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ओके:::: आरजे स्टेडियम खो रहा अपना गौरवशाली अस्तित्व कभी राष्ट्रीय स्तर तक के खिलाड़ी यहां दिखाते थे अपने जलवे, आज पहचान के लिए हो रही जद्दोजहद फोटो :::: जिले में खेलकूद से लेकर उसके प्रसाधन के विकास को लेकर सरकार का रवैया उदासीन, खिलाड़ियों को नहीं दिख दिख रहा खेल में करियरचीमा ओपेरी, किस्टोफा, जमेशद […]

ओके:::: आरजे स्टेडियम खो रहा अपना गौरवशाली अस्तित्व कभी राष्ट्रीय स्तर तक के खिलाड़ी यहां दिखाते थे अपने जलवे, आज पहचान के लिए हो रही जद्दोजहद फोटो :::: जिले में खेलकूद से लेकर उसके प्रसाधन के विकास को लेकर सरकार का रवैया उदासीन, खिलाड़ियों को नहीं दिख दिख रहा खेल में करियरचीमा ओपेरी, किस्टोफा, जमेशद नासीरी, कनन व श्याम थापा जैसे खिलाड़ी खेल चुके हैं यहां आज महज शोभा की वस्तु बन कर रह गयी हैफोटो संख्या- 01 पाकुड़ से जा रहा हैकैप्सन- पाकुड़ का रानी ज्योतिर्मयी स्टेडियम.राजकुमार कुशवाहा, पाकुड़ कभी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके पाकुड़ का रानी ज्योतिर्मयी स्टेडियम अब अपनी पहचान खोता नजर आ रहा है. 20-25 साल पहले की बात करें तो यही वह मैदान था, जाहां कई राष्ट्रीय स्तर के दिग्गज खिलाड़ी खेलते थे. परंतु आज इस मैदान पर जिलास्तरीय खिलाड़ कभी कभार ही दिखते हैं. पूर्व में यह मैदान विशेष रूप से फुटबॉल प्रतियोगिता के आयोजन के लिए जाना जाता था. इस मैदान पर पूर्व में बृहत पैमाने पर प्रशासन के सहयोग से पाकुड़ के बुद्धिजीवियों द्वारा फुटबॉल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थी. जिसमें ईस्ट बंगाल के नाइजिरियन खिलाड़ी चीमा ओपेरी, किस्टोफा, ईरानी खिलाड़ी जमेशद नासीरी, दक्षिण अफ्रीका के कनन, दार्जिलिंग के श्याम थापा, भास्कर गांगुली, अतुन भट्टाचार्य, प्रशांत बनर्जी जैसे बिहार-बंगाल के कई दिग्गज खिलाड़ी अपना जलवा दिखाया करते थे. परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे पाकुड़ के आरजे स्टेडियम अपनी अस्तित्व खोता जा रहा है. पूर्व में जहां खिलाड़ियों के लिए मैदान पर घास उगा कर नियमित साफ-सफाई की जाती थी और खिलाड़ियों को इसके लिए प्रोत्साहित भी किया जाता था. परंतु मैदान में घास उगाना तो दूर अब न तो मैदान की साफ-सफाई ही होती है न ही खिलाड़ियों को खेल के लिए प्रोत्साहित ही किया जाता है. वर्तमान की बात करें तो आरजे स्टेडियम में चारों ओर छोटे-छोटे कंकड़ बिखरे पड़े मिलेंगे और खेल प्रतियोगिता का आयोजन तो जैसे आसमान में पुच्छल तारा दिखाई पड़ने जैसा साबित हो रहा है. लाखों खर्च कर सरकार द्वारा मैदान को स्टेडियम का रूप तो दिया गया, उसमें गैलरी बनाई गई, खिलाड़ियों के ड्रेसिंग के लिए कमरे बनाये परंतु खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन न होने से महज मैदान की शोभा बढ़ा रहा है. जिला प्रशासन का ध्यान नहीं सरकार एक ओर करोड़ों की राशि खर्च कर खेल को जहां बढ़ावा देने में लगी है. वहीं जिला प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण पाकुड़ जिले में खेल को बढ़ावा दिये जाने को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है. ऐसे तो जिले में युवाओं के बीच खेल के प्रति प्रतिभाओं की कमी नहीं है. परंतु समुचित व्यवस्था के अभाव में खेल प्रेमियों का उत्साह धूमिल होता जा रहा है. कभी-कभी होता है