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नागपुरी के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ राम प्रसाद नहीं रहे, गले के कैंसर से थे पीड़ित

नागपुरी के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ राम प्रसाद नहीं रहे. 72 वर्ष की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली. वे पिछले कई वर्षों से गले के कैंसर से पीड़ित थे. वे नागपुरी भाषा परिषद और छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ के अध्यक्ष थे. नागपुरी भाषा परिषद की महासचिव डॉ शकुंतला मिश्र ने कहा कि इनके निधन से नागपुरी का चमकता सितारा अस्त हो गया. इंकलाबी नौजवान लेखक संघ ने इनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. हरमू मुक्ति धाम में आज उनका अंतिम संस्कार किया गया.

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रांची-नागपुरी के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ राम प्रसाद की सांसें आज शनिवार सुबह साढ़े आठ बजे थम गयीं. इसके साथ ही नागपुरी जगत के एक जगमगाते सितारे का अस्त हो गया. 72 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया. वे पिछले कई वर्षों से गले के कैंसर से पीड़ित थे. वे नागपुरी भाषा परिषद और छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ के अध्यक्ष थे. नागपुरी भाषा परिषद की महासचिव डॉ शकुंतला मिश्र ने कहा कि इनके निधन से नागपुरी का चमकता सितारा अस्त हो गया. इंकलाबी नौजवान लेखक संघ ने वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राम प्रसाद के निधन पर शोक व्यक्त किया है. हरमू मुक्ति धाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया.

नागपुरी भाषा परिषद और छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ के थे अध्यक्ष


डॉ रामप्रसाद का जन्म 20 जुलाई 1953 को झारखंड के सिमडेगा जिले के रूसो गांव में हुआ था. उनकी माता का नाम फूलमनी देवी और पिता का नाम विदेशी साव था. कुल आठ भाई-बहनों का उनका भरा-पूरा परिवार था. पांच बहनें एवं तीन भाई थे. आठ भाई-बहनों में सात दिवंगत हो चुके हैं. इनका परिवार व्यापार के साथ-साथ कृषि कार्य से भी जुड़ा था. इनका बचपन अभाव में बीता था. डॉ राम प्रसाद बचपन से ही पढ़ने-लिखने में गहरी रुचि रखते थे. उनकी प्रतिभा और सौम्य व्यवहार के कारण इनके परिवार के लोगों के साथ ही आसपास के लोग भी इन्हें बहुत प्यार करते थे. उन्हें प्रारंभिक शिक्षा पास के ही गांव पाकइर टोली के बुकना मास्टर ने दी थी. बुकना मास्टर एक अनुशासनप्रिय शिक्षक थे. इनका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा. वह पिछले एक वर्ष से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. वे नागपुरी भाषा परिषद और छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ के अध्यक्ष थे.

व्याख्याता के रूप में मिसाल कायम करने की थी ख्वाहिश


डॉ राम प्रसाद ने एमए, एलएलबी, पीएचडी, डीलिट की डिग्री हासिल की थी. नागपुरी भाषा में डीलिट करने वाले वे पहले शिक्षक थे. इन्हें साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम (उत्तर प्रदेश) से विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि मिली थी. इनकी हार्दिक इच्छा थी कि यह व्याख्याता के रूप में एक मिसाल कायम करें. एमए पास करने के बाद उनकी पहली नौकरी ग्रामीण महाविद्यालय औंगारी धाम (नालंदा ) मगध विश्वविद्यालय में हिंदी व्याख्याता के रूप में लगी. औंगारी धाम में कुछ महीने नौकरी करने के बाद छुट्टियों में रांची आए तो इन्हें पता चला कि रांची के गोस्सनर महाविद्यालय में हिंदी विभाग में व्याख्याता के पद के लिए आवेदन आमंत्रित किए जा रहे हैं. इन्होंने भी आवेदन दिया और यहां इनका साक्षात्कार भी हुआ. इसके बाद वे औंगारी धाम लौट गए. गोस्सनर महाविद्यालय की ओर से इनका नियुक्ति पत्र औंगारी धाम में ही भेजा गया. तब वहां से लौटकर 1 अगस्त 1980 से इन्होंने गोस्सनर महाविद्यालय में हिंदी व्याख्याता के रूप में अपना योगदान दिया. यहां वे हिंदी के साथ-साथ नागपुरी भी पढ़ाने लगे.

