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जेट : लाखों खर्च, फिर भी परिणाम सिफर

रांची: निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने और स्कूल कर्मियों की समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण (जेट) का गठन किया गया है. इसके अध्यक्ष व सदस्य (प्रशासनिक) के वेतन-भत्ते पर हर माह लगभग 2.50 लाख रुपये खर्च किये जा रहे हैं. सरकार ने वित्तीय वर्ष 2013-2014 के तहत अध्यक्ष व […]

रांची: निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने और स्कूल कर्मियों की समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण (जेट) का गठन किया गया है. इसके अध्यक्ष व सदस्य (प्रशासनिक) के वेतन-भत्ते पर हर माह लगभग 2.50 लाख रुपये खर्च किये जा रहे हैं. सरकार ने वित्तीय वर्ष 2013-2014 के तहत अध्यक्ष व सदस्य के वेतन-भत्ते के भुगतान के लिए 38.20 लाख रुपये का प्रावधान किया है, पर जेट में मामलों का निष्पादन उस गति से नहीं हो रहा है. जिस कारण परिणाम सिफर ही नजर आ रहा है.

प्रतिमाह औसतन तीन मामले ही निष्पादित किये गये हैं. मानव संसाधन विकास विभाग के तहत संचालित जेट में मामलों का निष्पादन काफी धीमी गति से हो रहा है. सितंबर 2012 से लेकर 28 नवंबर 2013 तक की अवधि में लगभग 34 मामले निबटाये गये हैं. उसमें से अधिकतर मामले डिफाल्ट फॉर डिसमिस (डीएफडी) किये गये हैं. यहां सप्ताह में सिर्फ तीन दिन मामलों की सुनवाई होती है. मामलों की सुनवाई के लिए नयी तिथि दो-तीन माह बाद की दी जाती है. सोमवार, बुधवार व शुक्रवार को जेट अध्यक्ष जस्टिस एसके चट्टोपाध्याय व सदस्य (प्रशासनिक) एसी रंजन मामलों की सुनवाई करते हैं.

जेट में फिलहाल 32 मामले लंबित रह गये है. इसमें अधिकतर मामले शुल्क वृद्धि से संबंधित हैं. कहा जा रहा है कि हाइकोर्ट में जनहित याचिका लंबित है. उसके फैसले के बाद शुल्क वृद्धि को चुनौती देनेवाली विभिन्न लंबित मामलों की सुनवाई की जायेगी. बताया गया कि यदि तेजी से सुनवाई की गयी, तो जेट के पास केस ही खत्म हो जायेगा.

संचार सुविधाओं से कटा हुआ है जेट
जेट से संपर्क करना कठिन हो गया है. वादी हो या प्रतिवादी दोनों की स्थिति कमोबेश एक जैसी है. जेट की दूरभाष संख्या 2444207 व 2444144 वर्ष 2012 से कटा हुआ है. न्यायाधिकरण दूरभाष को बनवा पाने में असमर्थ हो गया है. इतना ही नहीं यहां न तो इंटरनेट का कनेक्शन है और न ही इसकी अपनी वेबसाइट की सुविधा है. जानकारी लेना हो तो सीधे जेट कार्यालय आना होगा.

उदासीन है शिक्षा विभाग
जेट का पैतृक विभाग मानव संसाधन विकास विभाग है. जेट में आधारभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. एचइसी के आवासीय क्वार्टर में स्थापित जेट कार्यालय सिर्फ तीन छोटे-छोटे कमरे तक सीमित है. कर्मियों के बैठने की कौन कहे, आगंतुकों के बैठने की भी व्यवस्था नहीं है. अध्यक्ष द्वारा आठ बार विभाग को पत्र लिख कर इंफ्रास्ट्रर उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया है. तत्कालीन प्रधान सचिव डीके तिवारी, एनएन पांडेय ने जेट कार्यालय का निरीक्षण किया था. यहां की समस्याओं से रू-ब-रू हुए थे, लेकिन समस्याएं पूर्व की तरह है. विभाग उदासीन बना हुआ है.

अनुबंधकर्मियों के भरोसे चल रहा न्यायाधिकरण
न्यायाधिकरण के संचालन के लिए सरकार ने एक अध्यक्ष, दो सदस्य सहित कुल 22 पद सृजित किया था. स्थायी नियुक्ति के अभाव में वर्ष 2005 में ही अनुबंध पर कर्मी रखे गये. उनके सक्रिय योगदान से न्यायाधिकरण का कार्य संचालन हो रहा है. विभाग द्वारा न तो अनुबंधकर्मियों को काम के आधार पर नियमित मानदेय दिया जा रहा है और न ही उनके अनुबंध का विस्तार किया जा रहा है.

वर्ष 2013 में दर्ज हुए 28 केस
अध्यक्ष के अबतक के कार्यकाल के दौरान नये मामले कम ही दर्ज हुए हैं. वर्ष 2013 में अबतक 28 नये मामले दायर किये गये हैं. 2012 में 17 मामले दर्ज हुए.

कैंप कोर्ट भी नहीं लगा
कैंप कोर्ट लगाने का प्रावधान है. सरकार ने बजट में राशि का प्रावधान भी किया है. राशि जेट को आवंटित भी किया गया है. इस मद में दो लाख रुपये का प्रावधान किया गया है. फिर भी जेट की ओर से राज्य में एक भी कैंप कोर्ट नहीं लगाया गया है.

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