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आसानी से लाइसेंस हासिल कर लोगों की जान से खेल रहे झोलाछाप डॉक्टर
क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट में हैं कई खामियां, हो रहा फर्जीवाड़ा अस्पताल, नर्सिंग होम और क्लिनिक चलाने के लिए क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट बनाया गया. इसके तहत संचालक को अपने योग्यता प्रमाण पत्र के साथ पंजीयन कराना होता है. लेकिन सिस्टम में मौजूद खामियों का फायदा उठा कर कई झोलाछाप डॉक्टर लाइसेंस हासिल कर ले रहे हैं […]
क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट में हैं कई खामियां, हो रहा फर्जीवाड़ा
अस्पताल, नर्सिंग होम और क्लिनिक चलाने के लिए क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट बनाया गया. इसके तहत संचालक को अपने योग्यता प्रमाण पत्र के साथ पंजीयन कराना होता है. लेकिन सिस्टम में मौजूद खामियों का फायदा उठा कर कई झोलाछाप डॉक्टर लाइसेंस हासिल कर ले रहे हैं और क्लिनिक खोल कर मरीजों की जान से खेल रहे हैं. रातू थाना क्षेत्र के चटकपुर में 27 जुलाई को झोलाछाप डॉक्टर अर्जुन पटेल के गलत इलाज से एक मरीज की मौत इसका ताजा उदाहरण है.
झोलाछाप डॉक्टर के गलत इलाज से रातू के चटकपुर में 27 जुलाई को हुई थी एक मरीज की मौत
आरोपी डॉक्टर ने बाकायदा सिविल सर्जन कार्यालय से हासिल किया है सिंगल प्रैक्टिस का लाइसेंस
उसकी पत्नी भी करती थी मरीजों का इलाज, क्षेत्र में एमबीबीएस एएम की हैसियत थी आरोपी की
राजीव पांडेय
रांची : रातू थाना क्षेत्र के चटकपुर में झोलाछाप डाॅक्टर अर्जुन पटेल ने रांची सिविल सर्जन कार्यालय के क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट विंग में अपने क्लिनिक का पंजीयन कराया था. करीब दो साल से वह खुलेआम डॉक्टर बन कर मरीजाें का इलाज कर रहा था. क्षेत्र में उसकी पकड़ एमबीबीएस डाॅक्टर के रूप में बन गयी थी. वह खुद तो इलाज करता ही था, उसकी पत्नी भी मरीजों की सूई और दवाई देती थी.
जानकारी के अनुसार सदर अस्पताल कार्यालय में क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट की जो सूची उपलब्ध है, उसमें आज भी अर्जुन पटेल और उसके क्लिनिक का नाम 175वें नंबर पर दर्ज है. सूची के अनुसार अर्जुन पटेल एलोपैथिक डॉक्टर है और सिंगल प्रैक्टिस करता है. हालांकि, उसके क्लिनिक के पंजीयन की वैधता 30 जून 2019 को समाप्त हो चुकी है. सूत्र बताते हैं कि राजधानी में 600 से ज्यादा ऐसे अस्पताल, क्लिनिक और नर्सिंग होम हैं, जो क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत पंजीकृत हैं. यह आशंका है कि इसमें से तीन दर्जन से ज्यादा क्लिनिक फर्जी रूप से चल रहे हैं.
इस तरह होता है पंजीयन
रांची सिविल सर्जन कार्यालय में क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट विंग है. यहां ऑनलाइन आवेदन किया जाता है, जिसमें अस्पताल, नर्सिंग होम और क्लिनिक चलाने के इच्छुक डॉक्टर को अपना रजिस्ट्रेशन नंबर देना होता है. बेड के हिसाब से उन्हें शुल्क भी देना होता है. इसके बाद पंजीयन स्वीकृत कर लाइसेंस जारी कर उसी साइट के जरिये आवेदक के पास प्रोविजनल सर्टिफिकेट पहुंचा दिया जाता है.
सिस्टम में यहां होती है चूक
इस सिस्टम की सबसे बड़ी खामी यह है कि रांची सिविल सर्जन कार्यालय में क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट जब भी कोई आवेदन आता है, तो शुरुआत में उसके संबंधित आवेदनों की जांच नहीं की जाती है. आवेदक द्वारा उपलब्ध कराये गये दस्तावेज के आधार पर ही उसे लाइसेंस जारी कर दिया जाता है. किसी भी डॉक्टर या क्लिनिक की जांच तभी की जाती है, जब उसके खिलाफ किसी तरह की शिकायत आती है.
आइएमए की सबसे शर्मनाक स्थिति
इस पूरे मामले में सबसे शर्मनाक स्थिति इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) की है. जब भी किसी डॉक्टर पर कोई संकट आता है, तो वह पूरे राज्य में हड़ताल और प्रदर्शन शुरू कर देता है. लेकिन झोलाछाप डॉक्टरों को बेरोकटोक प्रैक्टिस का लाइसेंस मिलने और उसकी वजह से किसी मरीज मौत होने पर आइएमए की बोलती बंद हो जाती है. सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि झोलाछाप डॉक्टर कई बड़े डॉक्टरों के रेफरल की तरह काम करते हैं.
क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत झोलाछाप डॉक्टर को लाइसेंस कैसे मिला, इसकी जांच की जायेगी. बहुत हद तक संभव है कि आवेदन के समय आरोपी ने जरूर किसी बड़े डॉक्टर या क्लिनिक का रजिस्ट्रेशन नंबर दिया होगा. मंगलवार को इस पूरे मामले की जांच करायी जायेगी. इस मामले में जिस स्तर पर जो भी दोषी पाया जायेगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.
डॉ वीवी प्रसाद, सिविल सर्जन, रांची
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