साहित्यकार, ट्रेड यूनियन लीडर, विधायक, आंदोलनकारी जैसी बहुआयामी शख्सियत वाली रमणिका गुप्ता का निधन मंगलवार को दिल्ली में हो गया. जीवन के अंतिम समय तक वे लेखन व समाज सेवा से जुड़ी रहीं. रमणिका गुप्ता पंजाब में जन्मी थीं, लेकिन उनका कर्मक्षेत्र झारखंड/बिहार रहा. हालांकि, उनके व्यापक कार्यों का फलक पूरे देश के स्तर पर रहा. उनके निधन पर साहित्यकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों ने शोक जताया है.
झारखंड को बनाया कर्मभूमि
डॉ रमणिका गुप्ता को मेरी श्रद्धांजलि. उन्होंने जो पत्रिका निकाली थी ‘युद्धरत आम आदमी’ वह काफी बढ़िया काम रहा. उनका एक और बड़ा काम था भारतीय भाषा लोक सर्वेच्छण जो कई वॉल्यूम में है. इसका 13वां वॉल्यूम झारखंड की भाषाअों पर है.
इसमें झारखंड की 18 भाषाअों का विस्तृत विवरण है. इस 13 वें वॉल्यूम का संपादन रमणिका जी ने किया था. उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें एक अौर चर्चित पुस्तक रही-आदिवासी विकास से विस्थापन. रणणिका फाउंडेशन के तहत उनके किये गये कामों सदैव याद किये जायेंगे. उन्होंने राजनीति में भी अपना अहम योगदान दिया. आदिवासी महिलाअों अौर समाज से जुड़े मुद्दे के लिए काम किया. वे पंजाब में जन्मी पर कर्मभूमि झारखंड ही रही.
पूर्व प्रो एचके सिंह, एक्सआइएसएस
समर्पित भाव से काम किया
रमणिका जी से मेरा परिचय स्व डॉ रामदयाल मुंडा के जरिये हुआ था. तब वे झारखंडी लोक संस्कृति और भाषा को लेकर काम कर रही थीं. उन्होंने आदिवासी समाज के अस्तित्व और आत्मनिर्णय में अपना अहम योगदान दिया. झारखंडी भाषाअों अौर साहित्य को लेकर प्रकाशन के क्षेत्र में उन्होंने जितना काम किया उतना किसी अौर ने नहीं किया.
गैरआदिवासी होते हुए भी उन्होंने समर्पित भाव से आदिवासी समाज अौर मुद्दों को लेकर काम किया. मुझे याद है कि वर्ष 2018 की शुरुआत में दिल्ली स्थित उनके आवास पर मेरी उनसे अंतिम मुलाकात हुई थी. तब वे अस्वस्थ चल रही थीं. उन्होंने जो काम किया है, उनके हम हमेशा ऋणी रहेंगे.
डॉ संजय बसु मलिक
आंदोलन में उनका योगदान हमेशा याद रहेगा
रमणिका गुप्ता झारखंड के कोयला क्षेत्र की जानी मानी ट्रेड यूनियन नेता, दलित-आदिवासियों के मुद्दों पर संघर्ष करनेवाली एवं इन्हीं मुद्दों पर कलम का इस्तेमाल करनेवाली सुप्रसिद्ध लेखिका थीं. पूर्व में यह एनसीओइए की संरक्षिका भी रह चुकी हैं. झारखंड के ट्रेड यूनियन आंदोलन में हमेशा उनके योगदान को याद किया जायेगा. एनसीओइए अपने भूतपूर्व संरक्षक और दलित आदिवासी आंदोलन की नेत्री रमणिक गुप्ता के निधन पर गहरी संवेदना प्रकट करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
आरपी सिंह, महामंत्री, एनसीओइए
आदिवासी लेखकों की डायरेक्टरी बनाना चाहती थीं
रमणिका जी से मेरा काफी आत्मीय परिचय रहा. रमणिका फाउंडेशन अौर आदिवासी साहित्यिक मंच के जरिये आदिवासी साहित्य के क्षेत्र में काफी अच्छा काम हुआ था. देश के कई हिस्से में कई कार्यक्रम भी आयोजित हुए. उनकी एक बड़ी इच्छा थी कि देशभर के आदिवासी लेखकों की डायरेक्टरी बने. उसका एक हिस्सा का काम हो चुका था. उन्होंने जो काम किया, वह हमेशा प्रेरणास्रोत बना रहेगा.
