Jharkhand Village Story: तमाड़ (रांची), शुभम हल्दार-झारखंड के रांची जिले के तमाड़ प्रखंड का चिरूडीह गांव कला का संदेश दे रहा है. इस गांव के सभी घरों की दीवारें सोहराई पेंटिंग से पटी हैं. इसका पूरा श्रेय जाता है छात्र मनीष महतो को. उनकी पहल से न सिर्फ इस गांव की अलग पहचान बनी है, बल्कि प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) लेकर महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं.
2024 से आया गांव में बदलाव
श्रीनाथ यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट की पढ़ाई कर रहे 24 वर्षीय मनीष महतो सोहराई पेंटिंग का प्रशिक्षण देकर गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं. वे कहते हैं कि उन्होंने जीवन में काफी संघर्ष किया है. इसलिए अपने आसपास की महिलाओं को सोहराई पेंटिंग सिखाकर उन्हें हुनरमंद बनाना चाहते हैं. अपना हुनर निखार कर महिलाएं आत्मनिर्भर बनेंगी. इस दिशा में वे प्रयासरत हैं. सोहराई पेंटिंग का प्रशिक्षण देने की शुरुआत उन्होंने 21 अप्रैल 2024 से की है. उनके प्रयास से कई महिलाएं ये हुनर सीख चुकी हैं और अपनी पहचान बना रही हैं.
अपने घर से मनीष ने ऐसे की शुरुआत
मनीष महतो ने सबसे पहले उन्होंने अपने घर में मिट्टी की दीवारों पर सोहराई पेंटिंग बनायी. इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. इसके बाद उन्होंने गांव की बच्चियों और महिलाओं से सोहराई पेंटिंग का प्रशिक्षण को लेकर बात की. सभी ने सोहराई कला का प्रशिक्षण लेने में रुचि दिखायी. इसके बाद मनीष ने सभी को नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया. प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों में मुख्य रूप से रेखा रानी महतो, बिन्देश्वरी देवी, काजल कुमारी, रंगबाला देवी, बेबी देवी, अमृता कुमारी, यमुना देवी, सीता कुमारी और नमिता कुमारी, पूजा कुमारी, रेश्मा कुमारी, रीना कुमारी, पुष्कर महतो, पवन मुंडा, नरेंद्र मुंडा, रंजीत महतो, मुकेश कुमार समेत अन्य थे. प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मिट्टी की दीवारों पर सोहराई पेंटिंग बनाने का सिलसिला शुरू हुआ. देखते-देखते गांव के सभी मिट्टी के घरों की दीवारें सोहराई पेंटिंग से सज गयीं.

सोहराई पेंटिंग में इन रंगों का होता है प्रयोग
सोहराई पेंटिंग में मुख्य रूप से काले, भूरे, सफेद और पीले रंगों का प्रयोग किया जाता है. प्राचीन काल में ये रंग ऑर्गेनिक होते थे. घर में तैयार किए जाते थे, लेकिन बदलते वक्त के साथ वर्तमान समय में पेंट का चलन बढ़ गया है.
सोहराई कला में होती है किस तरह की पेंटिंग?
सोहराई कला में मुख्य रूप से वन्य जीवों के जीवन को दर्शाने का प्रयास किया जाता है. इस कला के माध्यम से कलाकार विभिन्न तरह की कथाओं को भी दर्शाने का प्रयास करते हैं. इनमें दंत कथा मुख्य रूप से प्रचलित विधा है. किसी पेंटिंग में जानवरों के बच्चों को उनकी मां का दूध पीते दिखाया जाता है तो किसी कहीं मैदान में बंधी गाय को सांप को स्तनपान कराते दिखाया जाता है. किसी पेंटिंग में आखेट का चित्रण होता है, कहीं जलाशय में पानी पीते समय हाथी की चहलकदमी दिखती है.

बचपन का शौक हुआ पूरा, मिली नयी पहचान-रेखा रानी महतो
चिरूडीह गांव की रेखा रानी महतो ने कहती हैं कि मनीष महतो की इस पहल से उन्हें अपने हुनर को निखारने का मौका मिला. उन्हें बचपन से ही पेंटिंग का शौक था. शादी से पहले कई बार पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग ले चुकी हैं, लेकिन अब सोहराई पेंटिंग के माध्यम से नयी पहचान मिली है.
कौन हैं मनीष महतो?
मनीष महतो रांची जिले के तमाड़ प्रखंड के छोटे से गांव चिरूडीह के रहनेवाले हैं. वे श्रीनाथ विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट के छात्र हैं. ज्यादातर ग्रामीण जीवन पर पेंटिंग बनाते हैं. ग्रामीण परंपरा को हुनर के जरिए लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. सोहराई पेंटिंग के माध्यम से वे गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं. मनीष महतो कहते हैं कि आज लोकल के साथ ऑनलाइन सोहराई पेंटिंग की काफी मांग है. इस फील्ड में अच्छा अवसर है.
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