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रांची : कचनार के फूल से बनेगी दवा, एम्स करेगा रिसर्च

एम्स, वन विभाग व सीसीएल के बीच हुआ एमओयू रांची : ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, नयी दिल्ली (एम्स) झारखंड में होने वाले कचनार के फूल का इस्तेमाल दवा के रूप में करने के लिए अनुसंधान (रिसर्च) करेगा. झारखंड में कचनार के फूल से तैयार औषधि का उपयोग यहां के आदिवासी ब्लड प्रेशर और […]

एम्स, वन विभाग व सीसीएल के बीच हुआ एमओयू
रांची : ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, नयी दिल्ली (एम्स) झारखंड में होने वाले कचनार के फूल का इस्तेमाल दवा के रूप में करने के लिए अनुसंधान (रिसर्च) करेगा. झारखंड में कचनार के फूल से तैयार औषधि का उपयोग यहां के आदिवासी ब्लड प्रेशर और आंख की दवा के लिए करते हैं. वन विभाग के पूर्व पीसीसीएफ डॉ संजय कुमार और सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह ने इस पर अनुसंधान की पहल शुरू की थी.
एम्स के चिकित्सक भी चाहते थे कि झारखंड के औषधीय पौधों का उपयोग दवाओं के रूप में हो. इसी योजना को अब मूर्त रूप दिया जा रहा है. इसके लिए सीसीएल, वन विभाग और एम्स के बीच एमओयू किया गया है. इसमें एम्स के निदेशक प्रो रणदीप गुलेरिया, सीसीएल के निदेशक तकनीकी भोला सिंह, सीसीएल के वन एवं पर्यावण विभाग के एचओडी सौमित्र सिंह, जीएम एके सिंह, एसएस लाल व अन्य अधिकारी मौजूद थे.
एम्स के चिकित्सक सह जांचकर्ता कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ राकेश यादव, प्रोफेसर ऑफ साइकियाट्री डॉ नंद कुमार, डॉ रामकिशोर साह, बायोकेमेस्ट्री विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ सुभ्रदीप करमाकर एम्स सीएसआर विभाग के सदस्य सचिव डॉ अनूप डागा अनुसंधान में सहयोग करेंगे. इस अनुसंधान पर करीब चार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है. योजना तीन साल चलेगी.
धुएं से होनेवाली बीमारियों का भी अध्ययन किया जायेगा : एम्स झारखंड में जलावन की लकड़ी से होनेवाली बीमारियों का अध्ययन भी करेगा. इसके लिए कोडरमा, रांची और हजारीबाग जिले का चयन किया गया है. इस पर सीसीएल के सीएसआर फंड से करीब सवा दो करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है.
वन विभाग इसमें तकनीकी रूप से सहयोग करेगा. एम्स की टीम धुएं से महिलाओं में मानसिक और शारीरिक रूप से पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करेगी.
कई बीमारियों में होता है उपयोग
बीएयू के वानिकी संकाय के शिक्षक सह हरिद्वार स्थित बाबा रामदेव के आश्रम के पूर्व सहयोगी रहे डॉ कौशल कुमार बताते हैं कि इसका बॉटनिकल नाम बहुनिया बेरीगेटा है. आयुर्वेद में इसका व्यापक प्रयोग होता है.
हाइपर टेंशन (ब्लड प्रेशर), सूगर, पाचन तंत्र मजबूत करने के साथ-साथ शरीर को बीमारी रोधी बनाने में सहायक होता है. इसके छाल का अधिक प्रयोग होता है. झारखंड में इसका फूल और पत्ते का उपयोग खाने के लिए होता है. पत्ते का उपयोग साग के रूप में झारखंड के लोग करते हैं. लंबी बीमारियों को दूर करने की दिशा में भी यह काम करता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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