Independence Day 2025: बख्तर साय और मुंडल सिंह. देश की आजादी में इन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. इन वीर सपूतों ने अपनी बहादुरी से अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. देशभक्ति में ये शहीद हो गए, लेकिन आज भी गुमला के रायडीह की वादियों में इनकी वीरता की कहानियां गूंजती हैं. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बख्तर साय और मुंडल सिंह ने नवागढ़ क्षेत्र की गुफाओं को अपना ठिकाना बनाया था. बख्तर साय ने टैक्स वसूली करने पहुंचे हीरा राम का सिर काटकर महाराजा हृदयनाथ शाहदेव को भेज दिया था. 23 मार्च 1812 को बख्तर साय और मुंडल सिंह को अंग्रेजों ने पकड़ लिया था. 4 अप्रैल 1812 को दोनों देशभक्तों को कलकत्ता में फांसी दे दी गयी थी.
बख्तर साय ने महाराजा को भेजा था हीरा राम का सिर काटकर
बख्तर साय नवागढ़ परगना (वर्तमान में रायडीह प्रखंड) के जागीरदार थे. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को खुली चुनौती दी थी और उसे पराजित किया. हार के बाद अंग्रेजों ने छोटानागपुर के महाराजा हृदयनाथ शाहदेव से संधि की और 12 हजार रुपए टैक्स वसूलने लगे. उस समय अंग्रेज टैक्स वसूली के लिए कड़ा रुख अपनाते थे. जागीरदार और रैयत पैसे देकर परेशान थे. अंग्रेजों से संधि के बाद महाराजा हृदयनाथ शाहदेव ने हीरा राम को टैक्स वसूली के लिए नवागढ़ भेजा. बख्तर साय ने हीरा राम का सिर काटकर महाराज को भेज दिया.
मजिस्ट्रेट ने बख्तर साय को पकड़ने के लिए सैन्य टुकड़ियां भेजी
महाराजा हृदयनाथ शाहदेव इससे काफी क्रोधित हो गए. ईस्ट इंडिया कंपनी को इसकी सूचना दी गयी. 11 फरवरी 1812 को रामगढ़ मजिस्ट्रेट ने लेफ्टिनेंट एचओ डोनेल के नेतृत्व में हजारीबाग की सैन्य टुकड़ियों को नवागढ़ के जागीरदार बख्तर साय को पकड़ने के लिए भेजा. इसी बीच रामगढ़ बटालियन के कमांडेंट आर गार्ट ने छोटानागपुर के बारवे (वर्तमान में रायडीह, चैनपुर और डुमरी), जशपुर और सरगुजा के राजा को पकड़ने के लिए एक पत्र लिखा. इसके साथ ही पूरे क्षेत्र की नाकेबंदी करने के लिए सहायता मांगी.
नवागढ़ को सैनिकों ने घेरा, मदद के लिए पहुंचे मुंडल सिंह
जशपुर राजा के साथ आर गार्ट के अच्छे संबंध थे. इसका फायदा उठाते हुए लेफ्टिनेंट एचओ डोनेल ने हजारों सैनिकों के साथ मिलकर नवागढ़ को घेर लिया. अंग्रेजों के मंसूबों की जानकारी पनारी परगना के जागीरदार मुंडल सिंह को हुई. वे बख्तर साय की सहायता के लिए नवागढ़ पहुंच गए और दोनों वीर सपूतों ने अंग्रेजों से लोहा लिया.
इनकी वीरता के गवाह हैं तालाब और शिवलिंग
बख्तर साय और मुंडल सिंह जिस तालाब का पानी पीते थे, वह तालाब आज भी मौजूद है. युद्ध के दौरान यह तालाब खून से भर गया था. इसलिए इसे रक्त तालाब भी कहते हैं. नवागढ़ में वह शिवलिंग आज भी मौजूद है, जहां दोनों पूजा करते थे. गढ़पहाड़ आज भी इन दोनों वीरों की वीरता की कहानी बयां करता है.
4 अप्रैल 1812 को मुंडल सिंह और बख्तर साय को फांसी
वर्ष 1812 की बात है. नवागढ़ के आसपास घने जंगल थे. ऊंचे-ऊंचे पहाड़ थे. अंग्रेजों को मुंडल सिंह और बख्तर साय तक पहुंचने में परेशानी होती थी. ऐसे में अंग्रेजों ने विशेष रणनीति बनायी और नवागढ़ को चारों ओर से घेर लिया. इस बीच बख्तर साय और मुंडल सिंह जगह बदलकर आरागढ़ा की गुफा में रहने लगे. अंग्रेजों को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने गुफा तक जाने वाली नदी के पानी को गंदा कर दिया, ताकि बख्तर साय और मुंडल सिंह अपने सैनिकों के साथ पानी नहीं पी सकें. अंग्रेजों की इस गंदी चाल के बाद बख्तर और मुंडल जशपुर (छत्तीसगढ़) के राजा रणजीत सिंह के यहां गए. वे यहां से कहीं और जा रहे थे. इसी दौरान 23 मार्च 1812 को अंग्रेजों ने दोनों को पकड़ लिया. 4 अप्रैल 1812 को दोनों देशभक्तों को कलकत्ता के फोर्ट विलियम में फांसी दे दी गयी.

