खेती से नाउम्मीद पुराना चाईबासा के कई किसान अन्य काम में जुट गये
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सिंचाई व संसाधनों के अभाव में किसानों का खेती से मोह भंग
खेती से नाउम्मीद पुराना चाईबासा के कई किसान अन्य काम में जुट गये ग्रामीणों की चौपाल में विभिन्न समस्याओं पर बेबाकी से हुआ विचार-विमर्श पुराना चाईबासा में एक भी सिंचाई कुआं नहीं होने से किसान परेशान चाईबासा : गर्मी का प्रकोप जारी है. नदी, नहरें सूख गयी हैं, तालाबों में पानी नहीं है और गांवों […]
ग्रामीणों की चौपाल में विभिन्न समस्याओं पर बेबाकी से हुआ विचार-विमर्श
पुराना चाईबासा में एक भी सिंचाई कुआं नहीं होने से किसान परेशान
चाईबासा : गर्मी का प्रकोप जारी है. नदी, नहरें सूख गयी हैं, तालाबों में पानी नहीं है और गांवों में आबादी के हिसाब से ट्यूबवेल नहीं हैं. ऐसे में खेतों की सिंचाई कैसे होगी साहब, अब खेती पहले जैसी नहीं रही. खेती महंगी हो गयी है. सरकार योजनाएं चला रही है, लेकिन वे योजनाएं सरकारी फाइलों तक ही सिमट कर रह जाती है. कृषि अनुदान का लाभ किसानों को नहीं मिल पाता. ये कहना है सदर प्रखंड के मातकमहातु पंचायत के पुराना चाईबासा के किसानों का. ये बेबाक राय किसानों ने हाल ही गांव में आयोजित एक चौपाल के दौरान रखी. विकास के दावों के साथ आज देश भले ही सूचना क्रांति व डिजिटल तकनीक की दुनिया में कदम रखा चुका है,
जहां गांवों को भी शहरों की तरह हाइ टेक्नोलॉजी युक्त सुविधाओं से जोड़ने की बात भले की जा हरी हो, लेकिन वास्तविक रूप में किसान आज भी इन सबसे बहुत पीछे हैं.
किसानों का कहना है कि देश के विकास की कड़ी में अहम भूमिका निभानेवाले तथा दिन रात अपने खून पसीने से फसलों को सींचकर अनाज पैदा करनेवाले किसान आज भी बदहाल हैं. सरकारें बदलती रहीं, योजनाएं बनती रहीं, लेकिन किसानों की दशा में अबतक कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया. नतीजा कृषि संकट के साथ बढ़ती महंगाई की दोहरी मार से जूझते किसान धीरे-धीरे खेती से विमुख होते जा रहे हैं. सिंचाई की सुविधा के अभाव में कृषि-कार्य से किसानों का मोह भंग होता गया, जिसके कारण अधिकतर किसान अब खेती छोड़ दूसरे रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. प्रखंड के अधिकांश कुएं मिट गये हैं. जो बचे हैं, उनका अस्तित्व भी मिटने के कगार पर है. ऐसे में पटवन के लिए मॉनसून के अलावा निजी बोरिंग ही एकमात्र विकल्प है, लेकिन पूंजी के अभाव में किसान बोरिंग भी नहीं करा पाते.
डीजल व कृषियंत्रों की बढ़ती कीमतें कमर तोड़ रहीं
डीजल व कृषि यंत्रों की बढ़ती कीमतें किसानों की कमर तोड़ रही हैं. किसानों ने बताया कि गांव में एक भी कुआं नहीं है. सिंचाई के अभाव में हर साल फसलें बर्बाद हो जाती हैं. यह गांव रोरो नदी से सटा है. किसानों का मनना है कि यदि सरकार पाइपलाइन की व्यवस्था करा दे तो पुराना चाईबासा के गांवों के लिए काफी सुविधा हो जायेगी. यहां तक कि खदानों से भी पानी निकाला जा सकता है. किसानों ने कहा कि वर्षा हुई तो पैदावार अच्छी होती है, वरना निराशा ही हाथ लगती है. सरकार की तमाम कोशिशों और दावों के बावजूद किसान आज भी कर्ज के बोझ के तले बदहाली से उबर नहीं पाये हैं.
आलम यह है कि किसानों के लिए अब घर का
चूल्हा जलाना भी मुश्किल हो रहा है, खेती क्या करें. वहीं समुचित संसाधनों के अभाव, श्रम व लागत के अनुपात में लाभ न होने से युवा पीढ़ी अब खेती को घाटे का सौदा मानने लगी है.
हरीश देवगम, ग्रामीण किसान, पुराना चाईबासा
सिंचाई के अभाव में हर साल फसल बर्बाद हो जाती है, ऐसे में सरकार द्वारा सब्सिडी की घोषणा किसानों के साथ सबसे बड़ा धोखा है. छोटे एवं सीमांत किसान उसके लाभ से हमेशा वंचित रह जाते हैं.
विजय देवगम, किसान
महंगे खाद बीज डालकर खेतों में फसल उगा लेना ही बड़ी बात नहीं रह गई है. इलाके में हाथियों के झुंड का भी आतंक बढ़ गया है, जिससे फसलों को बचाना भी किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है.
सिदिऊ देवगम, किसान
किसानों की हर योजना में बिचौलिये सक्रिय हैं. पशुपालन या कृषि संबंधी लोन लेने पर सब्सिडी की 25 प्रतिशत राशि रिश्वत के रूप में पहले ही ले ली जाती है.
बामिया देवगम, ग्रामीण किसान
खेती के नाम पर सरकार की किसी भी योजना का लाभ हम किसानों को नहीं मिलता. चाहे डीजल अनुदान हो या केसीसी ऋण, बिना बिचौलियों के कोई काम नहीं बनता.
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