21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सुसाइड नोट में खुद की बर्बादी और बदनामी के लिए किसलय मिश्रा को ठहराया जिम्मेदार

रांची : दीपक मिश्रा ने सुसाइड नोट में अपने परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के पीछे जहां अपने बेटे की बीमारी में होने वाले खर्च को बताया है, वहीं दूसरी ओर धोखाधड़ी के मामले में बदनामी के लिए किसलय मिश्रा को जिम्मेदार ठहराया है. किसलय मिश्रा, दीपक झा के साथ मेन रोड स्थित ऐसीलिएंट […]

रांची : दीपक मिश्रा ने सुसाइड नोट में अपने परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के पीछे जहां अपने बेटे की बीमारी में होने वाले खर्च को बताया है, वहीं दूसरी ओर धोखाधड़ी के मामले में बदनामी के लिए किसलय मिश्रा को जिम्मेदार ठहराया है. किसलय मिश्रा, दीपक झा के साथ मेन रोड स्थित ऐसीलिएंट फर्नीचर नामक दुकान में काम करता था.
इस दुकान में गोदरेज कंपनी का फर्नीचर बेचा जाता है. दीपक ने अपने सुसाइड नोट में किसलय मिश्रा को माफ करने का अनुरोध किया है. जबकि उसके भाई रूपेश ने मौत के लिए किसलय को जिम्मेदार ठहराते हुए उसे सजा दिलाने की मांग की है. मालूम हो कि किसलय के खिलाफ 27 जुलाई को ऐसीलिएंट फर्नीचर के संचालक हर्षवर्द्धन जैन ने भी धोखाधड़ी के आरोप में लोअर बाजार थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी थी. पुलिस की टीम उसे बंगाल के पार्क स्ट्रीट थाना क्षेत्र से गिरफ्तार कर रविवार को न्यायिक हिरासत में जेल भेज चुकी है.
क्या लिखा है दीपक झा के सुसाइड नोट में
दीपक झा ने लिखा है कि साल 2011 में पिता सच्चिदानंद झा पतरातू में रेलवे से रिटायर हो गये. इसके बाद परिवार रांची आ गया. वर्ष 2011 से 2015 तक दीपक बेरोजगारी से परेशान रहा. बाद में कंसलटेंसी के जरिए उसे गोदरेज में स्टोर मैनेजर की नौकरी मिली. छोटे भाई रूपेश को बीई लिमिटेड फार्मा में नौकरी मिली थी. लेकिन वह कुछ दिनों बाद ही बेरोजगार हो गया. पिता के रिटायरमेंट के बाद पूरे परिवार का खर्च का जिम्मा उस पर आ गया. दीपक ने आगे लिखा है कि वह 12 हजार की मासिक पर काम करता था.
9 जून 2017 को उसके बेटे का जन्म हुआ. जन्म के बाद से ही उसका सिर बड़ा था. इसलिए उसका इलाज रानी चिल्ड्रेन अस्पताल में कराने लगा. उसके इलाज में करीब 25 लाख रुपये खर्च हो गये. इलाज के लिए पिता के रिटायरमेंट का पूरा पैसा, मां, पत्नी के सारे जेवरात तक बेच डाले. गांव की जमीन भी बेचनी पड़ी. लेकिन बेटे जंगू की बीमारी ठीक नहीं हो सकी.
उसने बेटे के इलाज के लिए अपने दोस्त और परिचित से भी पैसे लिये. जहां एक ओर बेटे के इलाज और परिवार के खर्च का बोझ दीपक पर था. वहीं दूसरी ओर प्रति माह रेंट देना, घर का खर्च देना और बेटी दृष्टि की पढ़ाई के खर्च की जिम्मेदारी की बोझ से दीपक परेशान रहने लगा. सुसाइड नोट में आगे दीपक ने लिखा है कि बेटे के इलाज के लिए उसने ग्राहकों के साथ-साथ स्कूल के दोस्तों व अपने मालिक से कर्ज लिया. 13 मार्च को उसकी शादी की सालगिरह थी.
तब उसके पास पैसे नहीं थे. ऐसे में उसने 2 हजार रुपये एडवांस लिया था. 25 मार्च को पत्नी के बर्थ डे के दिन भी उसने पांच हजार का कर्ज मोरहाबादी में रहने वाले एक सीबीआइ अधिकारी जो उसके ग्राहक थे, से उधार लिया था.
