रांची.
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा है कि पेसा कानून आदिवासी समाज के अस्तित्व से जुडा है. कोर्ट के आदेश के बावजूद झारखंड सरकार इसे लागू नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए मैंने पेसा अधिनियम की समीक्षा की थी. पारंपरिक स्वशासन और ग्राम सभाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कुछ विशेष प्रावधान भी जुड़वाये थे. हमने सभी बालू घाटों एवं लघु खनिजों के खनन को ग्रामसभा को सौंपने का प्रस्ताव रखा था. उसे विधि विभाग की स्वीकृति भी मिल गयी, लेकिन डेढ़ साल बाद भी सरकार पेसा को लागू नहीं करना चाहती है. उन्होंने कहा कि पेसा लागू होने के बाद आदिवासी बहुल गांवों में किसी भी प्रकार की सभा करने अथवा धार्मिक स्थलों का निर्माण करने से पहले ग्रामसभा व पारंपरिक ग्राम प्रधान (पाहन, मांझी परगना, मानकी मुंडा, पड़हा राजा आदि) की अनुमति लेनी होगी. इससे न सिर्फ हमारी पारंपरिक व्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि धर्मांतरण भी रुकेगा. लेकिन, सरकार को शायद यह मंजूर नहीं है. आदिवासी संस्कृति का मतलब सिर्फ पूजन पद्धति नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन शैली है. जन्म से लेकर शादी-विवाह और मृत्यु तक, हमारे समाज की सभी प्रक्रियाओं को मांझी परगना, पाहन, मानकी मुंडा, पड़हा राजा व अन्य पूरा करवाते हैं. पूर्व उन्होंने कहा कि अगर धर्मांतरण को नहीं रोका गया, तो भविष्य के हमारे सरना स्थलों, जाहेर स्थानों, देशावली आदि में कौन पूजा करेगा. ऐसे तो हमारी संस्कृति ही खत्म हो जायेगी. हमारा अस्तित्व ही मिट जायेगा. पेसा अधिनियम का लक्ष्य हमारी पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करना है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

