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Ranchi News : शरीर, मन और आत्मा को साधने की विद्या है योग

योग गुरु कहते हैं कि योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है. योग गुरु सदैव इस बात पर बल देते हैं कि योग से मनुष्य अपने भीतर छिपी शक्ति को पहचान सकता है और जीवन की चुनौतियों का सामना धैर्यपूर्वक कर सकता है.

योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला और साधना

परमहंस योगानंद ने क्रियायोग को पाश्चात्य जगत तक पहुंचाया, लाखों अनुयायी आज भी उनका कर रहे हैं अनुसरण

योग पांच स्तरों पर कार्य करता है- शारीरिक, ऊर्जा, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक

योग जागरूकता से ही स्वस्थ समाज और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना साकार होगी

योग गुरु कहते हैं कि योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है. योग गुरु सदैव इस बात पर बल देते हैं कि योग से मनुष्य अपने भीतर छिपी शक्ति को पहचान सकता है और जीवन की चुनौतियों का सामना धैर्यपूर्वक कर सकता है. योग से न केवल व्यक्ति स्वयं को बेहतर बनाता है, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी को समझता है. प्राचीन ऋषि-मुनियों ने जिस योग पद्धति को आत्मज्ञान का साधन माना था, आज उसी पद्धति को विश्वभर में लाखों लोग अपनाकर अपने जीवन को खुशहाल बना रहे हैं. रांची में ऐसे ही कई आश्रम हैं, जहां योग की क्रिया सिखायी जाती है. आज की इस कड़ी में राजधानी के योग गुरु मानते हैं कि योग कोई धर्म या जाति से बंधा नहीं, बल्कि यह संपूर्ण मानवता के कल्याण का मार्ग है. इसलिए हर इंसान को योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए और जीवन में शांति, प्रेम और संतुलन का अनुभव करना चाहिए.

प्रस्तुत है पूजा सिंह की रिपोर्ट…

भगवान शिव से लेकर महाभारत तक योग का प्रभाव

योग शक्तिशाली विद्या है, जिसकी जड़ें तंत्र से जुड़ी हुई हैं और जिसके प्रथम गुरु स्वयं भगवान शिव माने जाते हैं. प्राचीनकाल से ही भारतवर्ष में योग का महत्व स्थापित रहा है. ऋषि-मुनियों ने योग के माध्यम से न केवल शरीर को स्वस्थ रखा बल्कि आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर संसार को नया मार्ग दिखाया. महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन विषाद से ग्रस्त हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने योग की शिक्षा देकर उसे कर्तव्य के मार्ग पर अग्रसर किया. आज के युग में योग की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गयी है. आधुनिक जीवनशैली, मोबाइल की लत, असंतुलित भोजन और शारीरिक श्रम की कमी ने मानव शरीर और मन को जकड़ लिया है. बच्चों में खेलकूद की कमी, अनियमित दिनचर्या और तनाव ने उनके मानसिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव डाला है. ऐसे में योग ही एक ऐसा माध्यम है जो शरीर, मन और आत्मा का संतुलन बनाये रखता है. प्राणायाम, ध्यान, जल नेति जैसे योगाभ्यास आज के हर व्यक्ति के लिए अत्यंत जरूरी हैं.

स्वामी मुक्तरथ, अध्यक्ष, सत्यानंद योग मिशन

योग जीवन को सत्य, शिव और सुंदर बनाने की साधना

भारतीय समाज में योग शब्द प्राचीन काल से ही प्रचलित रहा है. इस शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया जाता रहा है, किन्तु वर्तमान समय में यह विशेष रूप से शारीरिक व्यायाम, आसन और प्राणायाम के रूप में जाना जाता है. योग का वास्तविक उद्देश्य साधना, उपासना, ज्ञान और कर्म के माध्यम से परमात्मा से जुड़ना है. शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग को उत्तम औषधि माना गया है. स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन वाला व्यक्ति न केवल अपना, बल्कि समाज का भी कल्याण कर सकता है. श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को योगी बनने और योग में स्थित होकर कर्म करने का उपदेश दिया था. आज संपूर्ण विश्व योग को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण साधन के रूप में अपना रहा है. हालांकि यह देख कर प्रसन्नता होती है कि लोगों में योग के प्रति जागरूकता बढ़ी है, लेकिन यह केवल व्यायाम तक सीमित न रहे. उत्तम व्यक्तित्व से ही श्रेष्ठ समाज और स्वावलंबी विश्व का निर्माण होगा, जिससे ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की परिकल्पना साकार हो सकेगी.स्वामी परिपूर्णानंद सरस्वती, चिन्मय मिशन

योग-विज्ञान के सेतु और शांति के प्रेरक

योग के अवतार कहे जाने वाले उच्चकोटि के ऋषि परमहंस योगानंद जी ने भगवद्गीता पर अपनी सुंदर टीका ईश्वर अर्जुन संवाद में योग की महत्ता को सरल शब्दों में प्रतिपादित किया है. उनका मानना था कि योग का विज्ञान कभी नष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि यह सीधे मनुष्य के भीतर विद्यमान परमसत्य से जुड़ा हुआ है. शांति और सुख की आकांक्षा रखने वाला साधक योग के माध्यम से अंततः ब्रह्म में विलीन होता है. योगानंद जी कहते हैं कि मन के अत्यंत तीव्रगामी विचारों को नियंत्रित करना सरल नहीं, किंतु असंभव भी नहीं है. इसके लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है. पश्चिम में योग के प्रचार-प्रसार के जनक माने जाने वाले परमहंस योगानंद ने अपने जीवन के 30 से अधिक वर्ष अमेरिका में व्यतीत कर ध्यान और क्रियायोग विज्ञान की शिक्षाओं को फैलाया. भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया और अमेरिका में सेल्फ-रियलाइजेशन की स्थापना कर पूर्व और पश्चिम के बीच आध्यात्मिक सेतु का कार्य किया. उनकी प्रसिद्ध पुस्तक योगी कथामृत को मन और आत्मा के द्वार खोलने वाला अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है.डॉ मंजु लता गुप्ता, योगदा आश्रम

