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Seraikela Kharsawan News : पशुधन सम्मान और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है बांदना पर्व

रंग-बिरंगे मुकुट और रंगोली से सजाये गये गाय और बैल, महिलाएं आज उतारेंगी आरती

चांडिल. चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के चांडिल, नीमडीह, कुकड़ू व ईचागढ़ प्रखंड के ग्रामीण इलाकों में गिरी गोवर्धन पूजा और पारंपरिक बांदना पर्व बुधवार (22 अक्तूबर) को मनाया जायेगा. काली पूजा के एक दिन बाद शुरू होने वाला यह पर्व खासकर आदिवासी-मूलवासी बहुल गांवों में पशुधन के सम्मान में उत्सव के रूप में मनाया जाता है. गिरी गोवर्धन पूजा के साथ ही बांदना पर्व की शुरुआत होती है, जो ग्रामीण संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है. इस पर्व के दौरान किसान अपने पशुओं की पूजा करते हैं और उन्हें सजाते हैं. बैलों और गायों के सींगों में पहले ही तेल लगाना शुरू हो जाता है, जो इस पर्व की तैयारी का प्रतीक होता है.

रंग-बिरंगी छवियों से सजाये गये पशुधन:

गिरी गोवर्धन पूजा के दिन ग्रामीणों ने अपने पशुधन को आकर्षक रंगों से सजाते हैं. गाय-बैलों के माथे पर धान की बाली से बने मुकुट पहनाये जाते हैं. महिलाएं पारंपरिक परिधान में टोली बनाकर आरती उतारती हैं. सूप में दीया, गुड़, पीठा और चावल रखकर विशेष पूजा की जाती है.

रातभर होता है पशुओं का ‘रातजगा’:

गांवों में रात को ढोल, नगाड़ा और मांदर की थाप के साथ रातजगा का आयोजन होता है. पुरुषों की टोली पूरे गांव में घूम-घूमकर हर घर के गोशाला में जाकर पशुओं के सम्मान में नृत्य-संगीत करती है. ग्रामीण अपने घर आये टोली का स्वागत गुड़-पीठा खिलाकर और कुछ भेंट देकर करते हैं.

रंगोली और दीपों से सजीं गौशालाएं

महिलाएं चावल से बनी ‘गुंडी’ से रंगोली बनाकर अपने गोशालाओं तक रास्ता सजाती हैं. कुलही (गांव का प्रवेश द्वार) से गोशाला तक यह रंगोली पशुधन स्वागत की तैयारी का हिस्सा होती है.

कृषि औजारों की भी होती है पूजा

किसान अपने कृषि औजारों को धोकर तुलसी चौरा पर रखकर पूजा करते हैं. यह दिन कृषि संस्कृति के सम्मान का प्रतीक माना जाता है. बुजुर्ग किसान बृजमोहन गोप के अनुसार, “गिरी गोवर्धन पूजा की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा शुरू की गयी थी.

राजनगर में गोट बोंगा पूजा के साथ सोहराय और बंदना पर्व शुरू

राजनगर. राजनगर में संथाल और महतो समुदायों द्वारा गोट बोंगा पूजा के साथ सोहराय और बंदना पर्व की शुरुआत हुई. संथालों के रोला, गम्हारिया, पोखरिया समेत गांवों और महतो समुदाय के चांगुआ, डुमरडीहा आदि में पारंपरिक पूजा-अर्चना की गयी. नायके (पुजारी) ने मुर्गे की बलि देकर पूजा प्रारंभ की और सोड़ा (खिचड़ी) का भोग चढ़ाया गया.पूजा के बाद अंडा पूजास्थल पर रखा गया, जिसे शुभ माना जाता है. महिलाएं पशुधन की आरती कर मंगलगीत गाती हैं.

काली पूजा के साथ शुरू हुआ पांच दिवसीय बांदना पर्व:

काली पूजा/दीपावली के पहले दिन से ही पांच दिवसीय पारंपरिक बांदना पर्व की शुरुआत हो जाती है. इस पर्व की शुरुआत किसान अपने पशुधन गाय-बैलों को स्नान कराकर करते हैं. उनके सींगों में सरसों का तेल लगाया जाता है. काली पूजा के अगले दिन, अमावस्या समाप्त होने के साथ ही गिरी गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता है. गिरी गोवर्धन पूजा के बाद बांदना खुटान का आयोजन होता है, जिसमें गांव के बैल खूंटे में बांधकर परंपरागत वाद्य यंत्रों की थाप पर नचाये जाते हैं. इसके बाद बूढ़ी बांदना मनायी जाती है, जो पर्व का समापन चरण होता है.

हर्षोल्लास मनी दीपावली बांदना पर्व शुरू

झींकपानी. क्षेत्र में दीपावली बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. घरों को सजाकर दीप प्रज्ज्वलित किये गये और गणेश-लक्ष्मी की विधिवत पूजा-अर्चना की गयी. पूजा के उपरांत प्रसाद का वितरण किया गया. लोगों ने आतिशबाज़ी कर दीपावली को और भी उज्ज्वल बनाया. घर-आंगन में रंगोली सजाकर माता लक्ष्मी का आह्वान किया गया. रात्रि 10 बजे के बाद स्टेशन कॉलोनी, एसीसी काली मंदिर, ताकता बाजार तथा अन्य स्थानों पर देवी मां काली की विधि-विधानपूर्वक पूजा संपन्न हुई. ग्रामीण क्षेत्रों में मंगलवार से गोहाल पूजा (बांदना पर्व) भी उत्साहपूर्वक मनाया जा रहा है.

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