Independence Day 2025 Freedom Fighter: देश की आजादी में हर आयु वर्ग के लोगों ने अहम योगदान दिया था. नौजवान, बूढ़े और महिलाओं में ही नहीं, किशोरों में भी देशभक्ति का जुनून सिर चढ़कर बोल रहा था. गांव-गांव में राष्ट्रभक्त ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दे रहे थे. आजादी की लड़ाई के दौरान ऐसे ही एक देशभक्त हुए काशीनाथ मुंडा, जिन्होंने महज 14 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी थी. वे सातवीं कक्षा में पढ़ते थे. उन्होंने बोकारो के पेटरवार डाकखाने में आग लगा दी थी. उन्हें गिरफ्तार कर पटना जेल भेज दिया गया था. नौ महीने बाद जेल से रिहा हुए तो उन्हें अंग्रेजों ने पढ़ने की अनुमति नहीं दी. स्कूल के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए गए. 12 फरवरी 2009 को उनका निधन हुआ.
अंग्रेजों को देखते ही लगाने लगते थे इंकलाब जिंदाबाद के नारे
बोकारो के पेटरवार गांव के मठ टोला के रहनेवाले वीर योद्धा काशीनाथ मुंडा सातवीं कक्षा में पढ़ते थे. उसी वक्त उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी थी. 14 साल की उम्र में ही वे अंग्रेजों से भिड़ गए थे. वे जब भी अंग्रेज सिपाहियों को देखते थे तो उन्हें ललकारने लगते थे. बंदे मातरम् और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगते थे. बगावती तेवर, लेकिन छोटी उम्र देखते हुए अंग्रेज उन्हें चेतावनी देकर छोड़ देते थे. इसके बावजूद काशीनाथ मुंडा पर चेतावनी का कोई असर नहीं दिखा.
काशीनाथ मुंडा ने डाकखाने में लगा दी थी आग
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान काशीनाथ मुंडा ने पेटरवार डाकखाने में आग लगा दी थी. उस समय पेटरवार में अंग्रेजों का न्यायालय था. आगजनी से अंग्रेज बौखला गए और काशीनाथ मुंडा को गिरफ्तार कर पटना जेल भेज दिया गया. नौ महीने तक वे पटना जेल में रहे. रिहा होने के बाद वे पेटरवार लौटे और आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे. वे आगे की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत का विरोध भारी पड़ा. अंग्रेजों ने उन्हें पढ़ाई की अनुमति नहीं दी. स्कूल के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए गए. इस कारण वे महज सातवीं तक ही पढ़ सके.
इंदिरा गांधी ने दिल्ली में किया था सम्मानित
काशीनाथ मुंडा स्वर्गीय मोहन मुंडा के दो पुत्रों में छोटे थे. उनके बड़े भाई का नाम देवकी मुंडा था. काशीनाथ मुंडा को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन नवंबर 1982 से वर्ष 2009 तक मिली. हर महीने उन्हें 300 रुपए पेंशन मिलती थी. आजादी के बाद उन्हें सिंचाई विभाग (तेनुघाट) में फोर्थ ग्रेड में नौकरी मिली. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बुलावा पर वे दिल्ली गए, जहां इन्हें ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया गया था.
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