रांची: बिजली बोर्ड के बंटवारे के बाद बनी चारों कंपनियों का कामकाज ठप है. केवल रूटीन के काम हो रहे हैं. बड़ी परियोजनाओं पर कोई काम नहीं हो रहा है. यह स्थिति छह जनवरी के बाद से ही है.
इसी दिन झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड का बंटवारा कर चार कंपनियों में बांटा गया था. पर बंटवारे के लिए पहले से पूरी तरह तैयारी नहीं की गयी थी. न तो बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की सूची पूरी की गयी थी और न ही कंपनियों में एमडी की नियुक्ति हुई थी. केवल झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड में सीएमडी के रूप में एसएन वर्मा को व झारखंड संचरण निगम लिमिटेड में बीएस झा को एमडी नियुक्त किया गया था. उत्पादन व वितरण कंपनियों में एमडी की नियुक्ति नहीं की गयी थी.
निदेशक मंडल की वजह से नहीं हो पा रहा है काम : बिजली कंपनियों को बड़ा ठेका फाइनल करना हो या राशि स्वीकृत करनी हो, इसका फैसला निदेशक मंडल ही ले सकता है. पर स्थिति यह है कि बिजली कंपनियों के निदेशक मंडल का पूर्ण रूप से गठन ही नहीं हो सका. पहले वित्त सचिव के रूप में सुखदेव सिंह और ऊर्जा सचिव के रूप में विमल कीर्ति सिंह को निदेशक मंडल में रखा गया था. वित्त सचिव सीएम के प्रधान सचिव बन गये. वहीं विमल कीर्ति सिंह ने वीआरएस ले लिया. यही वजह रही कि निदेशक मंडल की बैठक नहीं हो सकी और बोर्ड में कोई काम नहीं हो पा रहा है. बताया गया कि नये निदेशक के लिए कंपनियों के ऑर्टिकल ऑफ एसोसिएशन में संशोधन किया गया. संशोधन में निदेशक मंडल में नाम के बजाय पदनाम को रखा गया. इसकी मंजूरी भी शनिवार को हुई कैबिनेट में बैठक में दे दी गयी.
न खरीदारी हो रही, न नये टेंडर आमंत्रित किये जा रहे
बिजली कंपनियों द्वारा केवल रूटीन के सामान्य काम किये जा रहे हैं. न तो उपकरणों की खरीदारी की जा रही है और न ही नये टेंडर ही आमंत्रित किये जा रहे हैं. इसके चलते पतरातू पावर प्लांट की परियोजना फंसी हुई है. भवनाथपुर पावर प्लांट को लेकर भी कोई निर्णय नहीं हो पा रहा है. पीजीसीआइएल को 400 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान नहीं हो पा रहा है. कंपनी दिसंबर माह से काम बंद कर चुकी है. बिजली कंपनियों के टैरिफ निर्धारण के लिए आयोग द्वारा मांगी जा रही जानकारी भी निदेशक मंडल की वजह से लंबित है.