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Friday, March 29, 2024

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गांधी को प्रिय थी स्वच्छता : कुछ तो रखें उनके सपनों का ख्याल

सिस्टम-सरकार के भरोसे नहीं हो सकता है बदलाव, बदलना होगा नजरिया महात्मा गांधी की पुण्यतिथि आज (30 जनवरी) है. उनके पास देश-समाज के व्यापक चिंतन वाला दृष्टिकोण था. मूल्य अाधारित समाज, समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान, सत्य-अहिंसा की बुनियाद पर आधारित सामाजिक व्यवस्था तथा स्वराज उनका सपना था. गांधीजी को स्वच्छता प्रिय थी. वह […]

सिस्टम-सरकार के भरोसे नहीं हो सकता है बदलाव, बदलना होगा नजरिया
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि आज (30 जनवरी) है. उनके पास देश-समाज के व्यापक चिंतन वाला दृष्टिकोण था. मूल्य अाधारित समाज, समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान, सत्य-अहिंसा की बुनियाद पर आधारित सामाजिक व्यवस्था तथा स्वराज उनका सपना था. गांधीजी को स्वच्छता प्रिय थी. वह इसे जीवन के उच्च आदर्शों से जोड़ कर देखते थे. गांधी के इस विचार से सहमति बेहतर समाज के लिए जरूरी है. स्वच्छता अभियान गांधी के सपने को पूरा करने का माध्यम हो सकता है.
हमें इसका ख्याल रखना होगा, पर केवल सिस्टम के भरोसे काम नहीं हो सकता. केंद्र व राज्य सरकारें स्वच्छता अभियान पर करोड़ों खर्च तक कर रही हैं. पर, जब तक इस मुहिम को समाज का साथ नहीं मिलेगा, साफ-सफाई व स्वच्छता नहीं होगी. समाज स्वस्थ और निरोग नहीं होगा. इसलिए स्वच्छता के मुहिम में समाज को जोड़ने तथा इसकी चेतना जगाने की जरूरत मौजूदा वक्त की मांग है.
रातू रोड के दो मोहल्ले हैं स्वच्छता के मॉडल
रांची : शहर को साफ-सुथरा रखने के लिए रांची नगर निगम हर माह साढ़े तीन करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर रही है. लेकिन शहर की सफाई व्यवस्था ऐसी है कि यह दुरुस्त होने का नाम ही नहीं ले रही है. हालांकि शहर में कई मोहल्ले ऐसे हैं, जहां की सफाई व्यवस्था एक मॉडल की तरह है. यहां कॉलोनी को साफ-सुथरा रखने में नगर निगम से अधिक भागीदारी रहवासी निभा रहे हैं. शहर के ऐसे ही कुछ मोहल्ले की सफाई व्यवस्था को बताती एक रिपोर्ट.
साईं विहार कॉलोनी, रातू रोड
साईं विहार कॉलोनी की सफाई व्यवस्था शहर की अन्य कॉलोनियों के लिए मॉडल की तरह है. कॉलोनी में कुल 150 घर हैं. यहां सड़कों पर कहीं भी कागज का एक टुकड़ा तक नहीं दिखता है. कॉलोनी की सफाई व्यवस्था सोसाइटी के माध्यम से संचालित होती है.
हर घर में डस्टबीन है. जिनमे लोग घर के कूड़े को एकत्र करके रखते हैं. प्रतिदिन निर्धारित समय पर कूड़ा वाहन आता है और लोग अपने घरों से कूड़ा निकाल वाहन में डालते हैं. अगर किसी कारणवश कूड़ा वाहन नहीं आया, तो लोग कूड़े को इधर-उधर नहीं फेंकते हैं. बल्कि वाहन आने का इंतजार करते हैं. अगर कोई व्यक्ति इस नियम का उल्लंघन करते हुए यहां-वहां खुले में कचरा फेंकता है, तो उससे जुर्माना भी वसूलने का प्रावधान है. हालांकि, अब तक किसी ने इस नियम का उल्लंघन नहीं किया है. समय-समय पर कॉलोनी के लोग बैठ कर सफाई की योजना तैयार करते हैं.
कॉलोनी की सुंदरता इसलिए बनी हुई है, क्योंकि यहां के लोग जागरूक हैं. हम खुद तो कचरा बाहर नहीं फेंकते हैं. दूसरों को भी बाहर कचरा फेंकने से मना करते हैं. इसलिए यह कॉलोनी आज मॉडल बनी हुई है.
– अनिल गुप्ता, सचिव, साईं विहार कॉलाेनी समिति
केवल सरकार के भरोसे रहने से कुछ नहीं होगा. हमें ही आगे आकर इस शहर को सुंदर बनाना होगा. इसलिए आज इस मोहल्ले के 90 प्रतिशत घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग बना हुआ है. सड़क के दोनों ओर हरियाली बरकरार रहे, इसके लिए पौधे लगाये गये हैं.
