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नहीं चेते, तो रांची भी हो जायेगी दिल्ली

बीसी निगम दिल्ली में गत दो-तीन नवंबर को वायु प्रदूषण की झलक हम देख चुके हैं. मैं स्पोर्ट्स शू व ट्रैकसूट लेकर दिल्ली गया था कि वहां भी रांची की तरह मॉर्निंग वॉक का सिलसिला जारी रखूंगा, पर सुबह के समाचारपत्रों एवं दूरदर्शन ने बताया कि बाहर गैस चैंबर जैसी स्थिति है. हिटलर ने तो […]

बीसी निगम
दिल्ली में गत दो-तीन नवंबर को वायु प्रदूषण की झलक हम देख चुके हैं. मैं स्पोर्ट्स शू व ट्रैकसूट लेकर दिल्ली गया था कि वहां भी रांची की तरह मॉर्निंग वॉक का सिलसिला जारी रखूंगा, पर सुबह के समाचारपत्रों एवं दूरदर्शन ने बताया कि बाहर गैस चैंबर जैसी स्थिति है.
हिटलर ने तो इनसानों को मारने के लिए कुछ ही गैस चैंबर बनाये थे, पर हमने तो पूरे शहर को गैस चैंबर में तब्दील कर दिया है. क्या आपने कभी सोचा था कि वायु प्रदूषण स्कूल बंद कर देंगे? यह भी तय है कि हालात नहीं बदले, तो रांची को भी दिल्ली बनने में बहुत वक्त नहीं लगेगा. ऐसे में वायु प्रदूषण के प्रति सजग होना जरूरी है.
आम नागरिकों सहित सरकारी तंत्र को भी वायु प्रदूषण संबंधी तकनीकी जानकारी रखनी होगी. वायु में ठहरे हुए सूक्ष्म कण वायु को प्रदूषित करते हैं. यह कण धूल, धुएं, पॉलेन, बैक्टीरिया, वायरस, गैस, फ्लाई ऐश के हो सकते हैं. यदि इन कणों का आकार बड़ा होता है, तो वे अपने भार के कारण नीचे बैठ जाते हैं. पर इनका आकार 10 माइक्रो मीटर से छोटा हो, तो ये हवा में लटके रहते हैं.
ये कण यदि 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे तथा निर्धारित मात्रा से अधिक हों, तो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं. हमारे सिर का एक बाल औसतन 50-70 माइक्रोमीटर मोटा होता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार 10 माइक्रो मीटर से छोटे कण हमारे फेफड़ों एवं कॉर्डियोवास्कुलर सिस्टम पर कुप्रभाव डालते हैं. इससे सांस एवं दिल की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. वहीं 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे कण ज्यादा खतरनाक होते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार ये अतिसूक्ष्म कण कैंसर कारक तथा हमारे डीएनए को प्रभावित करने वाले होते हैं.
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट (12 मई 2016) के मुताबिक दुनिया में हर वर्ष 70 लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण मरते हैं. वहीं 2012 की रिपोर्ट के अनुसार यह आंकड़ा 30 लाख था. नाइजीरिया, पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान व भारत में 10 माइक्रोमीटर से कम आकार के सूक्ष्म कणों का औसत वार्षिक स्तर इतना अधिक है कि इस सूची में भारत दुनिया के पहले दस देशों की सूची में शामिल है.
यदि हम झारखंड और रांची की बात करें तो अभी 30 नवंबर की सुबह ही रांची (डोरंडा) में वन भवन के गेट पर राज्य प्रदूषण पर्षद की अोर से लगे डिसप्ले बोर्ड पर 10 माइक्रोमीटर अाकार वाले कणों का आंकड़ा 100 के स्थान पर 242 तथा 2.5 माइक्रोमीटर अाकार वाले कणों का आंकड़ा 60 के स्थान पर 139 था. तो क्या सचमुच इस खतरनाक वायु प्रदूषण का दिल्ली से रांची का सफर बहुत दूर है? दरअसल ऊर्जा उत्पादन, परिवहन, निर्माण कार्य तथा कचरा निष्पादन (वेस्ट डिस्पोजल) वायु प्रदूषण के मुख्य कारण हैं. यानी इन क्षेत्रों के प्रबंधन में संलग्न संस्थानों, चाहे वे सरकारी हों, अर्द्ध सरकारी या फिर गैर सरकारी, उन्हें अपना उत्तरदायित्व समझना होगा.
वहीं वायु गुणवत्ता मॉडलिंग तथा इसका आर्थिक विश्लेषण वैज्ञानिक आधार पर करना होगा. इसके लिए केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद में वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन क्षमता विकसित करने की भी जरूरत है. नये शोध व नयी खोज के सहारे खास कर कचरा प्रबंधन व ऊर्जा उत्पादन करने की जरूरत है. ऊर्जा बनाने की लगभग प्रदूषण रहित न्यूनतम तकनीक एचइएलइ (हाई इनर्जी लो इमीजन) तकनीक पर ही अब बिजली का उत्पादन होना चाहिए.
रांची की सड़कों पर अधिक प्रदूषण पैदा करने वाले वाहनों पर रोक लगाकर नयी तकनीक के वाहनों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. वाहनों की संख्या पर भी रोक लगाने की जरूरत है. वह दिन दुभार्ग्यपूर्ण होगा, जब रांची में भी हम अपने बच्चों से कहेंगे कि हवा खराब है, स्कूल मत जाअो.
(लेखक भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) रहे हैं)
Prabhat Khabar Digital Desk
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