किसलय से दाेस्ती के बाद बढ़ती गयी परेशानी
दीपक ने सुसाइड नोट में यह भी लिखा है कि जमशेदपुर के किसलय मिश्रा नामक व्यक्ति से कुछ माह पहले उसकी दोस्ती हुई थी. वह भी गोदरेज में काम करने आया था. शुरुआती दिनों जब किसलय के पास पैसे नहीं थे, तब दीपक ने उसे पैसे से भी मदद की थी. खाने के लिए भी दिया और कभी-कभी अपने घर ले जाकर भी खाना खिला देता था. इसके बाद दीपक ने उसकी अच्छी दोस्ती हो गयी थी. किसलय को उसने अपने क्रेडिट कार्ड से मोबाइल खरीद कर दिया.
वह भी अपने पहचान पत्र पर. इसके बाद किसलय ने उसे पैसे कमाने का उपाय भी सुझाया. दीपक ने लिखा है कि किसलय और अजीत के कहने पर वह कस्टमर्स को डिस्काउंट के पैसे नहीं देता था. पूरी ब्रिकी पर एमआरपी पर पैसे लेकर वह डिस्काउंट के पैसे रख लेते था. डिस्काउंट का पैसा आपस में बांट लिया जाता था.
दीपक ने लिखा है कि दोस्ती में उसने मोबाइल व बाइक क्रेडिट कार्ड पर किसलय को दिलवाया था, लेकिन किसलय ने मंथली इंस्टालमेंट नहीं दिया. इएमआइ का दिया गया चेक जब बाउंस हो गया, तब रिकवरी एजेंट उसके घर आ गये. रिकवरी एजेंट दीपक को भला- बुरा कहने लगे. तब परिवार के सामने उसे बेइज्जती का सामना करना पड़ा था.
इस घटना को लेकर परिवार को काफी आघात पहुंचा था. तब उसकी मां ने पुराने पीतल और कांसा के बर्तन बेच कर रुपये चुकाये. इस बात को लेकर दीपक के भाई रूपेश ने किसलय को काफी भला-बुरा भी कहा था. जिसका वह बदला लेना चाहता था. लेकिन किसलय और दीपक की नजदीकियां बनी रही. किसलय ने कंपनी में काम करते हुए ग्राहकों से ठगी के लिए उपाय निकाला. किसलय ने बाद में ग्राहकों से फर्नीचर बुकिंग के पैसे लेकर उन्हें डिलिवरी नहीं दी.
किसलय ने कैसे दिया धोखा
दीपक की सुसाइड नोट के अनुसार किसलय ने कोडरमा और गढ़वा के दो ग्राहकों से पैसे लिए थे. इसके लिए झांसा देकर वह रूपेश को भी साथ ले गया था. ठगी के मामले में पुलिस ने जब किसलय को गिरफ्तार किया तब वह शोरूम संचालक के साथ लोअर बाजार थाने 29 जुलाई को गया था. वहां हाजत में बंद किसलय ने आरोप लगा दिया कि ठगी के 2.70 लाख उसने दीपक और रूपेश को दिये हैं.
हालांकि दीपक ने लिखा है कि वह धोखाधड़ी में शामिल नहीं था. क्योंकि धोखाधड़ी में ज्यादा रुपये मिलते, तो वह रुपये लेकर क्यों नहीं भागता. धोखाधड़ी के बाद रुपये लेकर तो किसलय भागा था. दीपक के अनुसार इस घटना के बाद मालिक ने उसे चार तमाचा मार कर माफ कर दिया, लेकिन वह बदनाम हो गया. इसके बावजूद उसने सुसाइड नोट में दीपक को माफ करने के लिए कहा है. उसने अपने सुसाइड नोट में उन 15 लोगों के नाम और उनके लिये रकम का भी जिक्र किया है. जिनसे उसने उधार में लिये थे. इसके अलावा उसके कुछ अन्य लोगों के नाम भी लिखे हैं.
हर कमरे में फांसी लगाने की हुई थी कोशिश
रांची. सामूहिक आत्महत्या के संबंध में मौके वारदात पर जो चीजें थी वह यह बयान कर रही थी कि आत्महत्या एक कमरे में नहीं बल्कि अलग-अलग कमरों में किये जाने की कोशिश की गयी थी. क्योंकि एक कमरे में दीपक झा पंखे से फंदे के सहारे लटका हुआ था. उसी कमरे में उसकी पत्नी, बेटी, बेटा और मां-बाप का शव पड़ा था.