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1995 में हिंदी में की पीएचडी


1985 में कुमुद से इनका विवाह हुआ. उच्च शिक्षा प्राप्त कुमुद आज भी घर की जिम्मेवारियों का कुशलतापूर्वक निर्वहन करती आ रही हैं. इनकी दो बेटियां और एक बेटा श्वेताभ हैं, जो हैदराबाद में इंजीनियर हैं. 2010-11 में इंदिरा गांधी खुला विश्वविद्यालय द्वारा गोस्सनर महाविद्यालय में पढ़ाई के लिए उसे केंद्र बनाया गया, तब डॉ राम प्रसाद एकमात्र डीलिट किए हुए प्राध्यापक थे. इंदिरा गांधी खुला विश्वविद्यालय में भी इन्हें हिंदी पढ़ाने का मौका मिला. डॉ राम प्रसाद ने हिंदी कहानी में पात्र और चरित्र चित्रण विषय में 1995 में हिंदी में पीएचडी की.

मील का पत्थर साबित हुई ये पुस्तक

उनकी पुस्तक स्वातंत्र्योत्तर नागपुरी साहित्य: एक शास्त्रीय अध्ययन मील का पत्थर साबित हुई है. उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत नागपुरी कहानियों से की. उनकी कई कहानियां प्रकाशित हैं. उनका नागपुरी कहानी संग्रह प्रकाश्य है. नागपुरी तथा हिन्दी के कई पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कई कहानियां प्रकाशित हैं. 1980 से लगातार उनकी कलम चलती रही. कोरी भइर पझरा और नागपुरी गद तइरगन नामक दो पुस्तकों का उन्होंने संपादन किया. इसके साथ ही खुखड़ी-रुगड़ा नामक नागपुरी कहानी संग्रह और नागपुरी लोक कथा का भी संकलन संपादन किया है. नागपुरी पत्र – पत्रिकाओं के प्रकाशन में भी उनका भरपूर योगदान रहा है. नागपुरी पत्रिका पझरा तथा डहर के संपादक भी रहे हैं.

नागपुरी भाषा साहित्य में उनका योगदान नहीं भुलाया जा सकता

भारतीय साहित्य कोश में भी उनके कई आलेख प्रकाशित हुए हैं. 2024-25 के बीच में उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हुईं. नागपुरी लोक कथा संकलन एवं नागपुरी बाल लोककथा. डॉ राम प्रसाद एक ही उच्च कोटि के समीक्षक, कहानीकार, निबंधकार तथा शोधकर्ता थे. डॉ राम प्रसाद अपने समकालीन साहित्यकारों के बीच में अत्यंत लोकप्रिय और नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत थे. वे एक समर्पित भाषासेवी थे. नागपुरी भाषा साहित्य को विकास की राह में अग्रसर करने में उनकी भूमिका को कभी भी नहीं भुलाया जा सकता है. डॉ राम प्रसाद आज भी अपनी लेखनी के माध्यम से मातृभाषा सेवियों के हृदय में जीवित हैं.

इंकलाबी नौजवान लेखक संघ ने ऐसे किया याद


इंकलाबी नौजवान लेखक संघ के डॉ रीझु नायक एवं डॉ दिनेश कुमार दिनमणि ने कहा कि डॉ राम प्रसाद ने अपने साहित्य कर्म के द्वारा समाज को एक नयी दिशा देने का काम किया. खासकर के झारखंड की क्षेत्रीय भाषा नागपुरी को स्वतंत्र रूप से स्थापित करने का काम किया. उनके इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. उन्होंने बताया कि डॉ प्रसाद काफी मिलनसार व्यक्तित्व के धनी थे. वे हमेशा छात्रों, शोधकर्ताओं एवं नये लेखकों-रचनाकारों के लिये मार्गदर्शक अभिभावक के रूप में हमेशा खड़ा रहते थे. संघ के प्रवक्ता डॉ लालदीप गोप ने कहा कि वे हमेशा प्रेरणास्रोत रहेंगे. उनकी उच्चकोटि की साहित्य रचना समाज और रचनाकारों को प्रेरित करती रहेगी.

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