रांची.
कोल इंडिया के पूर्व चेयरमैन गोपाल सिंह ने कहा कि कोयला कंपनियों के लिए आनेवाला समय चुनौतियों भरा होगा. इस पर अभी से ही सोचने की जरूरत है. खनन की गुणवत्ता (मुख्य रूप से पर्यावरण) को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय चुनौती है. देश पर दबाव है 2070 तक नेट जीरो करने का. जितना कार्बन निकलेगा, उतना ही कार्बन पृथक्करण करना है. इसके लिए बड़ी तैयारी की जरूरत है. श्री सिंह ने उक्त बातें कोल इंडिया के कोलकाता में आयोजित जेजी कुमार मंगलम लेक्चर सीरीज में कही. श्री सिंह ने कहा कि इसमें कोल इंडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. जो कोयला खनन क्षेत्र में स्थापित थे, उनको विस्थापित किया गया. अब फिर से स्थापित करने की जरूरत है. ऐसा नहीं हुआ, तो पूरा झारखंड परेशान होगा. खनन से राज्य को बड़ी आय होती है. रोजगार मिलता है. देश के विकास की रफ्तार के साथ अगर आगे चलना है, तो अभी से सोचना होगा. इसके लिए इंडिया की कंपनियों को अपने मूल काम (कोयला निकालने) के अतिरिक्त भी अन्य काम करने होंगे. 2047 तक देश को 40 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए 2100 गिगावाट बिजली का उत्पादन करना होगा. वहीं, देश में 708 गिगावाट बिजली की मांग होगी. यह बिजली रिनुअल और थर्मल से आयेगी. कंपनी को ऊर्जा के दूसरे सोर्स पर तेजी से काम करना होगा.कोल इंडिया को कम से कम 100 गिगावाट बिजली तैयार करना होगा. इसमें 75 गिगावाट सोलर से होना चाहिए. कोयला कंपनियों को कोयला के अतिरिक्त दूसरे खनन के क्षेत्र में कदम रखना होगा. देश ही नहीं, विदेशों में भी पहुंच बनानी होगी. आने वाले समय में कोयला खनन रुक सकता है. इस कारण अभी ज्यादा से ज्यादा कोयला निकालने की कोशिश करनी चाहिए. इससे दूसरे देशों से आने वाले करीब 180-185 मिलियन टन को रोका जा सके. इससे रोजगार भी बढ़ेगा. प्रदूषण रहित ऊर्जा के स्त्रोत के लिए कम से कम ऐश वाला कोयला तैयार करना होगा. ज्यादा से ज्यादा वाश कोल दूसरे राज्यों को आपूर्ति करना चाहिए.
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