जिस पर चादर डाला हुआ था. जबकि दूसरे कमरे में छोटा भाई पंखे के सहारे फंदे से झूल रहा था. जबकि रसोईघर व एक अन्य कमरे में भी रस्सी का फंदा लटका हुआ था. जिसे देख कर लगता था कि इन दोनों जगहों पर भी फंदे से लटकने की कोशिश की गयी थी, लेकिन फंदा कमजोर होने की वजह से टूट गया था.
क्रोमेटोफोबिया का शिकार तो नहीं था झा परिवार
रांची . एक ही परिवार के सात लोगों की मौत ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. जानकार बताते हैं कि कहीं पूरा परिवार खासकर उसका मुखिया क्रोमेटोफोबिया से तो पी़ड़ित नहीं था. क्रोमेटोफोबिया यानी पैसे काे लेकर डर. पश्चिमी देशों में तो कर्ज के डर से हर पांच में एक व्यक्ति पीड़ित है, लेकिन अपने देश में इस तरह का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.
जिसके सिर पर कर्ज का बोझ हो वह क्रोमेटोफोबिया से प्रभावित हो सकता है और इस मनोवैज्ञानिक हालात में वह खुदकुशी जैसा कदम भी उठा सकता है. आमतौर पर इस फोबिया यानी डर से वह लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं जिनके पास धन की तंगी होती है. मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कई बार ज्यादा धन भी इस फोबिया का कारण बनता है. मसलन, कोई बच्चा अगर अपने मां-बाप को पैसे के लिए लड़ते-झगड़ते देखे तो बड़ा होकर उसके मन में पैसे को लेकर निगेटिव धारण बैठ जायेगी और वह क्रोमेटोफोबिया का शिकार हो सकता है.
नकारात्मक सोच के कारण आत्महत्या
रांची. हाल के दिनों में आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ी है़ं कांके में हुई घटना में भी हो सकता है कि आर्थिक परेशानी के कारण लोग डिप्रेशन में चले गये होंगे. इसे एक दिन का प्लान नहीं कह सकते. ऐसी घटना प्लानिंग के तहत होती है़ पहले घर के बड़े मिल कर परेशानी का समाधान निकालते थे. आज परेशानी से बचने के लिए व्यक्ति को हत्या या आत्महत्या करना ही आसान लगता है़
बड़ों की प्लानिंग में छोटों को भी हामी भरनी पड़ जाती है़ इसे कंट्रैक्चुअल सुसाइड कह सकते है़ं यानी नकारात्मक सोच के कारण आत्महत्या करना. ऐसी घटना का एक कारण यह भी है कि व्यक्ति समाज या अपने रिश्तेदारों से कोई बात शेयर नहीं कर पाता है और दूसरी होने वाली घटना से प्रेरित हो जाता है़ आर्थिक परेशानी, बदनामी और बीमारी के कारण अवसाद में चला जाता है़ जिससे निकलने का एकमात्र कारण आत्महत्या को उचित समझ लेता है.
डॉ अमूल रंजन, मनोचिकित्सक
पत्नी का हाथ बांधने के बाद दीपक ने बच्चों को मार डाला
रांची. दीपक झा जब अपने बेटे और बेटी का गला दबा कर हत्या करने का प्रयास करने लगा, तब उसकी पत्नी ने इसका विरोध किया था. लेकिन दीपक ने बच्चों की हत्या करने से पहले पत्नी सोनी देवी की हत्या कर दी थी. इस बात की आशंका पुलिस को इस बात से है कि जब पुलिस ने सोनी देवी का शव बरामद किया, तब उसके हाथ बंधे हुए थे.
साथ ही बच्चाें को जहर देने की बात भी सामने आयी है़ क्याेंकि घटना के पहले सभी ने खाना खाया था और बच्चों के नाक और मुंह से झाग निकला हुआ था़ एेसे में संभावना है कि खाने में उन्हें जहर दिया गया था़ पुलिस सूत्रों के अनुसार यह भी संभव हो सकता है कि सोनी देवी अपने बच्चों को जीवित छोड़ देना चाहती थी. लेकिन दीपक ने सोचा होगा कि परिवार के सभी सदस्यों की मौत के बाद दोनों की देखभाल कौन करेगा. इसलिए उसने दोनों बच्चों की हत्या कर दी.
पुलिस सूत्रों के अनुसार शवों को देखने से ऐसा लगता है कि सभी अपनी मर्जी से मरने के लिए तैयार भी नहीं थे. लेकिन रूपेश झा मानता था कि उसके परिवार की जो आर्थिक स्थिति है उसके पीछे सभी लोग कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं. क्योंकि रूपेश झा की नौकरी छूट चुकी थी. वह बेरोजगार था. इसलिए वह अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने में अपने भाई का सहयोग नहीं कर पा रहा था. इसलिए उसने भी परिवार के अन्य सदस्यों की हत्या में अपने भाई का साथ दिया होगा.
