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रांची : 52 साल में मात्र आठ निर्दलीय ही जीत सके हैं आम चुनाव

मनोज सिंह रांची : 1967 और उसके बाद के आम चुनाव को देखें, तो करीब 52 साल में झारखंड और संयुक्त बिहार के समय के इस इलाकेवाली लोकसभा सीटों से अब तक मात्र आठ निर्दलीय प्रत्याशी ही चुनाव जीत कर सांसद बन सके हैं. 1967 के लोकसभा चुनाव से पूर्व सीटों का बंटवारा कुछ अलग […]

मनोज सिंह

रांची : 1967 और उसके बाद के आम चुनाव को देखें, तो करीब 52 साल में झारखंड और संयुक्त बिहार के समय के इस इलाकेवाली लोकसभा सीटों से अब तक मात्र आठ निर्दलीय प्रत्याशी ही चुनाव जीत कर सांसद बन सके हैं.

1967 के लोकसभा चुनाव से पूर्व सीटों का बंटवारा कुछ अलग तरीके का था. कई सीटों से दो-दो सांसद चुने जाते थे. झारखंडवाले इलाके में निर्दलीय प्रत्याशियों के चुनाव जीतने का इतिहास बहुत समृद्ध नहीं रहा है. झारखंड में 2009 में दो निर्दलीय सांसद चुने गये थे. झारखंड की राजनीति के कई नामचीन चेहरे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतर चुके हैं. कई बार तकनीकी कारणों से भी दल के प्रत्याशियों को सिंबल नहीं मिल पाया था. इसके बाद उनको निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा था. 1967 के लोकसभा चुनाव में तीन प्रत्याशी निर्दलीय सांसद के रूप में चुने गये थे.

चतरा से वी राजे जीती थीं. हजारीबाग सीट का नेतृत्व निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बीएन सिंह ने किया था. सिंहभूम से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कोलाई बिरुआ जीते थे, जबकि गिरिडीह से एमएस ओबेराय करीब तीन हजार मतों से हार कर दूसरे स्थान पर थे. श्री ओबेराय ने भी यहां से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था. मासस के टिकट पर धनबाद का कई बार नेतृत्व करने वाले वामपंथी नेता एके राय भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत चुके हैं.

1977 में उन्होंने धनबाद सीट पर कांग्रेस के रामनारायण शर्मा को हराया था. मजेदार बात है कि इस चुनाव में श्री राय को 2,05,495 तथा श्री शर्मा को मात्र 63,646 मत मिला था. इस सीट पर श्री शर्मा के अतिरिक्त राजनीतिक दलों से एकमात्र सीपीअाइ के प्रत्याशी मैदान में थे. 12 में से शेष 10 प्रत्याशी निर्दलीय थे. झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा गये हैं. चतरा संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व उन्होंने 2009 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किया था. श्री नामधारी 22.86 मत लाकर पहले स्थान पर थे. उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी धीरज साहू को हराया था. यहां से भाजपा ने अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं किया था.

इसी साल झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी निर्दलीय चुनाव जीते थे. भाजपा से टिकट नहीं मिलने के बाद वह निर्दलीय चुनाव लड़ कर विधायक बने थे. इसी समय वह मुख्यमंत्री भी बनें. मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद वह लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सिंहभूम से चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में उन्होंने भाजपा के बड़कुंवर गगरई को हराया था. 1998 में टाटा स्टील के पूर्व चेयरमैन रूसी मोदी भी जमशेदपुर से चुनाव लड़ चुके हैं. वह भाजपा की आभा महतो से हार गये थे.

1967 में जीते थे तीन सांसद, प्रदेश में 2009 के बाद से किसी निर्दलीय प्रत्याशी को नहीं मिली है जीत

तीर-धनुष से ही जीते थे शिबू, बाद में बना पार्टी का सिंबल : शिबू सोरेन 1980 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दुमका से चुनाव जीते थे. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी पृथ्वीचंद्र किस्कू को हराया था.

इस चुनाव में शिबू सोरेन को करीब 1,12,160 मत मिला था. इस वक्त झारखंड मुक्ति मोरचा गठन हो गया था. लेकिन, पार्टी को चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिली थी. उस वक्त तीर-धनुष फ्री सिंबल था. यही सिंबल श्री सोरेन को मिला था. बाद में यही झामुमो का अधिकृत चुनाव चिह्न भी बना. 1980 के विधानसभा चुनाव में इसी सिंबल से झामुमो ने चुनाव लड़ा था.

जो निर्दलीय अब तक जीते

वर्ष सीट नाम

1967 चतरा विजया राजे

1967 हजारीबाग बीएन सिंह

1967 सिंहभूम के बिरुआ

1971 खूंटी एनइ होरो

1977 धनबाद एके राय

1980 दुमका शिबू सोरेन

2009 चतरा इंदर सिंह नामधारी

2009 सिंहभूम मधु कोड़ा

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