योग से जीवन में संतुष्टि का मार्ग प्रशस्त

परमहंस योगानंद जी ने क्रियायोग को विश्व स्तर पर प्रचारित करने का संकल्प लिया और इसके लाभों को पाश्चात्य जगत में पहुंचाकर पूर्व और पश्चिम के बीच आध्यात्मिक सेतु का कार्य किया. आज उनके लाखों अनुयायी विश्वभर में योग-ध्यान की इन्हीं वैज्ञानिक प्रविधियों का अभ्यास कर जीवन में शांति और संतोष का अनुभव कर रहे हैं. योगानंद जी ने अपनी विश्वविख्यात पुस्तक योगी कथामृत में माया और प्रकृति के नियमों के अधीन जीने वाले मनुष्यों की स्थिति का उल्लेख करते हुए बताया कि प्राणशक्ति का प्रवाह प्रायः बाह्य जगत की ओर होता है और इंद्रियों में व्यय हो जाता है. क्रियायोग का अभ्यास इस प्रवाह को पुनः भीतर की ओर मोड़ देता है, जिससे प्राणशक्ति मेरुदंड की सूक्ष्म शक्तियों से एकाकार हो जाती है. इस पुस्तक से यह भी ज्ञात होता है कि क्रियायोग का नियमित अभ्यास साधक को रक्त को कार्बन रहित रखने और उसे अधिक ऑक्सीजनयुक्त बनाने में समर्थ बनाता है. इस प्रक्रिया से मस्तिष्क और मेरुदंड पुनर्जीवित होते हैं और शरीर में ऊतकों का क्षय रुक जाता है.

विवेक अत्रे, योगदा आश्रम

आत्मा को शुद्ध कर आनंद का अनुभव कराता है योग

योग परमात्मा से जुड़ने का सहज और प्रभावी माध्यम है. यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन को पूर्णता और शांति देने वाली साधना है. योग को पांच स्तरों में विभाजित किया गया है. शारीरिक स्तर, ऊर्जा स्तर, मानसिक स्तर, बौद्धिक स्तर और अंतरात्मा स्तर. योगाभ्यास से शरीर स्वस्थ रहता है, मन स्थिर और शांत रहता है और विचार शुद्ध होते हैं. इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति न केवल स्वयं सुख, शांति और आनंद का अनुभव करता है, बल्कि दूसरों के कल्याण की भी कामना करता है. शारीरिक फिटनेस बनाए रखने के लिए प्रतिदिन 45 मिनट से एक घंटा तक विभिन्न योगासनों का अभ्यास करना लाभकारी माना गया है. जीवन स्वयं में योग है और इसके लिए कोई विशेष समय निश्चित नहीं है. प्रत्येक क्षण योगमय जीवन संभव है. परमात्मा से जुड़ने के लिए केवल योगासन ही नहीं, बल्कि नामजप, प्रार्थना, सेवा और नि:स्वार्थ दान भी महत्वपूर्ण साधन हैं. भगवान का नाम स्मरण कर, प्रार्थना कर और अच्छे कर्मों के माध्यम से भी ईश्वर से एकत्व स्थापित किया जा सकता है.

स्वामी भावेशानंद, सचिव रामकृष्ण मिशन आश्रम, रांची

योग और प्राणायाम विद्यार्थी जीवन की औषधि

योग और प्राणायाम भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं. ये न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाते हैं, बल्कि मानसिक शांति और एकाग्रता को भी बढ़ाते हैं. विद्यार्थी जीवन में व्यक्ति ज्ञान अर्जन करता है, जिसमें ध्यान, स्मरण शक्ति और मन की स्थिरता का होना अत्यंत आवश्यक होता है. योग और प्राणायाम इस दिशा में एक प्रभावी औषधि के रूप में कार्य करते हैं. प्रतिदिन प्राणायाम करने से श्वास तंत्र मजबूत होता है, जिससे मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है और मानसिक थकान दूर होती है. इससे पढ़ाई में मन लगता है और चिंता, तनाव जैसी समस्याएं कम होती हैं. योगासन जैसे पद्मासन, ताड़ासन और भुजंगासन शारीरिक लचीलापन बढ़ाते हैं और रीढ़ की हड्डी को मजबूत करते हैं. आज के समय में जब विद्यार्थी मोबाइल, इंटरनेट और प्रतिस्पर्धा के दबाव से ग्रस्त हैं, तब योग और प्राणायाम उन्हें संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं. अतः यह कहना उचित होगा कि योग और प्राणायाम विद्यार्थी जीवन के लिए एक प्राकृतिक, सरल और प्रभावशाली औषधि हैं, जो उन्हें स्वस्थ, संयमी और सफल जीवन की ओर अग्रसर करते हैं.

अखिलेश उपाध्याय

आजीवन सदस्य, इंडियन योग एसोसिएशन, झारखंड स्टेट चैप्टर.B

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