World Tribal Day 2025 : रांची-विश्व आदिवासी दिवस पर आज शनिवार को झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) के मानव विज्ञान और जनजातीय अध्ययन विभाग (डीएटीएस) की ओर से आदिवासी लोग और एआई: अधिकारों की रक्षा, भविष्य को आकार देना विषय पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया. इस कार्यक्रम में स्कॉटलैंड के टोलहीशेल खालिंग मुख्य वक्ता थे. संस्कृति अध्ययन संकाय के डीन और मानव विज्ञान और जनजातीय अध्ययन विभाग के प्रमुख प्रो रवींद्रनाथ शर्मा, अन्य गणमान्य में राजकिशोर महतो (भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण, रांची फील्डस्टेशन के प्रमुख), डॉ सोमनाथ रुद्र (भूगोल विभागाध्यक्ष, सीयूजे), डॉ रजनीकांत पांडे (सहायक प्राध्यापक, डीएटीएस), टीएन कोइरेंग (सहायक प्राध्यापक, डीएटीएस) भी उपस्थित थे. यह व्याख्यान भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के फील्ड स्टेशन, लुप्तप्राय भाषा केंद्र, स्वदेशी ज्ञान और सतत विकास केंद्र, समान अवसर प्रकोष्ठ और राष्ट्रीय कैडेट कोर सीयूजे के सहयोग से आयोजित किया गया था.
जरूरी है संस्कृति का संरक्षण-टोलहीशेल खालिंग
स्कॉटलैंड के टोलहीशेल खालिंग का सत्र कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वदेशी समुदायों के प्रतिच्छेदन पर केंद्रित था. यह पता लगाना कि कैसे उभरती प्रौद्योगिकियां अवसर प्रदान कर सकती हैं और स्वदेशी अधिकारों, संस्कृतियों और भविष्य के संरक्षण के लिए चुनौतियां भी खड़ी कर सकती हैं. भले ही भारत सरकार आदिवासी संस्कृति के मूर्त हिस्से पर ध्यान केंद्रित करते हुए धरती आबा जनभागीदारी अभियान जैसी विभिन्न योजनाएं लेकर आई है, लेकिन संस्कृति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अमूर्त हिस्सा गायब है. उन्होंने फ्रोजन II फिल्म का उदाहरण दिया, जो ‘सामी’ लोगों की एक लोककथा थी. संस्कृति का संरक्षण आवश्यक है, जो लोककथाओं के माध्यम से संभव हो सकता है.
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जनजातीय अध्ययन में करें एआई का उपयोग-राजकिशोर महतो
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के रांची फील्ड स्टेशन के प्रमुख राजकिशोर महतो ने लेवी स्ट्रॉस पर जोर दिया, जो एक मानवविज्ञानी थे. उन्होंने सामाजिक संरचना के बारे में विचार व्यक्त किए थे, जो मूल रूप से लोककथाओं और लोकगीतों पर आधारित है. भूगोल विभाग के प्रमुख डॉ सोमनाथ रुद्र ने कहा कि जनजातीय अध्ययन में संस्कृति और भाषाओं का अन्वेषण करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उपयोग किया जा सकता है.
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