।। गुरुस्वरूप मिश्रा ।।
एकल नारियों की एकता
63 वर्षीय सुबला देवी रांची जिले के सिल्ली की रहनेवाली हैं. हर दिन सुबह दस बजे घर से निकलती हैं. विभिन्न गांवों में एकल नारियों को संगठन से जोड़ती हैं और उन्हें हक-अधिकार को लेकर जागरूक भी करती हैं. फिर शाम को घर वापस लौटती हैं. यही इनकी दिनचर्या है. अपने प्रखंड के करीब 67 गांवों में समय-समय पर भ्रमण करती रहती हैं और जरूरत पड़ने पर सदस्यों को आवश्यक परामर्श भी देती हैं. फिलहाल 1200 सदस्य हैं. वह कहती हैं कि अधिक से अधिक सदस्यों को संगठन से जोड़ने का प्रयास करती रहती हैं, ताकि कोई भी एकल नारी खुद को अकेली नहीं समझे.
निरक्षरों को बनायीं साक्षर
सातवीं बोर्ड तक पढ़ीं सुबला देवी कहती हैं कि ये सफर वर्ष 1996 से शुरू हुआ है. ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति की बैठक थी. उसमें ग्रामीणों की सहमति से मुझे चुना गया था. वह गांव की पढ़ी-लिखी महिला थीं. इस कारण अक्सर घर से बाहर के सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगीं. वर्ष 1999 में एकता महिला मंच से जुड़ी. इसके जरिये उन्हें महिलाओं को जागरूक करने का मौका मिला. प्रौढ़ शिक्षा के तहत लोगों को अपने घर पर पढ़ाने भी लगीं. साक्षर बनाने लगीं. इससे उनका आत्मविश्वास धीरे-धीरे बढ़ने लगा. वर्ष 2001 में इनके सेवानिवृत्त फौजी पति जगन्नाथ महतो का निधन हो गया था. सब कुछ सामान्य होने के बाद वर्ष 2005 में वह फिर से एकल नारी सशक्ति संगठन के माध्यम से एकल नारियों का हौसला बढ़ाने में लग गयीं.
बढ़ा आत्मविश्वास
पहले सिल्ली, राहे और सोनाहातू प्रखंड के गांवों में घूम-घूम कर कार्य करती थीं. अब सिर्फ सिल्ली में विधवा समेत अन्य एकल नारियों को जागरूक करती हैं. प्रखंड बैठक, पंचायत बैठक और ग्रामीणों के साथ बैठक करती हैं. विधवा सम्मेलन, विधिक जागरूकता कार्यक्रम, महिला हिंसा दिवस और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आयोजित किये जाते हैं. इसके जरिये न सिर्फ इनके नीरस जीवन को सरस बनाने की कोशिश की जाती है, बल्कि इनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है.
परामर्श ही नहीं, अन्य मदद भी करती हूं : सुबला देवी
सुबला देवी कहती हैं कि बेहतरी के लिए जागरूकता जरूरी है. एकल नारियों में इसकी कमी होती है, लेकिन तस्वीर पहले से बदली है. संगठन की जांच कमेटी जमीन विवाद समेत अन्य मामलों को आपसी सहमति से सुलझाती है. विधवाओं को अक्सर डायन बिसाही के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है. जमीन-जायदाद पर अवैध कब्जा कर लिया जाता है. ऐसे में इन्हें परामर्श ही नहीं, मदद भी करती हूं. एक विधवा के घर पर रिश्तेदारों ने अवैध कब्जा कर लिया था. संगठन की महिलाओं ने हस्तक्षेप कर उस घर को कब्जामुक्त कराया था.