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थॉमस की पांचवी पुण्य तिथि आज, उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा फोटो नं 28 एसबीजी 15 है. कैप्सन: थोमस हॉसदा का फाइल फोटोप्रतिनिधि, साहिबगंजजिले के बरहरवा स्थित आवास पर रविवार को क्षेत्र के पूर्व सांसद, विधायक व कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्व थॉमस हांसदा का पांचवीं पुण्य तिथि मनायी जायेगी. ज्ञात हो कि […]

थॉमस की पांचवी पुण्य तिथि आज, उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा फोटो नं 28 एसबीजी 15 है. कैप्सन: थोमस हॉसदा का फाइल फोटोप्रतिनिधि, साहिबगंजजिले के बरहरवा स्थित आवास पर रविवार को क्षेत्र के पूर्व सांसद, विधायक व कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्व थॉमस हांसदा का पांचवीं पुण्य तिथि मनायी जायेगी. ज्ञात हो कि 29 नवंबर 2010 को कोलकाता में इलाज के क्रम में थॉमस हांसदा का निधन हो गया था. तीन दर्शकों की राजनीति में थॉमस हांसदा ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. हालांकि 1978 में मुखिया के रूप में में सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय होने वाले थॉमस ने अपने जीवन में कई उतार-चाढ़ाव भी देखे. दो बार विधायक रहने के बाद 1990 के विधानसभा चुनाव में बरहेट सीट से झामुमो के हेमलाल मुर्मू से मात खाने के बाद एक बार लगने लगा था कि शायद उनके राजनीतिक कैरियर में ब्रेक लग जाएगा. उस समय अविभाजित विहार में लालू प्रसाद व जनता दुल की लहर थी. मंडल-कमंडल की लहर में महल एक साल बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें राजमहल सीट से पार्टी का टिकट दिया. लेकिन वे झामुमो क साइमन मरांडी से 32674 मतों के अंतर से चुनाव हार गये. तबतक कांग्रेस के भीरत भी उनके कई विरोध सक्रिय हो चुके थे. लेकिन दिसंबर 1992 में उन्होंने छोटानागपुर-संथााल पगरना क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बन पार्टी में अपनी मजबूत पकड़ एक बार फिर साबित कर दिया. इसी क्रम में वे बिहार विधान पार्षद के सदस्य भी बने. क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष होने का नाते 1995 के विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में उनकी खूब चली. साहिबगंज व पाकुड़ जले के छह सीटों पर उन्होंने अपने चहेता को टिकट दिया. बरहेट सीट से उन्होंने अपने भाई लाॅरेंस हांसदा को चुनाव लड़ाया. लेकिन दुर्भाग्यवश विधानसभा का यह चुनाव में कांग्रेस के लए सुखद नहीं रहा. लेकिन इससे हताश होने के बजाए थॉमस ने 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में राजमहल सीट से 1,43,162 मतों के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की. लेकिन करीब डेढ़ साल बाद 1998 में हुए मध्यावधि लोकसभा चुनाव में वे भाजपा से नौ मतों के अंतर से चुनाव हार गये. हालांकि उन्होंने उसवक्त मतगणना में धांधली की शिकायत की थी. लेकिन एक साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में राजमहल सीट से वे पुन: भारी मतों से लोकसभा चुनाव जीते. 2004 के लोकसभा चुनाव में राजमहल सीट पर झामुमो-कांग्रेस में हुए दोस्ताना संघर्ष में वे हेमलाल मुर्मू से चुनाव हार गये. एक साल बाद 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में वे पुन: राजमहल सामान्य सीट से करीब दस हजार मतों के अंतर से चुनाव जीत गये. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में पुन: राजमहल सीट पर झामुमो-कांग्रेस में गठबंधन होने परी उन्होंने राजद की टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ा एवं हार गये. यहां भी उनके राजनीतिक विरोधियों को लगने लगा कि शायद अब थॉमस हांसदा की कांग्रेस में जल्द वापसी संभव नहीं होगी. लेकिन महज छह महीने के भीतर ही बगैर जिला व प्रदेश कमेटी की अनुशंसा के उन्होंने न केवल कांग्रेस में शामिल हो गये बल्कि राजमहल सीट से टिकट भी हासिल कर पार्टी में अपनी मजबूत पकड़ का एहसास करा दिया.मुखिया से मंत्री तक का सफर1978 मुखिया व उप प्रमुख1980 बरहेट विस सीट से विधायक1985 बरहेट विस सीट से दोबारा जीते 1985 से 1990 तक बिहार में मंत्री1992 में क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष1993 विधान पार्षद बने 1996 राजमहल लोस सीट से फिर जीते1999 राजमहल लोस सीट से फिर जीते2005 राजमहल सीट से विधायक बने

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