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झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 : लोगों में नेताओं का आकर्षण भी हुआ कम

रांची के लोगों का दूसरे शहरों में प्रवास भी है एक प्रमुख वजह रांची : रांची के कम वोटिंग होने के कारणों में मौजूदा जन प्रतिनिधि तथा उनके खिलाफ खड़े विपक्ष के विभिन्न उम्मीदवारों में कम आकर्षण होना भी एक कारण है. यानी इससे वोट देने के उत्साह में कमी आयी. सरकारी कर्मी रातू रोड […]

रांची के लोगों का दूसरे शहरों में प्रवास भी है एक प्रमुख वजह
रांची : रांची के कम वोटिंग होने के कारणों में मौजूदा जन प्रतिनिधि तथा उनके खिलाफ खड़े विपक्ष के विभिन्न उम्मीदवारों में कम आकर्षण होना भी एक कारण है.
यानी इससे वोट देने के उत्साह में कमी आयी. सरकारी कर्मी रातू रोड के वी कुमार ने कहा कि मौजूदा जन प्रतिनिधि के काम से नाखुश उनके मुहल्ले के कई परिवार वोट नहीं देने गये. विपक्ष का कोई धारदार उम्मीदवार न होना भी वोटरों की उदासीनता का कारण रहा.
लोगों को लगा कि इस स्थिति में बूथ जाकर भी क्या करें. अलबत्ता वह घर से ही नहीं निकले. अर्थशास्त्री डॉ हरिश्वर दयाल ने भी इससे मिलती-जुलती बात कही. उन्होंने कहा कि इनकंबेंसी तथा एंटी इनकंबेंसी दोनों फैक्टर कमजोर व आकर्षण हीन रहने से लगता है लोगों ने मतदान नहीं किया. यह भी एक तरह से नोटा (नन अॉफ द एवब) का ही रूप है.
समाज शास्त्री प्रो प्रभात कुमार सिंह का मानना है कि पढ़े-लिखे लोग अॉन टेबल पॉलिटिकल बातें तो करते हैं, पर उनमें पॉलिटिकल कमिटमेंट (राजनीतिक प्रतिबद्धता) नहीं होता. इसलिए मतदान कम होने में चुनाव आयोग या जिला प्रशासन की कोई गलती नहीं है. बल्कि यह समाज व राजनीतिक दलों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. उन्होंने कहा कि पढ़ाई, कैरियर व पेशे के लिए शहरी लोगों का पलायन भी कम मतदान की वजह है. आप बरियातू, वर्द्धवान कंपाउंड, पीपी कंपाउंड या शहर के अन्य इलाके में पता कर लें. मतदाता सूची में किसी एक परिवार के छह-आठ लोगों के नाम हैं, पर इनमें से दो-तीन ही घर में हैं. शहर की झुग्गियों में रहने वाले श्रमिक वर्ग के लिए भी यह बात सही है. इनमें से बहुत कम लोग मतदान के लिए शहर वापस लौट पाते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता बलराम एक दूसरी बात कहते हैं. खास कर पॉश इलाके के बारे में उनकी राय है कि संभ्रांत इलाके में जीवन जीने की सभी मूलभूत सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, सड़क व अन्य मुहैया होती हैं. सरकार व ब्यूरोक्रेसी में शामिल वहां के लोगों को इससे फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने वोट दिया या नहीं दिया. इसलिए उनमें एक निश्चिंतता का भाव होता है. लिहाजा वह मतदान के मामले में उदासीन रहते हैं. बलराम ने यह भी कहा कि लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने भी माना था कि रांची शहर की मतदाता सूची में हजारों डुप्लीकेसी थी.
देखना होगा कि ऐसे लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाये गये या नहीं. उधर, अशोक नगर की रहने वाली बी कुमार ने कहा कि हालात बदलने को लेकर यहां के लोग भी निराश लगते हैं. वोट नहीं देने वाले कई लोगों से उन्होंने बात की, तो उनका जवाब था कि नथिंग इज गोइंग टू बी चेंज्ड (कुछ बदलने वाला नहीं है). कोल्हान विवि के पूर्व कुलपति प्रो आरपीपी सिंह का भी मानना है कि इस दल से उस दल जाते नेताअों को देख कर लोग असमंजस में हैं. लोगों को लगता है इन पर भरोसा करने से कोई लाभ नहीं. ऐसे में राजनीतिक दलों से जुड़े या बदलाव के लिए प्रतिबद्ध लोग ही वोट देने निकलते हैं.
एक्सआइएसएस के निदेशक प्रो मनोज तिग्गा ने भी कहा कि किसी प्रतिनिधि या सरकार से फर्क नहीं पड़ता तथा आउटपुट के मामले में सब एक है वाली भावना से लोग चुनावी राजनीति से विमुख हो रहे हैं.
इसलिए लोगों ने मतदान के दिन को भी सामान्य अवकाश मान लिया है. पेशे से मनोचिकित्सक एक महिला ने नाम नहीं देने की गुजारिश के साथ कहा कि लोग जन प्रतिनिधि को देख कर भी मतदान करते हैं. अब झारखंड के लोगों ने निर्दलीय सहित लगभग सभी पार्टियों को सरकार में देख लिया. अब इनको लगता है कि कोई आये, क्या फर्क पड़ता है. दूसरी अोर नोटा से भी कोई फर्क नहीं पड़ता.
नोटा एक अोपिनियन (अपना मत या विचार) तो है, पर इससे रिजल्ट पर फर्क नहीं पड़ता. इसलिए लोग मतदान केंद्र जाकर नोटा का बटन दबाने के बजाय घर में रहना पसंद करते हैं. पर बीआइटी के प्रो आरएन गुप्ता इसे लापरवाही व सुस्ती मानते हैं. उन्होंने कहा कि पढ़े-लिखे, शिक्षित व समृद्ध लोग आलसी व स्वार्थी हो गये हैं.
जबकि इन्हीं लोगों से मताधिकार के प्रयोग की उम्मीद की जाती है. शहरों में कम मतदान की यह भी वजह है. सवाल यह भी है कि आखिर ग्रामीण इलाके में मतदान प्रतिशत शहरों से बेहतर क्यों है. इसका जवाब कलाकार दिनेश सिंह ने दिया. कहा कि शहरों में तो लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, कैरियर व पेशेगत समस्याअों में फंसे हुए हैं.
ये सब महंगे व पहुंच के बाहर हो रहे हैं. सरकारें इनका निदान नहीं कर रही. पर गांव में योजनाअों का लाभ साफ दिखाई देता है. मनरेगा, आवास योजना, उज्जवला योजना, खाद्य सुरक्षा व आयुष्मान वहां असर डालता है. लोगों को लगता है कि उन्हें राजनीति से लाभ हो रहा है. इसलिए वह मतदान व बदलाव में भी सक्रिय रहते हैं.

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