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गंगा संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों की है जरूरत : अमृत झा

राज्यस्तरीय गंगा प्रहरी सम्मेलन का आयोजन, गंगा नदी के संरक्षण के प्रयासों की निरंतरता को बनाए रखने पर जोर

साहिबगंज. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा बुधवार को दो दिवसीय राज्यस्तरीय गंगा प्रहरी सम्मेलन का आयोजन जिला परिषद के बैंक्वेट उत्सव हाॅल में किया गया. इसके तहत नदी संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करना है. कार्यक्रम का उद्घाटन कृषि विज्ञान केंद्र साहिबगंज के वैज्ञानिक अमृत कुमार झा ने किया. सम्मेलन में मुख्य रूप से गंगा नदी के संरक्षण के प्रयासों की निरंतरता को बनाए रखना और सामूहिक सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना और प्राकृतिक एवं जैविक खेती के महत्व व लाभ पर जानकारी दी गयी. साथ ही गंगा प्रहरियों को प्राकृतिक और जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया. वहीं झारखंड राज्य आजीविका एवं कौशल विकास समिति पलाश के जिला परियोजना प्रबंधक मातिन तारिक ने कहा कि आजीविका संवर्धन के लिए किये जा रहे प्रयासों पर काम करने साथ ही उत्पादकों काे बढ़ावा देने एवं बाजार में उपलब्ध करने संबंधी कार्यों के बारे में जानकारी दी गयी. गंगा प्रहरी को समिति से जोड़कर विभिन्न रोजगार कार्यों को करने के लिए प्रेरित किया. स्वच्छ भारत मिशन के आशीष झा द्वारा तरल व ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गयी. वहीं भारतीय वन्यजीव संस्थान के डॉ उतरन बंदोपाध्याय ने परियोजना के अंतर्गत किए जा रहे कार्यों एवं डॉ दीपिका डोगरा ने गंगा प्रहरी की भूमिका पर विस्तृत जानकारी दी. सम्मेलन में भूगर्भ विज्ञान एवं मॉडल कॉलेज राजमहल के डॉ रंजीत कुमार सिंह द्वारा कई सारी जानकारी दी गयी. कार्यक्रम में भारतीय वन जीव संस्थान की डॉ संध्या जोशी, हेमलता खंडूरी, एकता शर्मा, सुनीता रावत, प्रशांत तड़ियाल, मुकेश देवराड़ी, रश्मि दास, राजशेखर, प्रिया, श्वेता, विनीता, प्रभा, अमित मिश्रा, सदानंद मंडल आदि समेत 200 से अधिक गंगा प्रहरियों ने भाग लिया. झारखंड में 200 से अधिक गंगा बेसिन आर्द्र भूमि हैं : डॉ रंजीत साहिबगंज. पुनर्निर्माण राज्यस्तरीय गंगा झील संवाद के उद्घाटन सत्र में डॉ रंजीत सिंह ने कहा कि कार्यक्रम में सम्मिलित होना मेरे लिए अत्यंत गौरव की बात है. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और भारतीय वन्यजीव संस्थान, जिसने इस कार्यशाला का आयोजन किया है, बधाई के पात्र हैं. उन्होंने कहा कि गंगा बेसिन एवं आर्द्रभूमियों का महत्व केवल जलस्रोत नहीं है, बल्कि ये हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ है. ये जल को शुद्ध करने, भूजल पुनर्भरण, जलवायु संतुलन और जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इसके अतिरिक्त ये लाखों लोगों के जीवन, आजीविका और संस्कृति से भी गहराई से जुड़ी हुई है. झारखंड में 200 से अधिक गंगा बेसिन आर्द्र भूमि हैं, जो हमारे पर्यावरणीय संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. किन्तु, तेजी से बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिक प्रदूषण और असंतुलित कृषि प्रणाली के कारण इन प्राकृतिक संसाधनों पर गंभीर संकट मंडरा रहा है. हमें वैज्ञानिक शोध, परंपरागत ज्ञान और सामुदायिक भागीदारी के समावेश से एक व्यापक संरक्षण योजना बनानी होगी.

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