बच्चे और बुजुर्गों का रखें खास ख्याल, तेज आवाज वाले पटाखा जलाने से बचें 85 डेसिबल से अधिक आवाज वाले पटाखे कानों के लिए हानिकारक, त्वचा और आंख की सुरक्षा जरूरी मुख्य संवाददाता, रांची दीपोत्सव में बच्चे और बड़े पटाखा जलाते हैं. लेकिन, कई बार लापरवाही बड़ी दुर्घटना में तब्दील हो जाती है. ऐसे में सुरक्षित और सावधानी बेहद जरूरी है. पटाखों की चपेट में आने से सबसे ज्यादा कान, त्वचा और आंख के प्रभावित होने की संभावना हाेती है. विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है. ऑर्किड की त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ पियाली बनर्जी ने बताया कि शरीर का सबसे बड़ा अंग त्वचा होता है, जिसकी सुरक्षा बेहद जरूरी होती है. ऐसे में दीपावली पर पटाखा छोड़ते समय सावधानी बरतनी चाहिए. यदि पटाखा की चपेट में स्कीन आ जाये तो उसे रगड़े नहीं. ठंडे पानी से धोना चाहिए. मॉइस्चराइजर लगाना चाहिए. इसके बावजूद भी अगर आराम नहीं मिले तो डॉक्टर से संपर्क करें. वहीं, पॉपुलर नर्सिंग होम की इएनटी रोग विशेषज्ञ डॉ पल्लवी शर्मा ने बताया कि पटाखा जितनी ऊंची आवाज की हो उसकी डिमांड ज्यादा होती है. यह ध्यान नहीं दिया जाता है कि पटाखा की आवाज से कान के पर्दा पर दुष्प्रभाव पड़ता है. 85 डेसिबल से ज्यादा आवाज के पटाखा के कान के लिए हानिकारक होते हैं. इसलिए इसका ख्याल रखें. बच्चे को अकेले पटाखा नहीं छोड़ने दें. गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को पटाखा और उसके धुआं से दूर रखें. प्रदूषण से सांस और एलर्जी की समस्या बढ़ जाती है. यह सावधानी बेहद जरूरी – हाथ से पकड़कर पटाखा नहीं छोड़ें – सूती, ढीले-ढाले और आरामदायक कपड़े पहनें, सिंथेटिक या नायलॉन का कपड़ा नहीं हो. – खुले मैदान या ऐसी जगह पर ही पटाखे जलाएं जहां आसपास ज्वलनशील पदार्थ नहीं हो – पटाखे जलाने की जगह पर एक बाल्टी पानी और रेत जरूर रखें. – प्रदूषण बढ़ने से सांस की समस्या बढ़ती है, इसलिए अस्थमा व सीओपीडी के मरीज सावधानी बरतें – बच्चों को अकेले पटाखा नहीं जलाने दें, बड़ों की निगरानी में ही पटाखे जलाने दें.
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