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रांची : आदिवासी अपनी मातृभाषा के साथ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय भाषा में भी लिखने की पहल करें

आत्मकथा ‘बियोंड द जंगल’ के 50 साल पूरे होने पर सेमिनार, बिशप निर्मल मिंज ने कहा देशजों में प्रथम नागरिक कौन है, इसका जवाब देने के लिए आदिवासियों को आगे आना होगा रांची : इरुला आदिवासी समुदाय की सीता रत्नमाला द्वारा अंग्रेजी में लिखी आत्मकथा ‘बियोंड द जंगल’ के 50 साल पूरे होने पर झारखंडी […]

आत्मकथा ‘बियोंड द जंगल’ के 50 साल पूरे होने पर सेमिनार, बिशप निर्मल मिंज ने कहा
देशजों में प्रथम नागरिक कौन है, इसका जवाब देने के लिए आदिवासियों को आगे आना होगा
रांची : इरुला आदिवासी समुदाय की सीता रत्नमाला द्वारा अंग्रेजी में लिखी आत्मकथा ‘बियोंड द जंगल’ के 50 साल पूरे होने पर झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा द्वारा रांची प्रेस क्लब में सेमिनार का आयोजन किया गया़
इस अवसर पर ‘बियोंड द जंगल’ का हिंदी अनुवाद ‘जंगल से आगे’ का लोकार्पण भी हुआ़ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि बिशप डॉ निर्मल मिंज ने कहा कि आदिवासियों को जरूर लिखना चाहिए़ उन्हें अपनी मातृभाषा, राष्ट्रीय भाषा हिंदी व अंतरराष्ट्रीय भाषा में लिखना है़ इसके लिए तीनों भाषाओं में पारंगत होना होगा़ जंगल से बाहर निकलने के क्रम में कुछ धक्का-मुक्की भी होगी, जिसके लिए तैयार रहना चाहिए़
आदिवासी मातृभाषा को लिखित स्वरूप देने का काम मिशनरियों ने किया : उन्होंने कहा कि आदिवासी मातृभाषा को लिखित स्वरूप देने का काम मिशनरियों ने किया है़ यदि मिशनरी यहां नहीं आये होते, तो पीओ बडिंग की संथाली, जेबी हॉफमैन की इंसाइक्लोपीडिया मुंडारिका और फरदीनंद हान का कुड़ुख व्याकरण कौन लिखता? इन भाषाओं का लिखित रूप कैसे होता? छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम किसने लिखा? यदि हाॅफमैन नहीं होते तो कौन लिखता? आपकी जगह-जमीन बचाने के लिए सरकार के सामने किसने प्लीड किया था? पर आज उनके बारे में जिस तरह की बातें उठायी जा रही हैं, वह झारखंडी समाज के लिए अच्छी बात नहीं है़ उन्होंने कहा कि झारखंड में आदिवासी और कुड़मी-महतो में टकराव हो गया है़ वे मरने का रास्ता क्यों अपना रहे हैं? आपसी बातचीत जरूरी है़ पूर्व में जिस तरह जिंदगी व्यतीत करते थे, उसे देखते हुए साथ चलने का प्रयास करे़ं
आदिवासियों का दिल, दिमाग व दर्शन एक होना जरूरी : उन्होंने कहा कि पूरे देश के आदिवासियों को अपना अस्तित्व व अस्मिता को ठीक से रखने के लिए खड़े होने की जरूरत है़ आज इतिहास को बदलने का काम हो रहा है़
देशजों में प्रथम नागरिक कौन है? इसका जवाब देने के लिए आदिवासियों को आगे आना होगा़ उन्हें डॉ रामदयाल मुंडा की तरह कहना होगा कि हम यहां के प्रथम नागरिक हैं. इस संघर्ष के लिए आदिवासियों का दिल, दिमाग और दर्शन, तीनों एक होने चाहिए़ ‘द हिंदू’ में प्रकाशित नवीनतम पुरातात्विक प्रमाण बताते हैं कि घास वाले मैदानों से आनेवाले मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के बाद आये हैं. आदिवासी लेखकों के लिए जरूरी है कि तथ्यों की गहराई में जायें और तीनों भाषाओं में इन बातों को दुनिया के सामने रखे़ं
यदि जानना चाहते हैं कि सभ्यता क्या है, तो आदिवासियों से सीखें
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में जंगल के पार : आदिवासी आत्म कथाकार विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे़ डॉ जोसफ बाड़ा ने जयपाल सिंह मुंडा के ‘लो बिर सेंदरा’ के आधार पर कहा कि जयपाल सिंह ने संविधान सभा में आदिवासी शब्द के लिए पूरी शिद्दत से लड़ाई लड़ी थी़
उन्होंने कहा था कि यदि आदिवासियों की सुरक्षा चाहते हैं, तो उनके इलाके में बाहरी आबादी का प्रवेश नहीं होना चाहिए़ उनके अधिकार सुरक्षित रखने चाहिए़ आदिवासियों को असभ्य बोलना गलत है़ यदि जानना चाहते हैं कि सभ्यता क्या है, तो आदिवासियों से सीखे़ं पर उनकी बातों को कमजोर करते हुए शामिल किया गया़ जवाहर लाल नेहरू के पंचशील सिद्धांत दरअसल जयपाल सिंह मुंडा की अवधारणाएं थीं.
डॉ हीरा मीना ने मेरी कॉम के आत्म संस्मरण ‘मेरी कहानी’ के आधार पर कहा कि मेरी कॉम ने अभावों व विषम परिस्थितियों को भी अपनी अक्षय ऊर्जा का स्रोत बनाया़ ज्योति लकड़ा ने ‘बियांड द जंगल’ पर कहा कि कई मूल्य व धाराएं हो सकती हैं, पर व्यक्ति का खुद का मूल्य बोध भी होना चाहिए़ जब अपनी मिट्टी की खाद व पानी से सशक्त होंगे, तो जीत भी हासिल करेंगे़ं
इसके अतिरिक्त सावित्री बड़ाइक ने नजुबाई गावित के आत्म संस्मरण, आइवी हंसदा ने आदिवासी बिट्वीन मेमोयर एंड ऑटोबायोग्राफी, ग्लैडसन डुंगडुंग ने तेमसुला अओ के आत्म संस्मरण, सुंदर मनोज हेम्ब्रम ने संताली आत्मकथात्मक संस्मरणों व अश्विनी कुमार पंकज ने वेंकट रमन के संस्मरण पर अपने विचार रखे़ कार्यक्रम का संचालन वंदना टेटे, अंजु टोप्पो, चंद्रमोहन किस्कू व डाॅ शांति खलखो ने किया़

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