Youths of Kolhan Bringing Change| जमशेदपुर, ब्रजेश सिंह : युवा किसी भी समाज, राज्य या देश में बदलाव के मुख्य वाहक होते हैं. ऊर्जा से भरपूर युवा ही समाज को नयी दिशा देने का सबसे बड़ा औजार होते हैं. कोल्हान के ऐसे ही तीन युवा हैं, जो अपने आसपास के इलाकों में जागरूकता के माध्यम से बड़े बदलाव करने में लगे हैं. ये लोगों की सोच बदलकर देश को सशक्त बनाने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं. तीनों युवा झारखंड के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित इलाके पश्चिमी सिंहभूम जिले के नोवामुंडी के हैं. इन्होंने ये बदलाव खुद और अपने घर से बदलाव की शुरुआत की और अपने साथ कारवां जोड़ लिया. खनन क्षेत्र में जहां सबसे ज्यादा गरीबी, अशिक्षा, बाल विवाह समेत अन्य कुरीतियां हैं, उसको रोकने में ये तीनों अहम योगदान दे रहे हैं.
- पश्चिमी सिंहभूम के नक्सल प्रभावित नोवामुंडी के 3 चेंजमेकर यूथ लोगों की बदल रहे सोच
- खनन क्षेत्र में बाल विवाह, शिक्षा, पेड़ की कटाई और नशा रोकने के लिए चला रहे मुहिम
बाल विवाह की परेशानियों का सामना किया, तो लिया ये ‘संकल्प’
नोवामुंडी के दुकासाई निवासी प्रेमनाथ सोलंकी तंगहाल परिवार में पले-बढ़े. बाल विवाह के कारण होने वाले संघर्षों को प्रत्यक्ष रूप से देखा. कई वर्षों तक स्वास्थ्य समस्याओं, वित्तीय बोझ और भावनात्मक तनाव का सामना किया और उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए बहुत कम या कोई मदद नहीं मिली. गांव के युवा संसाधन केंद्र (वाइआरसी) के 10 अन्य लोगों के साथ प्रेमनाथ ने 700 ग्रामीणों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए नुक्कड़ नाटक (स्ट्रीट प्ले) शुरू किया. उन्होंने अपने दोस्त की शादी रुकवा दी, क्योंकि लड़की नाबालिग (16 वर्ष) थी.

वर्ष 2018 में प्रेमनाथ ने टाटा स्टील फाउंडेशन के ध्वनि प्रोजेक्ट में भाग लिया और ‘संकल्प’ का गठन किया, जो 12 सदस्यों का एक समूह है. ‘संकल्प’ बाल विवाह, नशा, शिक्षा और स्वच्छता पर 400 लोगों को शिक्षित कर चुका है. 21 वर्षीय प्रेमनाथ नोवामुंडी में टाटा स्टील गेस्ट हाउस में काम करते हैं और स्नातक की पढ़ाई भी कर रहे है. यहां उन्हें हर महीने 14000 रुपये मिलते हैं. साथ ही, हो भाषा में संगीत को बढ़ावा देने और अपनी विरासत को संरक्षित करने के लिए यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं. अब कोल्हान में बाल विवाह पर रोक लगाने के ब्रांड एंबेसडर बन चुके हैं.
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ड्रॉपआउट बच्चों को पहुंचा रहे स्कूल, सिखा रहे डिजिटल कौशल
नोवामुंडी के ही नरेश मुंडा ने वर्ष 2018 में गांव के युवा संसाधन केंद्र (वाइआरसी) के साथ काम करना शुरू किया. वित्तीय संघर्ष, कम उम्र में शादी और नशे की लत के कारण बच्चों को स्कूल छोड़ते देखा, तो इन समस्याओं को सुलझाने का बीड़ा उठा लिया. लगातार प्रयासों और परिवारों के साथ चर्चा के माध्यम से उन्होंने सफलतापूर्वक पांच बच्चों को फिर से स्कूल पहुंचाने में सफलता हासिल की.

नरेश ने युवा संसाधन केंद्र में बच्चों को डिजिटल कौशल भी सिखाना शुरू किया. वर्ष 2019 में जीवन संतुलन और टीम वर्क पर ध्वनि सत्रों ने उन्हें प्रेरित किया, जिससे उन्हें और अधिक जिम्मेदारियां लेने के लिए प्रेरित किया. नरेश ने शौचालयों के उपयोग के माध्यम से स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए एक अभियान शुरू किया. 150 लोगों को इसके महत्व को लेकर शिक्षित किया. उन्होंने चार बाल विवाहों को रोकने के लिए भी पहल की. आज नरेश एक निजी कंपनी में 11,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर रहे हैं.
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बायोगैस के उपयोग के लिए ग्रामीणों को किया जागरूक, वनों की कटाई रोकी
स्व-प्रेरित युवा नोवामुंडा के सियालीजोड़ा निवासी हेमंत होनहागा 16 वर्ष की आयु से ही सामाजिक परिवर्तन पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. वे अपने शिक्षकों के साथ मिलकर घर-घर जाकर स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के माता-पिता को उन्हें फिर से स्कूल भेजने के लिए राजी करना शुरू किया. वे कार्यशालाओं के माध्यम से माता-पिता और छात्रों के साथ जुड़ते हैं तथा शिक्षा से मिलने वाले अवसरों को साझा करते हैं. हेमंत शिक्षा के प्रति समग्र दृष्टिकोण में विश्वास रखते हैं, क्योंकि वे 2015 से व्यक्तिगत रूप से 15 बच्चों को प्रदर्शन कलाओं का प्रशिक्षण दे रहे हैं, जो अब आसपास के गांवों में विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

इसके माध्यम से उन्होंने समुदाय के सदस्यों को शराब, वनों की कटाई के दुष्प्रभावों को साझा करने और उन्हें विकल्पों के बारे में शिक्षित करने के लिए प्रेरित किया है. उन्हें लगता है कि एक विकसित राष्ट्र को सामाजिक परिवर्तन लाने और चुनौतियों से निबटने के लिए ज्ञान और अवसरों से लैस पुरुषों और महिलाओं की आवश्यकता होती है. ‘दान घर से शुरू होता है’ कहावत को चरितार्थ करते हुए हेमंत ने अपनी बहन की शिक्षा को बढ़ावा दिया और गांव के कई अन्य परिवारों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया. इतना ही नहीं, बायो गैस के लिए पेड़ों पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से हेमंत ने अपने गांव के 16 अन्य युवाओं के साथ मिलकर ‘अभिमान’ नाम से एक समूह बनाया, जो गांव के लोगों के घरों में गैस स्टोव पहुंचाने में मदद करता है. हेमंत का मुख्य उद्देश्य जंगलों की रक्षा करना है, जिसमें उनका समूह भी शामिल है, जो नियमित रूप से जंगलों के बाहरी इलाकों, खासकर नदियों का किनारा और प्लास्टिक कचरे की सफाई करते हैं. हेमंत और उनकी टीम चुपचाप हरियाली और स्वस्थ ग्रह की दिशा में अपना योगदान दे रही है.
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