क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन पाकुड़ के रानी ज्योतिर्मयी स्टेडियम के मैदान में केवल और केवल क्रिकेट प्रतियोगिता होती है. जो निजी तौर पर कराया जाता है. दिलचस्प बात यह है कि प्रतियोगिता का उदघाटन प्रशासनिक पदाधिकारी जरूर करते हैं. मगर इसके लिए कभी पहल नहीं करते हैं. जिसके कारण खिलाड़ी निराश हो जाते हैं. खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारने के लिए कोई प्लेटफॉर्म पाकुड़ में अब तक तैयार नहीं किया गया है.खिलाड़ियों को बढ़ावा नहीं देते हैं जनप्रतिनिधिजिला मुख्यालय स्थित उपरोक्त स्टेडियम जहां कभी फुटबॉल प्रतियोगिता कराये जाने के नाम पर प्रचलित था. आज शहर से फुटबॉल खेल लगभग समाप्ति के कगार पर है. ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो आये दिन फुटबॉल प्रतियोगिता होती है और उसका उद्घाटन विधायक, सांसद सहित अन्य जनप्रतिनिधि फीता काट कर करते हैं और विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कृत करते हैं तथा उनके सम्मान में कई सुनहरी बातें भी करते हैं. परंतु इसके लिए कोई नयी पहल नहीं करते. बेकार पड़ी है खेल मद की राशि सरकार पाकुड़ में खेल को बढ़ावा देने के लिए संवेदनशील है और इसके लिए जिला परिषद के कार्यपालक अभियंता को जून माह में 1 लाख 76 हजार रुपये की राशि दी गयी है. ताकि खेल प्रतियोगिता का आयोजन कर प्रतिभावान खिलाड़ियों को राज्यस्तर पर भेजने का काम किया जा सके. लेकिन 6 माह बीत जाने के बाद भी यह राशि बैंक अकाउंट की शोभा बढ़ा रही है. खेल के लिए बनाये गये संघ का अस्तित्व ही नहींपाकुड़ को जिला का अस्तित्व मिलने के बाद तत्कालीन उपायुक्त की पहल पर पाकुड़ में जिला खेलकूद संघ का गठन किया गया था. जिसमें खेल क्षेत्र में रुचि रखने वाले शहर के बुद्धिजीवियों को जोड़ कर खेल की दिशा में गति देने का प्रयास किया गया परंतु राशि का अभाव व पदाधिकारियों की इच्छाशक्ति की कमी के कारण समय के साथ यह योजना भी धारासायी हो गयी. आश्चर्य की बात यह है कि कमेटी का कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद इसका पुनर्गठन तक नहीं किया गया है. सरकारी निर्देश महज खानापूर्ति स्कूली बच्चों में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन समय-समय पर कराया जाता है. लेकिन पूरी प्रतियोगिता को अगर देखें तो सरकारी निर्देशों का महज खानापूर्ति साबित होता है. स्टेडियम में प्रखंडस्तर के स्कूली बच्चों का दौड़, जलेबी दौड़, व्हील चेयर सहित अन्य खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. लेकिन जो बच्चे बेहतर करते हैं उसके लिए कोई अहम पहल नहीं की जाती है. चार करोड़ की लागत से बन रहा है स्टेडियमसरकार खेल को बढ़ावा देने के लिए तो कृत संकल्प हैं. इसके लिए जिले में खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किये जाने को लेकर समय-समय पर फंड की भी व्यवस्था की जाती है. परंतु पाकुड़ जिले में एक ओर जहां खिलाड़ियों के भविष्य निखारने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है, वहीं राशि के बंदरबांट के उद्देश्य से शहर के बैंक कॉलोनी के दक्षिणी छोर पर 4 करोड़ रुपये की लागत से एक और नया स्टेडियम तैयार किया जा रहा है. लेकिन जिस तरह से दशकों से पाकुड़ से एक भी खिलाड़ी किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाये हैं. उससे यह