रांची. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में काव्य शिविर का आयोजन किया जा रहा है. इसके तीसरे दिन सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता राम की शक्तिपूजा सहित अन्य कविताओं पर चर्चा हुई. प्रोफेसर रविभूषण ने निराला की लंबी कविता, राम की शक्ति पूजा, मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ और अज्ञेय की असाध्यवीणा पर परिचर्चा करते हुए कहा कि ये तीनों ही कविताएं समयबद्ध होकर भी कालातीत हैं. इन तीनों कविताओं ने हिंदी कविता के फलक को विस्तार दिया है. मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’स्वाधीन भारत की महानतम कविता है, जो नये इतिहास के निर्माण की कविता है.
कविताओं में सामूहिकता सहज रूप में है
अज्ञेय की ‘असाध्य वीणा’कविता, जीवन के रहस्य और सत्य की खोज का प्रतीक है, जहां हर कोई अपने तरीके से सत्य की खोज करता है. डॉ जिंदर सिंह मुंडा ने भारतीय भाषाओं की कविता में आदिवासियत कैसे प्रकट हो रही है, इस पर बात की. उन्होंने कहा कि आदिवासी जीवन दर्शन को समझे बिना कविता में आदिवासियत कैसे प्रकट हुई है, यह नहीं समझा जा सकता है. उन्होंने ग्रेस कुजूर, निर्मला पुतुल, महादेव टोप्पो, अनुज लुगुन, जसिंता केरकेट्टा, पार्वती तिर्की, राही डूमरचीर की कविताओं के बारे में कहा कि इनकी कविताओं में सामूहिकता एवं सहजीविता सहज रूप में है. आदिवासी कविता में श्रम ही सौंदर्य है. डॉ विहाग वैभव ने भारतीय भाषाओं में दलित कविता और दलित सौंदर्य शास्त्र पर बात रखी.
सृजन कला के तीन क्षणों एवं फैंटेसी पर चर्चा की
साहित्यकार रणेंद्र ने मुक्तिबोध की सृजन कला के तीन क्षणों एवं फैंटेसी पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि सृजन कला में लीन होने के कारण मुक्तिबोध, जीवन भर बहुत ही अव्यावहारिक रहे. वह हमेशा अभावग्रस्त जीवन जीते रहे. यह आयोजन प्रगतिशील लेखक संघ, शब्दकार और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था. शिविर को सफल बनाने में डॉ प्रज्ञा गुप्ता एवं साहित्यकार रश्मि शर्मा, संगीता कुजारा टॉक, अनामिका प्रिया, जय माला, सत्या शर्मा, श्वेता कुमारी ,दीपिका कुमारी, ममता बारा, श्वेता जायसवाल, निक्की डिसूजा, संजय कुमार साहु, धर्मेंद्र और राजीव थेपड़ा सहित अन्य का योगदान रहा.
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