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Jharkhand news : रिटायरमेंट एक ऐसा वक्त, जब व्यक्ति अनुभव के साथ उत्साह से लबरेज होकर नये काम की शुरुआत करता है

Jharkhand news : रिटायरमेंट का मतलब सक्रिय जीवन पर पूर्ण विराम नहीं होता है. दरअसल यह एक ऐसा वक्त होता है, जब व्यक्ति अपने अनुभव के साथ उत्साह से लबरेज होकर नये काम की शुरुआत करता है.

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रांची (अविनाश). रिटायरमेंट का मतलब सक्रिय जीवन पर पूर्ण विराम नहीं होता है. दरअसल यह एक ऐसा वक्त होता है, जब व्यक्ति अपने अनुभव के साथ उत्साह से लबरेज होकर नये काम की शुरुआत करता है. अपनी पुरानी पहचान के साथ आगे बढ़ता है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब लोगों ने जीवन की दूसरी पारी में भी उत्साह के साथ काम कर न सिर्फ खुद को साबित किया बल्कि समाज के सामने एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया. आज ऐसे ही तीन शख्स की चर्चा हो रही है, जिन्होंने समाज के समक्ष उदाहरण पेश किया.

सेवा कार्य में सक्रियता के साथ कार्य कर रहे हैं डॉ परमानंद तिवारी

गांधीनगर निवासी डॉ परमानंद तिवारी कोल इंडिया से मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी पद से वर्ष 2012 में सेवानिवृत्त हुए हैं. डॉ तिवारी की उम्र करीब 73 वर्ष है. इस उम्र में भी सामाजिक कार्यों में काफी सक्रिय हैं. चिकित्सा के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी कार्य कर रहे हैं. इनके प्रयास से कई शैक्षणिक संस्थानों का संचालन हो रहा है. साथ ही उनकी कोशिश ऐसी पुरानी जगहों को भी फिर से एक्टिव करने में जुटे हुए हैं, जहां पहले सामाजिक कार्य होते थे. उनका कहना हैं कि सोसाइटी के लिए काम करने से आत्म संतुष्टि मिलती है. सबको अपने सामर्थ्य के अनुसार सेवा कार्य करना चाहिए, तभी समाज में एक बेहतर वातावरण तैयार होगा.

सेवानिवृत्ति के बाद भी शिक्षा क्षेत्र में सक्रिय हैं व्यास राम चौरसिया

व्यास राम चौरसिया पेशे से शिक्षक रहे हैंं. 31 जनवरी 2019 में सेवानिवृत्ति के बाद भी शिक्षा के प्रति उनका जुड़ाव कम नहीं हुआ है. व्यास राम चौरसिया की 1994 में सरकारी शिक्षक की रूप में नियुक्ति हुई थी. खास बात है कि सरकारी नौकरी में आने से पहले वे पलामू के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता अभियान चला रहे थे. 1980-81 का समय था, जब नरसिंहपुर पथरा और पतरिया इलाका में शिक्षा के प्रति लोगों में खास दिलचस्पी नहीं थी. तब के दौर में व्यास राम चौरसिया ने नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाया. चैनपुर के पतरिया के उत्क्रमित विद्यालय में प्रधानाध्यापक रहते हुए श्री चौरसिया ने शिक्षा के विकास के लिए कई बड़े आयोजन भी किये. उनकी पत्नी मुखिया भी हैं. वे पंचायत के माध्यम से भी शिक्षा पर विशेष तौर पर ध्यान दे रहे हैं, ताकि सरकारी स्कूलों में शिक्षा का बेहतर माहौल कायम रहे. जो बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, उनके घर जाकर स्कूल जाने के लिए प्रेरित करते हैं. साथ ही जिन विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है, उसके लिए संबंधित पदाधिकारियों से बातचीत कर समाधान निकालने में जुटे हुए हैं.

नवाजदीक सिंह के लिए सेवा ही है जीवन का मंत्र

नवाजदीक प्रसाद सिंह 31 मई 1998 में स्वास्थ्य विभाग से रिटायर हुए हैं. रिटायरमेंट के लगभग 27 वर्ष बाद भी वह पूरी तरह से फिट हैंं. फिलहाल गुमला के विशुनपुर में रहते हैं. स्वास्थ्य विभाग में जब 1958 में सेवा की शुरुआत की थी, तो उस दौरान वह पलामू के लेस्लीगंज, पाटन आदि इलाकों में टीम के साथ जाते थे. उस वक्त बेहतर सड़कों का अभाव हुआ करता था. तब डयूटी के बाद श्रमदान कर सड़कों को चलने लायक बनाते. यदि कोई बीमार हो जाये, तो उसे अस्पताल तक पहुंचाने में मदद करते. आज भी सामाजिक सेवाओं में तत्परता से जुटे हुए हैं. लगभग 87 वर्ष की उम्र में भी सेवा का जज्बा कम नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि जब तक शरीर में जान है, तब तक सेवा कार्य में जुटे रहेंगे. यही उनके जीवन का मंत्र है.

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