भाजपा ने उपचुनाव को चुनौती के रूप में लिया था़ पूरी ताकत झोंक दी थी़ राज्य भर से कार्यकर्ताओं की टीम लगायी गयी थी़ मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी सप्ताह भर कैंप किया. बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं को रिचार्ज किया़ उधर, झामुमो को अपनी पुरानी जमीन पर भरोसा था़ लिट्टीपाड़ा में झामुमो ने अपनी चाल चली़ पहले टिकट देने में भाजपा को फंसाया़ स्व अनिल मुरमू की पत्नी को टिकट देने के अटकलों के बीच सबको फंसा कर रखा़ साइमन मरांडी को टिकट देकर झामुमो ने सबको चौंका दिया.
झामुमो की पूरी रणनीति काम आयी़ स्व मुरमू की पत्नी को भी झामुमो मैदान में उतारता, तो साइमन दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ते़ साइमन का अपना जनाधार था़ वह झामुमो के वोट बैंक पर ही सेंध मारते़ इधर, स्व मुरमू की पत्नियों के विवाद का फायदा झामुमो ने उठाया़ झामुमो की दोनों पत्नियों का नामांकन रद्द होने के बाद रास्ता थोड़ा आसान हो गया़ स्व मुरमू की पत्नी भाजपा खेमे में गयी, लेकिन इसका खास असर नहीं पड़ा़ लिट्टीपाड़ा के ग्रामीण अंचल में झामुमो की गहरी पैठ को तोड़ना आसान नहीं था़ भाजपा को पहाड़िया पर भरोसा था़ इसके साथ गैर आदिवासी वोटों को जोड़ कर भी वह रणनीति बना रही थी़ भाजपा संताल आदिवासी वोट बैंक में सेंध नहीं मार पायी़ .उधर, झाविमो भी बहुत वोट बटोर नहीं पाया़ झाविमो के 10 हजार वोट के अंदर सिमटने का फायदा झामुमो को हुआ़ संताल आदिवासी का वोट इंटैक्ट रहा़ भाजपा के वोट बढ़े, इसका मुख्य कारण दो ध्रुवीय चुनाव रहा़ टक्कर भाजपा और झामुमो के बीच में ही रही़ यही कारण है कि जीत का अंतर कम रहा़

