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विस नियुक्ति घोटाला : सात वर्ष में दो लोगों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति

2012 में गवर्नर ने जांच शुरू करने का दिया था िनर्देश , दो आयोग बने रांची : विधानसभा में नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच शुरू होने के सात वर्ष बाद पहली कार्रवाई हुई है़ पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के कार्यकाल में पांच सौ से ज्यादा अवैध नियुक्तियां हुई़ं लंबी जांच प्रक्रिया के […]

2012 में गवर्नर ने जांच शुरू करने का दिया था िनर्देश , दो आयोग बने
रांची : विधानसभा में नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच शुरू होने के सात वर्ष बाद पहली कार्रवाई हुई है़ पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी और आलमगीर आलम के कार्यकाल में पांच सौ से ज्यादा अवैध नियुक्तियां हुई़ं लंबी जांच प्रक्रिया के बाद पिछले दिनों विधानसभा के दो संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गयी़ विधानसभा में हुई अवैध नियुक्ति और प्रोन्नति का मामला वर्षों तक लटकता रहा़
वर्ष 2012 में तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी की अनुशंसा पर सरकार ने नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच की कार्रवाई शुरू की़ न्यायमूर्ति लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में आयोग बना़ हालांकि, लोकनाथ प्रसाद जांच पूरी नहीं कर सके. इसके बाद वर्ष 2015 में न्यायमूर्ति विक्रमादित्य प्रसाद को जांच का जिम्मा दिया गया़ तीन वर्षों तक गहन जांच के बाद घोटाले की तह तक पहुंचे़
उन्होंने राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को जुलाई में जांच रिपोर्ट सौंप दी थी़ विक्रमादित्य आयोग ने स्पीकर रहे इंदर सिंह नामधारी, आलमगीर आलम और शशांक शेखर भोक्ता सहित नियुक्ति-प्रोन्नति प्रक्रिया में शामिल विधानसभा के अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने को कहा है़ वहीं, बिहार में गलत तरीके से बहाल हुए सात लोगों को झारखंड में बहाल कर लेने के कारण इनके खिलाफ भी कार्रवाई करने को कहा था़
राज्य बनने के साथ ही विधानसभा में अवैध नियुक्ति का रास्ता खोल दिया : विधानसभा में नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच भले ही वर्ष 2012 से शुरू हुई, लेकिन यह खेल राज्य गठन के बाद से ही शुरू हो गया था़ पहले स्पीकर रहे इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में 274 लोगों को अवैध रूप से बहाल किया गया़ 70 से ज्यादा अनुसेवक केवल पलामू से बहाल किये गये़
वहीं, आलमगीर आलम के कार्यकाल में 150 से ज्यादा सहायक सहित 324 लोगों की अवैध बहाली हो गयी़ इसमें नेताओं व रसूखदार लोगों की चली़ नेताओं के सगे-संबंधी बहाल कर लिये गये़ स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता के कार्यकाल में प्रोन्नति का खेल चला़ सहायक को अफसर बना दिया गया़ राज्यपाल ने प्रोन्नति की जांच भी कराने को कहा़
क्या है विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट में
पूर्व विधानसभा अध्यक्षों सहित साजिश में शामिल कर्मियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज हो़
जांच आयोग ने माना है कि इस प्रक्रिया में उन लोगों की गलती नहीं, जो चाहे किसी भी तरह से बहाल हुए तथा वहां कार्यरत है़ं इसमें नेचुरल जस्टिस का ख्याल रखने की बात कही़
गलत तरीके से प्रोन्नत किये गये लोग डिमोट किये जायें.आयोग ने पूर्व प्रभारी सचिव अमरनाथ झा को बड़ा साजिशकर्ता माना़ कहा कि इसने वह काम किया है, जिसका साहस कम लोग कर सकते हैं.
किस तरह जांच में लग गये सात वर्ष
एक फरवरी 2012 को विधानसभा सचिवालय को राज्यपाल सचिवालय से पत्र मिला. इसमें विधानसभा में हुई नियुक्ति- प्रोन्नति में अनियमितता की बात थी़ तत्कालीन राज्यपाल ने इसकी जांच कराने को कहा.
10 मई 2013 को मंत्रिमंडल सचिवालय व समन्वय विभाग ने एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया. न्यायमूर्ति लोकनाथ प्रसाद अध्यक्ष बने.
आयोग को कमरा व संसाधन उपलब्ध कराने में एक माह का समय लग गया.
लोकनाथ आयोग ने जून 2013 में काम शुरू किया.
राज्य सरकार ने आयोग का कार्यकाल तीन माह से बढ़ा कर एक वर्ष कर दिया.
आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जज लोकनाथ प्रसाद ने एक नवंबर 2013 को इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे का पत्र लंबे समय तक सरकार के पास विचाराधीन रहा़
मई 2015 में जस्टिस विक्रमादित्य को मिला जांच का जिम्मा.
तीन बार आयोग का कार्यकाल बढ़ाया गया.
जुलाई 2018 में जस्टिस विक्रमादित्य ने नियुक्ति-प्रोन्नति घोटाले की जांच रिपोर्ट राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सौंपी.
सितंबर 2018 में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने आयोग से रिपोर्ट मिलने के बाद कार्रवाई की अनुशंसा की़
एक वर्ष बाद दो संयुक्त सचिव को विधानसभा ने नियुक्ति घोटाले में शामिल होने के आरोप के बाद अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी़

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