हाल एड्स कंट्रोल सोसाइटी का. कम हैं कर्मी, दूसरे विभागों से नहीं मिलती मदद
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67 की जगह 14 कर्मियों से चल रहा काम
हाल एड्स कंट्रोल सोसाइटी का. कम हैं कर्मी, दूसरे विभागों से नहीं मिलती मदद रांची : झारखंड एड्स कंट्रोल सोसाइटी में अधिकतर काम प्रभार में चल रहा है. फिलवक्त 67 की जगह सिर्फ 14 कर्मी काम कर रहे हैं. लगभग दो वर्ष से कोई स्थायी वित्त पदाधिकारी नहीं है. कर्मचारियों की कमी के कारण योजनाओं […]
रांची : झारखंड एड्स कंट्रोल सोसाइटी में अधिकतर काम प्रभार में चल रहा है. फिलवक्त 67 की जगह सिर्फ 14 कर्मी काम कर रहे हैं. लगभग दो वर्ष से कोई स्थायी वित्त पदाधिकारी नहीं है. कर्मचारियों की कमी के कारण योजनाओं की निगरानी सही तरीके से नहीं हो पा रही है. कई योजनाओं पर अभी तक काम भी शुरू नहीं हुआ है. सोसाइटी की त्रैमासिक पत्रिका उजाला का भी इस बार प्रकाशन नहीं हो पाया है. इसकी दो योजना शिक्षा व कल्याण विभाग के सहयोग से चलती है, पर उनसे भी सहयोग नहीं मिल रहा है.
बावजूद इसके सोसाइटी ने चालू वित्त वर्ष में 15 फरवरी तक अपने बजट की 44.8 प्रतिशत राशि खर्च करने में सफलता पायी है. जानकारों के अनुसार, टारगेटेड इंटरवेंशन (लक्षित हस्तक्षेप) का काम स्वयंसेवी संस्थाएं करती हैं. फिलहाल राज्य में 32 एनजीओ काम कर रहे हैं. चालू वित्त वर्ष में उनके काम के एवज में भुगतान नहीं हुआ है. उनका भुगतान होने पर खर्च होनेवाली राशि का प्रतिशत बढ़ जायेगा. पर यहां भी पेच फंसा हुआ है. इन स्वयंसेवी संस्थाओं को अगले वित्त वर्ष में काम देने सहित उनके काम के आकलन के लिए उनके काम का निरीक्षण किया जाता है, पर कर्मचारियों की कमी के कारण यह भी होना संभव नहीं.
सोसाइटी में दो वर्षों से कोई स्थायी वित्त पदाधिकारी नहीं
नहीं हो पाया वाल राइटिंग
राज्य के नौ जिलों में (रांची, हजारीबाग, कोडरमा, सिंहभूम, पलामू, गढ़वा, गिरिडीह, साहेबगंज व धनबाद) जागरूकता के लिए वाल राइटिंग होना है. 22.5 लाख रुपये की लागत से होनेवाले इस काम के लिए सोसाइटी को समाज कल्याण विभाग की मदद चाहिए. यह काम उसे ही करना है, पर अभी तक समाज कल्याण विभाग की ओर से सोसाइटी को कोई सूचना नहीं दी गयी है.
शिक्षा विभाग भी नहीं लेता रुचि
सोसाइटी की ओर से शिक्षण संस्थानों में जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाना है. इसके लिए सोसाइटी शिक्षा विभाग को पैसा देती है. चालू वित्त वर्ष में यह भी नहीं हो पाया है. सूत्र बताते हैं कि इसके लिए शिक्षा विभाग पिछले वर्ष का उपयोगिता प्रमाण पत्र देता है, तभी उसे अगली राशि दी जाती है. इस बार वो राशि नहीं दी गयी, क्योंकि शिक्षा विभाग ने अभी तक उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया है.
ये दिक्कतें भी हैं आम
कम कर्मचारी होने के कारण कई काम प्रभार में चल रहे हैं. अधिकांश प्रभारी उस काम के लिए ट्रेंड नहीं हैं और न ही उनके लिए ट्रेनिंग की कोई व्यवस्था है. सुविधाओं की कमी से तय योजनाओं पर भी काम नहीं हो पाता. ग्रामीण इलाका होने के कारण यहां नुक्कड़ नाटक से जागरूकता फैलाने में मदद मिलती, पर तय 800 नुक्कड़ नाटक में अभी तक एक भी नहीं हुआ है.
घोटाले की काली छाया से परेशानी
सोसाइटी में वर्ष 2007-08 में 22 लोग रखे गये थे. इनमें से सात चतुर्थवर्गीय कर्मी तो बिना पद के ही रखे गये थे. इन सबको सात अक्तूबर 2016 से निलंबित कर दिया गया है. इनकी जांच की जा रही है.
ऐसे में कैसे होगा एड्स का निवारण
झारखंड के कई जिले प्रभावित जोन हैं. प्रभावित लोगों की संख्या में कमी भी नहीं आ रही. सोसाइटी सभी कार्यक्रमों को भी नहीं चला पा रही, ऐसे में जानकारों का कहना है कि कैसे झारखंड में एड्स पर होगा नियंत्रण.
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