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सफलता के नये आयाम गढ़ रहीं आदिवासी महिलाएं, स्वरोजगार और हुनर से बनीं मिसाल

World Tribal Day 2025: डिबडीह की सुषमा कुल्लू ने आदिवासी परिधानों और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए घर से ही आदिवासी साड़ियों का काम शुरू किया. मूल रूप से सिमडेगा की निवासी सुषमा के काम को इतनी सराहना मिली कि उन्होंने घर के पास एक छोटा सा बुटिक खोल लिया. यहां वह न केवल झारखंड, बल्कि असम की ट्राइबल साड़ियों को भी प्रमोट करती हैं.

World Tribal Day 2025| रांची, लता रानी : झारखंड की आदिवासी महिलाएं मेहनत, हुनर और आत्मविश्वास की बदौलत अपनी अलग पहचान बना रही हैं. स्वरोजगार से जुड़कर ये न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं, बल्कि अपने समुदाय को भी गौरवान्वित कर रही हैं. आदिवासी दिवस पर हम आपको ऐसी ही प्रेरणादायक महिलाओं से रू-ब-रू करा रहे हैं. बरियातू की जुबली डारी कुजूर आदिवासियत की जीती-जागती मिसाल हैं. उनका मानना है कि राज्य या प्रांत कोई भी हो, हर आदिवासी को दूसरे आदिवासी को अपना मानना चाहिए, क्योंकि आदिवासियत ही हमारी असली पहचान है.

15 साल से रांची में हैं मणिपुर की जुबली डारी कुजूर

मूल रूप से मणिपुर की मिजोरम जनजाति से आनेवाली जुबली पिछले 15 वर्षों से रांची में रह रही हैं. पति डॉ एमएस कुजूर यूसीआइएल जादूगोड़ा में बतौर मेडिकल ऑफिसर सेवाएं दे रहे हैं. पेशे से स्किन एंड हेयर एनालिसिस एक्सपर्ट रहीं जुबली ने मातृत्व के दौरान करियर में ब्रेक लिया. फिर अपने अनुभव के बल पर रांची में फैमिली सैलून का नया कॉन्सेप्ट शुरू किया.

जुबली के सैलून में सभी कर्मचारी आदिवासी

खास बात यह कि उनके सैलून के सभी कर्मचारी आदिवासी हैं. जुबली को इस बात पर गर्व है और वह मानती हैं कि ब्यूटी सेक्टर में झारखंड के युवाओं के लिए अपार संभावनाएं हैं. वह कहती हैं कि बड़े सपने देखें, एक्सपर्ट बनें और अपने राज्य की ताकत बनें. सफलता जरूर मिलेगी.

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सुषमा कुल्लू दे रहीं बुनकरों को नया मंच

डिबडीह की सुषमा कुल्लू ने आदिवासी परिधानों और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए घर से ही आदिवासी साड़ियों का काम शुरू किया. मूल रूप से सिमडेगा की निवासी सुषमा के काम को इतनी सराहना मिली कि उन्होंने घर के पास एक छोटा सा बुटिक खोल लिया. यहां वह न केवल झारखंड, बल्कि असम की ट्राइबल साड़ियों को भी प्रमोट करती हैं. उनकी साड़ियों की खासियत है कि ये सीधे बुनकरों के हाथ से तैयार होती हैं.

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लाल पाढ़ साड़ी की विशेष पहचान बना रहीं सुषमा

सुषमा झारखंड की लाल पाढ़ और सादे पढ़िया साड़ियों की विशेष पहचान बनाने में जुटी हैं. आदिवासी दिवस पर हर साल बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में लगने वाले मेले में उनकी खास मौजूदगी रहती है. उनका कहना है : युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति से जुड़ी रहे, इसलिए मैंने पारंपरिक वस्त्रों के साथ अपनी पहचान बनायी. आदिवासी समाज के लोग भी इस क्षेत्र में आकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं.

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Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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