Telangana Tunnel Collapse Update| गुमला, दुर्जय पासवान : तेलंगाना के नागरकुरनूल के सुरंग में गुमला शहर से सटे तिर्रा गांव का संतोष साहू भी फंसा है. संतोष की पत्नी और तीन बच्चे यहां हैं. जब से संतोष सुरंग में फंसा है, तब से उसकी पत्नी संतोषी देवी गुमशुम रहने लगी है. उसने खाना-पीना बंद कर दिया है. हालांकि, अपने दर्द को छिपाकर हर दिन बच्चों को स्कूल भेज रही है. इसके बाद दिन भर दरवाजे के पास दिन भर इस इंतजार में बैठी रहती है कि उसका पति तेलंगाना से आ जायेगा. फोन कभी नहीं छोड़ती, क्योंकि उसे उम्मीद है कि उसका पति लौटेगा. संतोष को तेलंगाना से लाने के लिए उसका भाई श्रवण साहू नागरकुरनूल गया हुआ है.

संतोष के गांव तुर्रा में पसरा है मातम
संतोष की पत्नी संतोषी हर घंटे अपने भाई को फोन करती है. उससे पूछती है कि संतोष सुरंग से निकला या नहीं. शनिवार को प्रभात खबर तिर्रा गांव पहुंचा, तो पाया कि संतोष समेत गुमला जिले के 4 लोगों के सुरंग में फंसने की सूचना मिलने के बाद से पूरे गांव में मातम पसरा है. हर कोई संतोष के आने का इंतजार कर रहा है. यहां तक कि सुबह-शाम गांव वाले संतोषी देवी के घर पहुंचकर उसका हालचाल ले रहे हैं.
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संतोष की पत्नी संतोषी साहू की आंखों में आ गये आंसू
प्रभात खबर से बातचीत के क्रम में संतोषी साहू अपने दर्द को नहीं छिपा सकी. संतोषी ने कहा कि उसके पति के सिवा घर में कमाने वाला कोई नहीं है. उसके 3 बच्चे हैं. सभी छोटे हैं. अगर उसके पति को कुछ हो गया, तो परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा. पति को याद कर उसकी आंखों में आंसू आ गये.
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संतोष के भाई ने कहा- एक सप्ताह से सब दुखी हैं
संतोष साहू के बड़े भाई अशोक साहू ने बताया कि एक सप्ताह से परिवार के सभी लोग दुखी हैं. गांव के लोग दुखी हैं. क्या होगा, क्या नहीं, यही सोचते रहते हैं. संतोष को सुरंग से कब तक निकाला जायेगा, कोई नहीं जानता. जो लोग तेलंगाना गये हैं, उनसे हर दिन कई बार फोन पर जानकारी लेते हैं. उनको भी कुछ नहीं मालूम कि कब तक सुरंग में फंसे लोगों तक राहत टीम पहुंच पायेगी. गुमला प्रशासन से मदद की उम्मीद है. संतोष के बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में मदद करें. चाचा सत्यनारायण साहू ने कहा कि संतोष सकुशल आ जाये, यही ईश्वर से प्रार्थना है. उन्होंने कहा कि बचाव दल उस जगह पहुंचने के करीब है, जहां मलबा ढहा था. जल्द ही कुछ नयी जानकारी सामने आयेगी, ऐसी उम्मीद है.

रोजगार बंद हुआ, तो पलायन कर गया
करौंदी तिर्रा गांव में रोजगार का साधन ईंट-भट्ठा, पत्थर तुड़ाई और ट्रैक्टर से बालू बेचना था. इस क्षेत्र को वन्य प्राणी क्षेत्र में शामिल किये जाने के कारण सभी ईंट-भट्ठे बंद हो गये. पत्थरों का खनन बंद है. ट्रैक्टर से बालू बेचने पर प्रशासन कार्रवाई करता है. क्षेत्र में सरकार की तरफ से कोई सरकारी योजना नहीं चल रही. इसलिए क्षेत्र के अधिकांश युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन कर गये हैं. संतोष साहू गांव में ट्रैक्टर चलाता था. स्थानीय स्तर पर रोजगार खत्म हुआ, तो 3 साल पहले वह तेलंगाना चला गया.
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