Carbon Tax: स्टील इंडस्ट्री दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला उद्योग है. भारत में कुल कार्बन का 12 प्रतिशत सिर्फ स्टील इंडस्ट्री से निकलता है. दुनिया के अन्य देशों में यह 9 प्रतिशत है. भारत को कार्बन उत्सर्जन में कटौती करना ही होगा. ग्रीन स्टील की ओर बढ़ना होगा. नेट जीरो के सिवा कोई रास्ता नहीं है. ये बातें तुषार कांति साहू ने रांची के मेकॉन कम्युनिटी हॉल में सीआईडीसी-मेकॉन की ओर से आयोजित ‘न्यू जेन पावर, इलेक्ट्रिकल एंड ऑटोमेशन सॉल्यूशन फॉर मेटल एंड माइनिंग इंडस्ट्री – वेंडर इम्पावरमेंट कॉन्क्लेव’ में कहीं.
कार्बन कटौती नहीं करने पर चुकानी होगी भारी कीमत
कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल (सीआईडीसी) के वरिष्ठ सलाहकार तुषार कांति साहू ने स्टील सेक्टर को सचेत करते हुए कहा कि अगर कार्बन कटौती के लक्ष्यों को भारत हासिल नहीं करता है, तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी होगी. भारतीय उद्योग को बहुत ज्यादा नुकसान होगा. खासकर स्टील, फर्टिलाइजर, इलेक्ट्रिक केबल, सीमेंट, एल्यूमिनियम उद्योग को इसका खामियाजा भुगतना होगा, क्योंकि इसका निर्यात महंगा हो जायेगा.
साहू ने कार्बन टैक्स से होने वाले नुकसान के बारे में भी बताया
देश के अलग-अलग हिस्से से सीआईडीसी-मेकॉन के इस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए रांची आये उद्योगपतियों को उन्होंने बताया कि इसके क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं. टीके साहू ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन के लिए भारत बहुत ज्यादा जिम्मेदार नहीं है, फिर भी उसने कार्बन कटौती का एक लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसे हमें हासिल करना ही होगा. इसके सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं है.
भारत में बनी चीजों का निर्यात हो जायेगा महंगा
सीआईडीसी के विशेष सलाहकार ने कहा कि अगर नेट जीरो के लक्ष्य को भारत ने हासिल नहीं किया गया, तो उसे कार्बन टैक्स चुकाने के लिए तैयार रहना होगा. इसकी वजह से भारत में बनी चीजों का निर्यात महंगा हो जायेगा. जहां हम अपने उत्पादों का निर्यात करेंगे, अगर वहां के लोकल मार्केट में इससे सस्ता मिलेगा, तो भारत के उत्पादों को खरीदार नहीं मिलेंगे. ऐसे में उद्योगों पर अलग तरह का संकट आयेगा.
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निर्यात टैक्स के बराबर देना होगा Carbon Tax
सेल के पूर्व निदेशक (कॉमर्शियल) टीके साहू ने कहा कि अगर यूरोपीय देशों को निर्यात किये जाने वाले उत्पादों में कार्बन मिला, तो जितना टैक्स आप जमा करते हैं, उसका डबल आपको देना होगा. यानी निर्यात टैक्स के बराबर कार्बन टैक्स का भी भुगतान करना पड़ेगा. ऐसे में आपकी चीजें महंगी हो जायेंगी और आप मुनाफा नहीं कमा पायेंगे. इसलिए कार्बन कटौती जरूरी है.
जनवरी 2026 से लागू हो जायेगा CBAM
साहू ने उद्योगपतियों को बताया कि यूरोपीय देशों ने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए CBAM (कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकेनिज्म) तैयार किया है. जनवरी 2026 से CBAM अमल में आ जायेगा और उसके बाद भारतीय कारोबारियों के लिए यूरोप में अपना सामान निर्यात करना महंगा पड़ेगा.
कार्बन कटौती के साथ कार्बन लीकेज भी रोकना होगा
उन्होंने कहा कि आपको सिर्फ कार्बन कटौती ही नहीं करनी है, कार्बन लीकेज भी रोकना होगा. कहा कि यह जानना जरूरी है कि यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ईयू ईटीएस) के तहत, कार्बन लीकेज के महत्वपूर्ण जोखिम वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों को उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को समर्थन देने के लिए विशेष उपचार प्राप्त होता है.
क्या है कार्बन लीकेज?
साहू ने कहा कि कार्बन लीकेज उस स्थिति को कहते हैं, जब जलवायु नीतियों से संबंधित लागतों के कारण, व्यवसायी अपने उत्पादन को कम उत्सर्जन प्रतिबंधों वाले अन्य देशों में ट्रांसफर कर देते हैं. इससे उनके कुल उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है. उन्होंने बताया की CBAM ने 250 डॉलर प्रति टन कार्बन टैक्स का भुगतान करना होगा. कोई भी कंपनी ऐसा नहीं करना चाहेगी.
कॉन्क्लेव में ये कंपनियां हुईं शामिल
- एडवांस पावर कंट्रोल लिमिटेड
- इनफिनाइट अपटाइम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
- जोस्ट इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड
- एनआईडीईसी इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
- वी-मार्क इंडिया लिमिटेड
- लाइवलाइन इलेक्ट्रॉनिक्स
- आदर्श कंट्रोल एंड ऑटोमेशन प्राइवेट लिमिटेड
- नेलुम्बो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड
- हिताची हाई-रेल पावर इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड
- बीसीएच
- सी एंड एस
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