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रांची : शाह ब्रदर्स मामले में कुछ भी गलत नहीं हुआ
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की ओर से एसीबी में प्राथमिकी दर्ज करने के आवेदन दिये जाने पर महाधिवक्ता बोले रांची : मेसर्स शाह ब्रदर्स के माइनिंग मामले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा एसीबी में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दिये गये आवेदन को लेकर महाधिवक्ता अजीत कुमार ने कहा है कि इस मामले में कहीं […]
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की ओर से एसीबी में प्राथमिकी दर्ज करने के आवेदन दिये जाने पर महाधिवक्ता बोले
रांची : मेसर्स शाह ब्रदर्स के माइनिंग मामले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा एसीबी में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दिये गये आवेदन को लेकर महाधिवक्ता अजीत कुमार ने कहा है कि इस मामले में कहीं कुछ भी गलत नहीं हुआ है. झारखंड हाइकोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित किया है. आदेश के अनुसार राज्य सरकार द्वारा डिमांड की गयी राशि को किस्तों में भुगतान करने को कहा गया है. शाह ब्रदर्स ने किस्त का भुगतान भी किया है.
मामला हाइकोर्ट में लंबित है. 26 नवंबर को फाइनल सुनवाई की तिथि निर्धारित है. कोर्ट के आदेश पर कुछ कहना उचित नहीं होगा, लेकिन दुर्भाग्य है कि अधूरी जानकारी व गलत तथ्य पेश कर दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है. महाधिवक्ता श्री कुमार बुधवार को अपने आवास पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
सरकार की ओर से मांगी गयी राशि का भुगतान सुनिश्चित कराना कैसे गलत हो गया
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा मांगी गयी राशि का भुगतान सुनिश्चित कराना कहां से गलत हो गया. पूर्व में भी हाइकोर्ट ने इस तरह के कई मामलों में आदेश पारित किया है, जिसमें डिमांड राशि के विरुद्ध अधिकतम 10 प्रतिशत या 33 प्रतिशत की राशि भुगतान करने की शर्त पर माइनिंग चालान निर्गत करने का आदेश दिया गया है.
स्थगनादेश भी पारित किया गया है. शाह ब्रदर्स व एनकेपीके के मामले में सुनवाई के दाैरान मेरे लिए तो सुविधाजनक था कि पूर्व के आदेश का हवाला देते हुए आदेश पारित करवा लेता, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. राज्यहित व लोगों के हित में मैंने डिमांड राशि के पूर्ण भुगतान का आदेश पारित करवाने में सफलता प्राप्त की. कोर्ट ने पूरी राशि किस्तों में भुगतान करने का आदेश दिया.
कई मामलों में अंतिम निर्णय होना अभी बाकी
महाधिवक्ता ने यह भी कहा कि हिंडाल्को के आठ माइंस के मामले में 300 करोड़ की मांग थी. 33 प्रतिशत (90 करोड़) राशि भुगतान करने तथा स्टे आदेश दिया था. माइनिंग चालान भी निर्गत करने को कहा था. सेल के माइंस के मामले में 1400 करोड़ के विरुद्ध 200 करोड़ के भुगतान करने पर माइनिंग चालान निर्गत करने का आदेश दिया गया. कोल इंडिया के लगभग 5000 करोड़ से अधिक की मांग थी. पूर्ण राशि पर खनन ट्रिब्यूनल ने स्टे आदेश पारित किया है.
उपरोक्त मामलों में कोर्ट ने आदेश पारित किया है कि प्रार्थियों को माइनिंग चालान निर्गत किये जाते रहेंगे एवं किसी भी परिस्थिति में बंद नहीं किये जायेंगे, जब तक कि न्यायादेश में कोई परिवर्तन नहीं हो. इसके बाद मामला खंडपीठ में रेफर हो गया. खंडपीठ को यह निर्णय लेना है कि क्या कॉमन कॉज के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किये गये निर्णय के आधार पर राज्य सरकार उक्त राशि की वसूली का अधिकार है या नहीं. मामलो में अंतिम निर्णय होना अभी बाकी है.
यह कहना कि राज्य का अहित हुआ, दिग्भ्रमित करने जैसा
महाधिवक्ता ने यह भी कहा कि वर्ष 2013 में कांग्रेस समर्थित सरकार थी. उसने क्या किया. कांग्रेस को मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिए थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राशि की गणना करने का आदेश खनन ट्रिब्यूनल ने पारित किया था. उसके बाद राशि घटायी गयी थी. उन्होंने संबंधित मामले में खनन ट्रिब्यूनल में सरकार की अोर से कभी उपस्थित होकर पक्ष नहीं रखा है. मामला न्यायालय में लंबित है.
फैसला खनन पट्टाधारियों के पक्ष में हुआ, तो सरकार को भुगतान की गयी राशि वापस करनी पड़ सकती है. यदि फैसला सरकार के पक्ष में गया, तो भुगतान की गयी राशि के साथ-साथ उस पर ब्याज भी वसूला जा सकता है. अंतरिम आदेश के आलोक में भुगतान होना सरकार के पक्ष में है. यह पूरी तरह से राज्यहित में है. इसलिए यह कहना कि शाह ब्रदर्स के मामले में राज्य का अहित हुआ है, जनता को दिग्भ्रमित करने जैसा है.
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