रांची. गिरिडीह सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी ने बोकारो थर्मल, मैथन बांध और कोनार बांध परियोजना के निर्माण के लिए ग्रामीणों को विस्थापित कर बनी नयी बस्ती और नवाटांड़, लुआडीह, भुरसा व कैसरकरल के विस्थापितों का मुद्दा संसद में उठाया. कहा कि वहां के विस्थापित पिछले 70 वर्षों से भूमिहीन होकर शरणार्थी की तरह जीवन जी रहे हैं. उन्होंने केंद्र सरकार और विद्युत मंत्रालय से ऐसे विस्थापितों की समस्याओं पर संज्ञान लेने की मांग की. कहा कि इन विस्थापितों को कहने के लिए तो पुनर्वासित कर दिया गया है, लेकिन उनको केंद्रीय योजनाओं का लाभ तो मिलना दूर उलटे राज्य सरकार भी विस्थापित नहीं मानती है.
स्थायी रोजगार देने का प्रावधान करने की मांग
श्री चौधरी ने उक्त गांवों के लोगों को आवंटित भूमि का अपने नाम पर तत्काल म्यूटेशन कराने, प्रत्येक पुनर्वासित परिवार को प्रमाण पत्र जारी करने, विस्थापितों को प्राथमिकता पर स्थायी रोजगार देने का प्रावधान करने, विस्थापित गांवों में बिजली, पेयजल व अन्य बुनियादी ढांचे के विकास की सुविधा सहित आय बढ़ानेवाली योजनाओं का लाभ देने की मांग की.
केंद्रीय योजनाओं के लाभ से हैं वंचित
सांसद ने कहा कि डीवीसी ने 1950-51 में बोकारो थर्मल, मैथन बांध और कोनार बांध परियोजना के निर्माण के लिए ग्रामीणों को विस्थापित कर नयी बस्ती, नवाटांड़, लुआडीह, भुरसा और कैसरकरल गांव में बसा दिया. डीवीसी ने उजाड़े गये लोगों को विभिन्न मौजों में ऐसे दस्तावेजों के साथ बसाया. लेकिन, राज्य सरकार ने पिछले भूमि सर्वेक्षण के दौरान यह स्वीकार नहीं किया. अब पुनर्वासित ऐसी भूमि पर रह रहे हैं, जो वन विभाग या डीवीसी आदि के नाम पर दर्ज है. जमीन का मालिकाना हक नहीं मिलने से किसी केंद्रीय योजना का लाभ नहीं मिलता है. पुनर्वासित लोग डीवीसी की सार्वजनिक परियोजना निर्माण के कारण अपनी पैतृक संपत्ति खोकर भूमिहीन हो गये हैं. वह पिछले 70 वर्षों से शरणार्थी की तरह रहने पर मजबूर हो गये हैं.
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