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जब तक जीवित रहे, उनकी जुबान पर सिर्फ और सिर्फ झारखंड ही रहा

संतोष किड़ो लाल रणविजय नाथ शाहदेव (झारखंड आंदोलन के प्रथम चरण के अंतिम आंदोलनकारी) अब इस दुनिया में नहीं हैं, पर उनकी स्मृति झारखंड के हर जन मानस में सदा के लिए बसी रहेगी और उनकी संघर्षशील आत्मा हर झारखंडी को ललकारती और ऊर्जा देती रहेगी. लाल रणविजय नाथ शाहदेव जब तक जीवित रहे, उनकी […]

संतोष किड़ो

लाल रणविजय नाथ शाहदेव (झारखंड आंदोलन के प्रथम चरण के अंतिम आंदोलनकारी) अब इस दुनिया में नहीं हैं, पर उनकी स्मृति झारखंड के हर जन मानस में सदा के लिए बसी रहेगी और उनकी संघर्षशील आत्मा हर झारखंडी को ललकारती और ऊर्जा देती रहेगी.

लाल रणविजय नाथ शाहदेव जब तक जीवित रहे, उनकी जुबान पर सिर्फ और सिर्फ झारखंड ही हुआ करता था. वे सदा कहा करते थे कि झारखंड तो भेतालक, लेकिन हमर सपना केर झारखंड एखनो अवेक बाकी आहे (झारखंड तो मिला, लेकिन हमारे सपनों का झारखंड अभी आना बाकी है).

लाल रणविजय नाथ शाहदेव का जन्म 1940 में उस समय हुआ था, जब जयपल सिंह दो दशक बाद छोटानागपुर लौटे थे और आदिवासी महासभा का नेतृत्व संभाले थे. पूरे छोटानागपुर में लोगों के मन और दिल में अलग प्रांत के लिए पक्की सोच जन्म ले रही थी. हम जब जयपाल सिंह की जीवनी लिख रहे थे, तो हमारा उनसे कई बार मिलना हुआ. पहली साक्षात्कार में उन्होंने हमें बताया कि उनको पालकोट से रांची खुद जयपाल सिंह ही लेकर आये थे. वे उस समय मात्र 17 साल के थे. उस समय से जयपाल सिंह के साथ झारखंड आंदोलन में कूद पड़े. लाल रणविजय नाथ नि:स्वार्थ राजनीति के लिए जाने जायेंगे. उनके वर्तमान घर का अवलोकन ही इसका प्रमाण है.

वे एक स्वाभाविक कवि थे. कल्पनाशीलता और सृजनशीलता से भरे पड़े थे. उन्होंने कई नागपुरी गीतों की रचना भी की है. वे एक व्यक्ति मात्र नहीं, बल्कि एक सोच थे, एक विचार थे व एक संघर्ष थे. इस महान व्यक्तित्व को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि.

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं

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