रांची : वनवासी कल्याण केंद्र ने धर्मांतरित जनजातियों का आरक्षण (मूल रूढ़ीवादी जनजाति के आरक्षण का दोहरा लाभ लेने वाले) खत्म करने के राज्य सरकार के फैसला का स्वागत किया है. सोमवार को आरोग्य भवन स्थित केंद्र के कार्यालय में अधिवक्ता निर्मल मुंडा, जेठा नाग, रिझू कच्छप, डॉ सुखी उरांव व अन्य ने कहा कि रूढ़ीवादी सनातन परंपरा को मानने वाली जनजाति का 80 फीसदी आरक्षण का लाभ धर्मांतरित (ईसाई) जनजाति के लोग उठा रहे हैं. यह संवैधानिक रूप से गलत है. उक्त लोगों ने कहा कि ईसाई और सनातन धर्म मानने वाली जनजातियों के बीच धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से काेई संबंध नहीं है़
जनजातियों की जीवनशैली, रीति-रिवाज, धर्म-संस्कृति व परंपरा ही भारत की संस्कृति और धर्म है़ सरना की पूजा करने वाले व प्रकृति की पूजा करने वाले सभी हिंदू जीवन पद्धति के ही मुख्य भाग है़ं रूढ़िवादी जनजातियाें की धर्म-संस्कृति ही हिंदुस्तान की धर्म-संस्कृति है़ 28 जनवरी 2004 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि किसी व्यक्ति को संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 के परिपेक्ष्य के भीतर लाये जाने के पूर्व उसे जनजाति से संबंधित होना चाहिए़ यदि एक भिन्न धर्म में धर्मांतरण के कारण वह अथवा उसके पूर्वज रूढ़ि अनुष्ठान और अन्य परंपराओं का पालन नहीं कर रहे हैं, तो उसे जनजाति का सदस्य स्वीकार नहीं किया जा सकता़