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झारखंड में पलायन, बाल तस्करी और बाल विवाह का लॉकडाउन कनेक्शन

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश भर में जारी लॉकडाउन के बीच झारखंड पहुंचे 60 हजार से अधिक प्रवासियों में 25 हजार से अधिक बच्चे हैं. इसके बाद पलायन, बाल तस्करी और बाल विवाह के लिए बदनाम झारखंड में यह समस्या और गहराने की आशंका जतायी गयी है.

रांची : कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में जारी लॉकडाउन के बीच झारखंड पहुंचे 60 हजार से अधिक प्रवासियों में 25 हजार से अधिक बच्चे हैं. इसके बाद पलायन, बाल तस्करी और बाल विवाह के लिए बदनाम झारखंड में यह समस्या और गहराने की आशंका जतायी गयी है.

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प्रदेश लौटे इन बच्चों में बहुत से ऐसे हैं, जो अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी कमाने के लिए परदेस गये थे, तो कुछ मानव तस्करी का शिकार होकर अन्य राज्यों में पहुंच गये थे. ऐसे बच्चों की खोज खबर रखने वाली प्रदेश स्तरीय राज्य संसाधन केंद्र (एसआरसी) ने इन बच्चों के भविष्य को लेकर सरकार को आगाह किया है.

स्टेट रिसोर्स सेंटर ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस संबंध में एक पत्र लिखा है. इसमें मांग की गयी है कि जिलों के लिए एडवाइजरी जारी की जाये, ताकि फिर से बच्चों को पलायन न करना पड़े. एसआरसी ने इससे पूर्व बच्चों की वापसी और उनके पुनर्वास को लेकर सरकार को अलर्ट कर चुके राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का हवाला दिया है.

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एसआरसी ने मुख्यमंत्री को लिखे खत में कहा है कि मौजूदा परिस्थिति और भावी आर्थिक संकट को देखते हुए इस आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पलायन, बाल तस्करी और बाल विवाह के लिए बदनाम झारखंड में यह समस्या और भी गहरा जाये. इससे बचने के लिए जरूरी है कि सरकार ऐसे बच्चों खासकर 16 से 18 साल की लड़कियों के लिए पुनर्वास तथा कौशल विकास प्रशिक्षण पर फोकस करे.

एक सर्वे के आंकड़ों के मद्देनजर एसआरसी ने दावा किया है कि राज्य से हर साल बड़े पैमाने पर बच्चियों की तस्करी होती है. मानव तस्कर इन्हें अपना शिकार बनाते हैं और फिर उनका जीवन नर्क बन जाता है. ऐसी परिस्थितियों से उन्हें बचाने के लिए उनका पुनर्वास कर झारखंड को कलंकित होने से बचाया जा सकता है.

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