महादेव टोप्पो, साहित्यकार
एक आंदोलन ने इन्हें बना दिया पानी की रानी
रमणिका गुप्ता ने 1968 में महिला कांग्रेस में शामिल होकर राजनीतिक सफर की शुरुआत की. गोमिया के खुदगड्डा गांव में पानी को लेकर इन्होंने आंदोलन किया. इस आंदोलन के कारण वह पानी की रानी के नाम से मशहूर हुईं. बाद में वह मजदूर संगठन इंटक के संपर्क में आयीं. 1972 से हजारीबाग में स्थायी रूप से रहने लगीं. 1974 से 1977 तक हजारीबाग जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रहीं. दो बार बिहार विधान परिषद की सदस्य चुनी गयीं. 1980 में मांडू विधानसभा से जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ीं और पूर्व मंत्री तपेश्वर देव को पराजित किया. स्व गुप्ता कोयला मजदूरों के लिए संघर्ष करती रहीं. इनकी पहचान कोयला क्षेत्र में एक बड़े मजदूर नेता के रूप में हुई.
महाश्वेता देवी के समतुल्य थीं रमणिका : मेघनाथ
झारखंड के फिल्मकार मेघनाथ ने कहा कि रमणिका जी का जाना मेरे लिए निजी क्षति है. बात 2003 की है. मैं, रामदयला मुंडा और रमणिका जी एशिया सोशल फोरम के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए हैदराबाद पहुंचे थे. कार्यक्रम के दौरान ही उदघोषणा हुई कि मेघनाथ और रामदायाल मुंडा जी जहां कहीं भी हों, तत्काल उदघोषणा स्थल पर पहुंचे. हम जब वहां पहुंचे, तो पता चला कि रमणिका जी को हार्ट अटैक आया है और वे हैदराबाद स्थित अपोलो अस्पताल में भर्ती हैं.
हम दोनों तत्काल अस्पताल पहुंचे और पूरी रात रमणिका जी के साथ रहे. दो-तीन दिन बाद वे स्वस्थ होकर वहां से निकलीं. रमणिका जी जन्म से आदिवासी नहीं थीं, लेकिन बुद्धिजीवी आदिवासी के रूप में उन्होंने पूरे भारत के आदिवासियों को एक सूत्र में पिरोया और 88 वर्ष की उम्र तक काम करती रहीं. उनकी लेखनी उन्हें महाश्वेता देवी के समतुल्य बनाती है.
रमणिका गुप्ता के निधन पर जसम ने किया शोक व्यक्त
रांची : साहित्यकार रमणिका गुप्ता के निधन पर झारखंड जन संस्कृति मंच (जसम) ने गहरा शोक व्यक्त किया है. मंच के सदस्यों ने कहा है कि वर्तमान समय में देश की प्रगतिशील जन सांस्कृतिक व देशज सांस्कृतिक धारा के लिए अपूरणीय क्षति है. नारी मुक्ति के साथ-साथ आदिवासी साहित्य स्वर को व्यापक समाज में लाने के उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. शोक व्यक्त करनेवालों में मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष साहित्यकार रविभूषण, उपाध्यक्ष कवि शंभु बादल, कवि विद्याभूषण, राज्य संयोजक जेवियर कुजूर, सोनी तिरिया जय, सानिका मुंडा, गौतम सिंह मुंडा, जावेद इस्लाम, प्रो बलभद्र, रविरंजन, लालदीप गोप आदि शामिल हैं.
रमणिका का नहीं होना दुखद उनके जैसा जीवट नहीं देखा
तकरीबन 20 वर्ष पूर्व उनसे परिचय हुआ. उन्होंने पहले दलित साहित्य को लेकर काफी काम किया. झारखंड में हजारीबाग से उनका काफी लगाव रहा. फिर वे दिल्ली चली गयीं. दिल्ली में ही रमणिका फाउंडेशन की स्थापना की. दिल्ली में रहकर वे और अधिक सक्रिय हो गयीं. बाद में उन्होंने खुद को दलित विमर्श से आदिवासी विमर्श की अोर शिफ्ट कर लिया. उनकी एक जो खासियत थी वह थकने वाली महिला नहीं थीं. मैंने उनके जैसा काम करने वाली और जीवट महिला नहीं देखा. उनका नहीं होना दुखद है. उनकी अंतिम लेख कोलकाता से प्रकाशित होनेवाली त्रैमासिक पत्रिका मुक्तांचल में छपी है. उन्हें श्रद्धांजलि.
रविभूषण, आलोचक
सीटू ने रमणिका गुप्ता को दी श्रद्धांजलि
रांची. सीटू ने साहित्यकार रमणिका गुप्ता को श्रद्धांजलि दी है. सीटू के महासचिव प्रकाश विप्लव ने कहा है कि 70 के दशक में उन्होंने मांडू विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया था. वह बहुआयामी प्रतिभा की धनी थीं. राजनीतिक जीवन की शुरुआत धनबाद वह हजारीबाग के कोयला खदानों के मजदूरों के शोषण के खिलाफ किया था. इस दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमला भी किया गया. वह श्रमिक संघ की लोकप्रिय नेत्री रहीं.