रांची. वनवासी कल्याण केंद्र के तत्वावधान में बुधवार को बरियातू स्थित आरोग्य भवन में सरहुल मिलन समारोह हुआ. वनवासी कल्याण केंद्र के संस्थापक पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि 40-45 वर्षों से जनजातीय जीवन से साक्षात्कार का अनुभव है. जो सनातन रीति है, उसका पुरातन स्वरूप इस समाज में दिखता है. इस समाज में प्रकृति के साथ जुड़ाव दिखता है. उन्होंने कहा कि आज समाज के समक्ष सांस्कृतिक चुनौतियां बढ़ी हैं. डीजे संस्कृति की वजह से गीत-संगीत के वास्तविक स्वरूप पर चोट पहुंची है.
70 वर्षों से जनजाति समाज के बीच कार्य कर रहा अखिल वनवासी कल्याण आश्रम
मुख्य वक्ता वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री भगवान सहाय ने बताया कि अखिल वनवासी कल्याण आश्रम लगभग 70 वर्षों से जनजाति समाज के बीच कार्य कर रहा है. सरहुल सिर्फ मिलन समारोह नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति और संस्कारों का प्रगटीकरण है. यह प्रकृति के साथ एकत्व की अनुभूति और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है. इस समाज के नृत्य में सामूहिकता झलकती है. गीता में कहा गया है कि साकार और निराकार दोनों ही स्वरूपों में ईश्वर की आराधना होती है. इस समाज में दोनों ही रूपों में पूजा करने की परंपरा है. इससे पूर्व क्षेत्रीय संगठन मंत्री प्रफुल्ल आकांत ने कहा कि सरहुल जनजातीय संस्कृति और परंपरा को लंबे समय से संरक्षित करनेवाला पर्व है. यह रिश्तों की याद दिलानेवाला पर्व है. अब सरहुल में मांदर गायब होते जा रहे हैं. डीजे की संस्कृति मूल सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने का षडयंत्र है. केंद्र के प्रांत अध्यक्ष सुदान मुंडा, धनंजय सिंह, प्रांत महामंत्री सज्जन सर्राफ सहित अन्य लोगों ने भी विचार दिये. इस अवसर पर मुंडारी, कुड़ुख, नागपुरी गीतों पर सामूहिक नृत्यों की भी प्रस्तुति हुई. मौके पर तनूजा मुंडा, सोमा उरांव, मेघा उरांव आदि उपस्थित थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