– मनोज कुमार, निवासी, साईं विहार कॉलोनी
कृष्ण नगर कॉलोनी, रातू रोड
कृष्ण नगर कॉलोनी के लोग भी सफाई को लेकर काफी जागरूक हैं. कॉलोनी के लोगों ने खुद से खरीद कर निगम को एक ट्रॉली (ट्रैक्टर की) दी है. घर से निकलने वाले कूड़े को इसी ट्राॅली में डाला जाता है. इसके भर जाने पर निगम का ट्रैक्टर ले जाता है. बदले में दूसरी ट्रॉली उसी जगह पर खड़ी कर दी जाती है. वहीं, मोहल्ले के सभी घरों में डस्टबीन रखी है, जिसमें लोग घरेलू कूड़े को जमा करते हैं. निगम के वाहन आने पर इसे दिया जाता है. मोहल्ले में सफाई व्यवस्था दुरुस्त रहे, इसके लिए कॉलोनीवासी हर माह बैठक करके योजना तैयार करते हैं. इसमें इस वार्ड पार्षद भी प्रमुखता से भाग लेते हैं.
सफाई के मामले में आदर्श है सीएमपीडीआइ
राजधानी में कोल इंडिया की एक कंपनी सीएमपीडीआइ का कार्यालय है. कंपनी कोयला खनन के लिए डिजाइन और प्लानिंग का काम करती है. कांके रोड में इसका कार्यालय है. कांके रोड स्थित कंपनी मुख्यालय का कार्यालय किसी निजी कंपनी के कार्यालय से कम नहीं है. कंपनी परिसर में साफ-सफाई और सजावट आकर्षण का केंद्र है. कंपनी मुख्यालय स्थित हर तल्ले पर करीने से विभिन्न प्रकार के प्लांटों को रखा गया है. कंपनी परिसर में प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता है. कार्यालय को इ-ऑफिस बना दिया गया है. इसलिए कागज का उपयोग भी नहीं के बराबर होता है. कार्यालय परिसर की दीवारें भी साफ-सुथरी नजर आ रही हैं, कहीं पान की पीक या गंदगी नहीं दिखती है.
फोटो के लिए नहीं, सफाई के लिए झाड़ू पकड़ें
रांची : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपिता को स्वच्छता अभियान से जोड़ कर एक संदेश दिया था. लगा था कि इससे साफ-सफाई व स्वच्छता को भरपूर बढ़ावा मिलेगा. पर लगता है बापू के चश्मे से भी इस अभियान को साफ दृष्टि नहीं मिली. खास कर राजनीतिज्ञों व ब्यूरोक्रेट्स (अपवाद छोड़ कर) ने जब भी झाड़ू थामा, यह मजाक बन कर रह गया. देश भर के छोटे-बड़े शहरों से लेकर राजधानी तक में जब सिर्फ फोटो खिंचवाना मकसद हो जाये, तो स्वच्छता को बढ़ावा कैसे मिले? सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सर्वोच्च पद पर बैठे लोगों ने भी एेसा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. नतीजा सामने है.
अभियान के दिनों में, जब असली सफाई, सफाईकर्मियों से करायी गयी. वहां अब गंदगी पसरी रहती है. दरअसल साफ-सफाई एक अनुशासन है. दीपाटोली सहित अन्य सैन्य छावनियों में यह अनुशासन देखा जा सकता है. दूसरी अोर, रातू रोड की साईं विहार व कृष्णा नगर कॉलोनी और अशोक नगर सहित हेरिटेज गार्डेन, जैसे शहर के कई मुहल्लों में भी लोग साफ-सफाई के प्रति सजग हैं.
स्वच्छता को लेकर जागरूक नहीं हैं लोग
स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा हर वर्ष स्वच्छता सर्वेक्षण का आयोजन पूरे देश में किया जाता है. जिस शहर की सफाई व्यवस्था सबसे बेहतर होती है, केंद्र सरकार ऐसे नगर निकायों को पुरस्कृत करती है. लेकिन इस सर्वेक्षण का भी बहुत असर राजधानी में देखने को नहीं मिल रहा है. आज भी शहर के लोग खुलेआम नालियों में या घर के आसपास किसी खाली प्लॉट में कूड़ा फेंकते हैं. शहर में सिंगल यूज पॉलिथीन का भी उपयाेग धड़ल्ले से हो रहा है. नियमित सफाई नहीं हाेने और कचरावाली गाड़ी हर दिन नहीं आने के कारण अलग-अलग मुहल्लों की स्थिति नारकीय बनी हुई है. स्थिति यह है कि घर का कचरा डिब्बा भर जाने के कारण लोग मजबूरन खाली जगहों पर कचरा फेंक देते हैं. इससे मुहल्लों की स्थिति खराब हो जाती है. शहर के कई प्रमुख सड़कों पर भी कचरा फैला देखा जा सकता है.
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