महसूस होता है कि खेल के लिए बनाये जा रहे स्टेडियम हाथी का सफेद दांत ही साबित होगा. कहते हैं उपायुक्तफोटो संख्या-07- उपायुक्त सुलसे बखला उपायुक्त सुलसे बखला ने बताया कि वर्तमान में खेल को लेकर कोई खास फंड जिले को उपलब्ध नहीं है. जिला खेलकूद संख्या के पुनर्गठन के पश्चात ही कोई ठोस पहल की जायेगी. कहा कि खेल को बढ़ावा दिये जाने को लेकर अलग से जिलास्तर पर खेल पदाधिकारी भी प्रतिनियुक्त किये गये हैं. चाय बेचने को मजबूर पाकुड़ के प्रसिद्ध फुटबॉलर सुशील पालफोटो संख्या-02- सुशील पाल. पाकुड़ जिला ही नहीं दूसरे राज्यों में अपनी हूनर के बल पर पहचान बना चुके पाकुड़ के फुटबॉल खिलाड़ी सुशील पाल प्रशासनिक उदासीनता के कारण चाय बेचने को मजबूर हैं. अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए सुशील पाल रेलवे फाटक के पूर्वी भाग सड़क किनारे चाय की दुकान चला कर करते हैं. फुटबॉल खिलाड़ी सुशील पाल 1970-72 के दौर में एशियन ऑल स्टार के सदस्य रहे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सुधीर कर्मकार के साथ भी खेल चुके हैं. इन्होंने अपनी हूनर के बल पर नेपाल, दार्जिलिंग, रायगंज, कोलकाता सहित अन्य शहरों में फुुटबॉल में अपनी पहचान बनायी थी. सुशील पाल कहते हैं कि वर्तमान में खेल का नजरिया बदल चुका है. अब खेल के नाम पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च तो करती है परंतु इसका लाभ प्रतिभावान खिलाड़ियों को नहीं मिल पा रहा है. कहते हैं बुद्धिजीवीफोटो संख्या-03- रतन चंद्र देपाकुड़ हरिणडांगा बाजार निवासी रतन चंद्र दे का कहना है कि खेल के दिशा में सरकार व जिला प्रशासन को अच्छी सोच के साथ पहल करनी होगी. केवल स्टेडियम के निर्माण करा देने से ही खिलाड़ियों को पहचान नहीं मिल पायेगी. फोटो संख्या-04- मो राशिद अंसारीहरिणडांगा निवासी मो राशिद अंसारी का कहना है कि फुटबॉल खेल के लिए प्रसिद्ध रहने वाले पाकुड़ खेल के मामले में अब अपनी पहचान खो चुका है. लगभग 20-25 वर्ष पूर्व फुटबॉल पाकुड़ के स्टेडियम में दो माह तक चलता था. इस खेल में टीम द्वारा बाहर से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के खिलाड़ियों को उतारा जाता था. ऐसा करने से पाकुड़ जिले के खिलाड़ियों के बीच आत्मविश्वास जगता था और उसके खेल में और भी निखार आता था. पर अब ऐसा नहीं हो रहा है. फोटो संख्या- 05-मानस चक्रवर्ती भारतीय खेल प्राधिकरण के जिला संयोजक मानस चक्रवर्ती का कहना है कि जिला प्रशासन के उदासीनता पूर्ण रवैये के कारण यहां के खिलाड़ियों को अपनी पहचान नहीं मिल पा रही है. तीरंदाजी, फुटबॉल, एथलिट्स, क्रिकेट सहित अन्य खेल के क्षेत्र में युवाओं के बीच छुपी प्रतिभाएं को समय-समय पर निखारने की आवश्यकता है. ऐसा नहीं होने से कभी भी अच्छे खिलाड़ियों का चयन कर पाने में सफलता नहीं मिलेगी. फोटो संख्या- 06- अरदेंदु शेखर गांगुलीनगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष अरदेंदु शेखर गांगुली का कहना है कि खेल की दिशा में जिला प्रशासन व शहर के बुद्धिजीवियों को एक साथ बैठ कर ठोस नीति के तहत प्लान तैयार करने की आवश्यकता है. प्रखंडस्तर से जिलास्तर तक प्रत्येक साल बड़े पैमाने पर खेल प्रतियोगिता कराने की आवश्यकता है. तभी ग्रामीण क्षेत्रों में छुपी प्रतिभाएं निकल कर सामने आयेगी.

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