पाते सभी रसायन
अक्सर सॉल्वैंट्स, एपीआइ, एडिटिव्स, बाय-प्रोडक्ट्स और इंटरमीडिएट्स सहित फार्मास्युटिकल उत्पादन में उपयोग किये जाने वाले सभी रसायन पूरी तरह से फिल्टर नहीं हो पाते. मछली, सीप और पक्षियों जैसे जीवन के निचले स्तरों पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखे गये हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में मछली की मृत्यु दर और बाज और गिद्धों की आबादी में गिरावट जैसे मामले सामने आये हैं. इन प्रदूषक तत्वों का मनुष्यों के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा है. खास कर किडनी और लीवर की समस्या, उच्च रक्तचाप और विकास संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. अपशिष्ट जल में एंटीबायोटिक्स की मौजूदगी तो विशेष चिंताजनक है. इसकी वजह बड़ी मात्रा में इनका अपरिवर्तित उत्सर्जन होना है, जिसके चलते एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया बढ़ रहे हैं. अपशिष्ट जल उपचार की वर्तमान विधियां इन प्रदूषकों की रोकथाम में नाकाम दिखती हैं. इसलिए ये प्रदूषक तत्व नदियों, झीलों और भूजल में अपनी पैठ बना चुके हैं.
एकीकृत उपचार प्रक्रिया विकसित की
एनआइटी राउरकेला अनुसंधान दल ने इन चुनौतियों के समाधान के लिए एक एकीकृत उपचार प्रक्रिया विकसित की है. दो चरणों की यह प्रक्रिया फार्मास्युटिकल के प्रदूषक तत्वों से निबटने में प्रभावी रही है. पहले चरण में भुने हुए कोको पीट और चावल के भूसे से प्राप्त बायोचार एडजॉर्बेंट का उपयोग कर एंटीबायोटिक्स को पकड़ा जाता है. इस चरण में जैविक उपचार चरण से पहले एंटीबायोटिक प्रदूषण काफी कम हो जाता है. दूसरे चरण में क्लेबसिएला और स्यूडोमोनास स्ट्रेन सहित एक विशेष बैक्टीरिया समूह का उपयोग करते हुए डिक्लोफेनाक, पैरासिटामोल जैसी दवाओं के कम्पाउंड और सिंथेटिक रंगों के अवशिष्ट खंडित किये जाते हैं. सिंथेटिक अपशिष्ट जल जिसमें एनएसएआइडी, एंटीबायोटिक्स और फार्मास्युटिकल के रंग सभी मिले होते हैं, वहां इस प्रक्रिया में प्रदूषक तत्वों के निष्कासन की उत्कृष्ट क्षमता दिखी. इसमें फार्मास्युटिकल के रंगों और दर्द निवारक दवाओं की बायोडिग्रेडेशन क्षमता 95 प्रतिशत से अधिक थी. बायोचार एडजॉर्प्शन की प्रक्रिया भी बहुत प्रभावी साबित हुई. यह पानी से 99.5 प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक्स हटाने में सक्षम पायी गयी.
विषैले इंटरमीडियरी का उपयोग नहीं होने से पूरी प्रक्रिया है सुरक्षित
एनआइटी राउरकेला में जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर प्रो अंगना सरकार ने इस अनुसंधान का महत्व बताते हुए कहा कि हमारी नवीन एकीकृत प्रक्रिया एंटीबायोटिक्स, एनएसआइडी और रंगों सहित विभिन्न फार्मास्युटिकल प्रदूषक तत्वों के निष्कासन में सफल रही है. यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है क्योंकि इसमें जैविक पद्धतियों का उपयोग किया गया है और किसी विषैले इंटरमीडियरी का उपयोग नहीं किया गया है. इस प्रक्रिया से बायोडिग्रेडिंग बैक्टीरिया सुरक्षित रहते हैं, विषैले बायप्रोडक्ट कम होते हैं और फार्मास्युटिकल के प्रदूषक तत्वों के पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है. वर्तमान में इस ट्रीटमेंट पर लगभग 2.6 रुपये प्रति लीटर का खर्च है, जो और कम होगा. इसके लिए प्रक्रिया का अनुकूलन करना होगा और इसे ट्रीटमेंट की वर्तमान व्यवस्था में तृतीय चरण के रूप में एकीकृत करना होगा. इस बारे में शोधकर्ताओं के सुझाव के अनुसार यह प्रक्रिया गैर विषैली, सतत उपयोगी और लागत प्रभावी है. निकट भविष्य में ही फार्मास्युटिकल उद्योगों के सहयोग से इसके व्यापक उपयोग की संभावना दिखती है.
नहीं रहेगी अतिरिक्त चरणों की आवश्यकता
इस मॉडल का फार्मास्युटिकल कंपाउंड के साथ कार्य प्रदर्शन समान संरचना वाले अन्य अणुओं पर भी लागू किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त, अपशिष्ट जल के मानक उपचार के माध्यम से यह ट्रीटमेंट करने से बैक्टीरिया और ठोस अवशेषों के निष्कासन के लिए अतिरिक्त चरणों की आवश्यकता नहीं रह जायेगी. इसके भावी अध्ययन में बायोचार से अवशोषित एंटीबायोटिक दवाओं को पुनः प्राप्त करने और शुद्ध करने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है. इस तरह एक मूल्यवान संसाधन मिलेगा, जो लाभदायक हो सकता है और जिससे फार्मास्युटिकल उत्पादन की लागत कम हो सकती है और दवाओं को अधिक किफायती बनाते हुए वंचित समुदायों के लिए सुलभ बनाया जा सकता है. इसके अतिरिक्त एंटीबायोटिक-मुक्त बायोचार का बतौर उर्वरक एक नया उपयोग संभव हो सकता है, जिससे शून्य-अपशिष्ट प्रक्रिया का लक्ष्य भी पूरा होगा.
मनुष्य और जल जीवन की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है लक्ष्य
इस प्रोजेक्ट का वित्त पोषण विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (इम्प्रिंट-2: अनुसंधान नवाचार और प्रौद्योगिकी का प्रभावीकरण, भारत सरकार की योजना के तहत) ने किया और यह अनुसंधान कैडिला फार्मास्युटिकल लिमिटेड, अहमदाबाद, भारत के सहयोग से किया गया. हाल में विकसित दो चरणों की इस प्रक्रिया में अपशिष्ट जल में फार्मास्युटिकल के प्रदूषक तत्वों की रोकथाम के लिए बायोचार एडजार्प्शन और बायोडिग्रेडेशन को आपस में जोड़ा गया है, इस नवाचार का लक्ष्य फार्मास्युटिकल के प्रदूषक तत्वों की बढ़ती समस्या की रोकथाम के लिए स्थायी समाधान पेश कर मनुष्य और जल जीवन दोनों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है.
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