रांची: करीब 35 वर्षीय विधायक बादल पत्रलेख राजनीति की नयी पौध हैं. हमेशा मुस्कुराने वाले बादल जनहित व जन मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता की परंपरा भी कायम करते दिखते हैं. यह विधायक अब तक दूसरों को 42 बोतल खून दे चुके हैं. बादल दिल्ली पढ़ने गये थे. पर बी-कॉम की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके . करीब आठ-नौ वर्ष के दिल्ली प्रवास के दौरान कांग्रेस के युवा ब्रिगेड नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआइ) के साथ जुड़ कर दिल्ली में समाज सेवा करने में ज्यादा वक्त गुजरते थे.
बाद में झारखंड लौटने के बाद वे वर्ष 2009 में जरमुंडी से विधायक का चुनाव लड़े, लेकिन हरिनारायण राय से हार गये. इसके बाद समाज सेवा में उतर आये. इस दौरान उनकी घर से दूरी बढ़ने लगी. पिता इस बात से नाराज रहते थे कि बादल कोई नौकरी नहीं करता है. घर में तीन छोटे भाई हैं. उनके विवाह नहीं करने के कारण छोटे भाइयों की शादी भी नहीं हो पा रही थी. इसके बाद उन्होंने अचानक एक दिन घर छोड़ने की फैसला किया. 12 दिसंबर-2013 को वह घर से निकल गये.
घर छोड़ते वक्त चाचा की दी हुई हीरो होंडा मोटरसाइकिल व दो सेट कपड़ा ही साथ थे. पास में एक रुपये भी नहीं था. जहां जाते लोग मोटरसाइकिल में पेट्रोल भरवा देते. कोई दो-तीन सौ रुपये भी दे देता था. यह बताते हुए बादल की आंखे छलक आयी. बादल बताते हैं कि कैसे लोगों ने उन्हें न सिर्फ वोट दिया, बल्कि महिलाओं ने जीत के लिए उपवास रख मन्नतें भी मांगी. चुनाव से पहले बादल को लोग मुसाफिर बोलते थे. आज भी मुसाफिर विधायक बोलते हैं. टेंपो से विधानसभा जाने वाला यह विधायक बेखौफ हो कर मोटरसाइकिल व रिक्शे की सवारी करता है. क्षेत्र में घूमते हुए जहां रात हो गयी, वहीं डेरा जमा लेते हैं. गांव वालों के साथ खाना भी खाते हैं.
(बादल से बातचीत पर आधारित)