पुलिस को आशंका इस बिंदु पर भी है कि दीपक और रूपेश ने पिता सच्चिदानंद को किसी दूसरे कमरे में गला दबा कर मारने की कोशिश की होगी. क्योंकि गला दबाने के बावजूद जब उनकी मौत नहीं हुई, तो उनके गले पर भी हमला किया गया होगा. जबकि गायत्री देवी और सोनी देवी को गला दबा कर ही मारा गया था. पुलिस को यह भी आशंका है कि संभवत: दोनों भाइयों के अलावा परिवार का कोई सदस्य मरना ही नहीं चाहता था. इसलिए दोनों ने मिल कर उनकी हत्या कर दी. इसके बाद खुद फांसी लगा ली.
सामूहिक आत्महत्या की घटना चिंतनीय : झाविमो
रांची. झाविमो प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप सिंह ने कहा है कि कांके में एक ही परिवार के सात लोगों की सामूहिक आत्महत्या का मामला काफी दु:खद है़ यह घटना समाज व सरकार के लिए एक चिंतनीय विषय भी है़ जानकारी के मुताबिक इस परिवार ने आर्थिक तंगी की वजह से यह खौफनाक कदम उठाया है़ इससे समझा जा सकता है कि हालात कितने भयावह हैं कि लोग पूरे परिवार के साथ आत्महत्या तक करने को मजबूर हो रहे है़ं
एक माह के अंदर झारखंड में इस प्रकार की यह दूसरी घटना है़ देश से गरीबी दूर करने में भाजपा सरकार नीतियां बनाने में पूरी तरह फेल रही है़ जीएसटी व नोटबंदी की दोहरी मार ने व्यापार व व्यापारियों को परेशान कर रखा है़ पहले ही दर्जन भर से अधिक लोग भुखमरी की बलि बेदी पर चढ़ चुके हैं. अब इस प्रकार की घटनाओं का चलन राज्य के लिए कतई अच्छे संकेत नहीं है़ं
दीपक के पैतृक गांव में पसरा सन्नाटा, सदमे में हैं रिश्तेदार
मुंगेर. दीपक झा सहित परिवार के सात सदस्यों की मौत की सूचना के बाद पैतृक गांव मुंगेर जिले के बरियारपुर थाना क्षेत्र स्थित चिरैयाबाद गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है. हर कोई हैरान है. ग्रामीणों के अनुसार दीपक ने पैतृक गांव स्थित जमीन के साथ-साथ घर तक को बेच दिया था और पूरा परिवार रांची में ही एक साथ किराये के मकान में रहता था.
पांच साल से रांची में रहता था दीपक का पूरा परिवार
चिरैयाबाद निवासी दीपक झा के पिता सच्चिदानंद झा डीजल शेड पतरातू में रेलवे में नौकरी करते थे, जो पांच साल पूर्व सेवानिवृत्त हो गये थे. ग्रामीणों के अनुसार पिता की सेवानिवृत्ति के बाद दीपक माता-पिता के साथ पतरातू से रांची आ गया. यहीं पर किराये के मकान में पिता शशि झा, माता गायत्री देवी, पत्नी सोनी देवी, बहन संध्या कुमारी उर्फ निक्की कुमारी, छोटा भाई रूपेश झा तथा पांच साल की पुत्री व एक साल के पुत्र के साथ रहने लगा.
कर्ज के बोझ तले दबे होने की आशंका
दीपक के पड़ोसी राधाकांत झा ने बताया कि दीपक तथा उसके पिता सच्चिदानंद ने अपने खर्च पर कभी लगाम नहीं लगाया. सच्चिदानंद के रिटायरमेंट के बाद आमदनी तो घट गयी, लेकिन खर्च में कमी नहीं आयी. ऐसे में पूरी संभावना है खर्च को पूरा करने के चक्कर में पूरा परिवार कर्ज के बोझ तले दब चुका था.
हो सकता है कि कर्ज की अदायगी करने में अक्षम हो जाने तथा डिप्रेशन में आ जाने के कारण सबों ने एक साथ आत्महत्या का रास्ता अख्तियार किया हो. वहीं ग्रामीण निरंजन झा ने बताया कि शशि झा के साथ-साथ दीपक झा नशे के आदि थे. दीपक तथा रूपेश के पास कोई काम नहीं था. दोनों पिता की पेंशन पर ही आश्रित थे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें