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रांची : फैसले से ठीक पहले लालू ने दायर की याचिका, एजी के 3 अधिकारियों को भी आरोपी बनाने की मांग की, टला जजमेंट
रांची : चारा घोटाले के कांड संख्या 38ए/96 में पूर्व निर्धारित तिथि 15 मार्च को फैसला सुनाये जाने से पूर्व सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत में लालू प्रसाद ने महालेखाकार कार्यालय के तीन अधिकारियों को अारोपी बनाने के लिए याचिका दायर कर दी. लालू की याचिका के बाद विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह […]
रांची : चारा घोटाले के कांड संख्या 38ए/96 में पूर्व निर्धारित तिथि 15 मार्च को फैसला सुनाये जाने से पूर्व सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत में लालू प्रसाद ने महालेखाकार कार्यालय के तीन अधिकारियों को अारोपी बनाने के लिए याचिका दायर कर दी.
लालू की याचिका के बाद विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने फैसला टाल दिया. इस मामले में एजी को अभियुक्त बनाये जाने के बिंदु पर फैसले के लिए 16 मार्च की तिथि तय कर दी. साथ ही लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र सहित अन्य 31 आरोपियों के खिलाफ फैसला सुनाने के लिए 16 मार्च को ही नयी तिथि निर्धारित करने की बात कही.
लालू की ओर से दायर की गयी दो याचिका : गुरुवार को न्यायालय की कार्यवाही शुरू होते ही लालू प्रसाद की ओर से दो याचिका दायर की गयी. पहली याचिका में चारा घोटाले की अवधि में एकीकृत बिहार के महालेखाकार रहे पीके मुखोपाध्याय, उप महालेखाकार बीएन झा और सीनियर डायरेक्टर जनरल प्रमोद कुमार को भी आरोपी बनाने के लिए सीआरपीसी की धारा 319 के तहत नोटिस जारी करने का अनुरोध किया गया.
दूसरी याचिका में एजी के मामले में फैसला होने तक आरसी 38ए/96 में जजमेंट नहीं सुनाने का अनुरोध किया गया. लालू की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के लिए अदालत ने दूसरी पाली का समय निर्धारित किया.
लालू की याचिका में क्या है : दूसरी पाली में लालू प्रसाद की ओर से उनके वकील चितरंजन प्रसाद ने अदालत में कहा कि तत्कालीन अपर वित्त सचिव शंकर प्रसाद जांच के लिए रांची आये थे.
उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि खर्च का ब्योरा एजी को भेजा जा रहा है, लेकिन देवघर के जिला पशुपालन पदाधिकारी मासिक खर्च की रिपोर्ट निदेशालय को नहीं भेज रहे हैं. लालू के वकील ने कहा कि एजी ने एक भी बिल की जांच नहीं की. अगर जांच की होती, तो फर्जी निकासी का मामला पकड़ा जाता.
एजी ने वित्तीय वर्ष 1991-96 की अवधि में जो भी रिपोर्ट पेश की, उसमें बजट के मुकाबले अधिक व्यय की बात कही. एजी ने कभी फर्जी निकासी की बात नहीं कही. सभी रिपोर्ट पूर्व एजी पीके मुखोपाध्याय, उप महालेखाकार बीएन झा और सीनियर डायरेक्टर जनरल प्रमोद कुमार के हस्ताक्षर से जारी की गयी थी. इसलिए इन अधिकारियों को भी अभियुक्त बनाया जाये. दलील सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने पूछा कि एजी ऑफिस के संबंधित अधिकारी नौकरी में हैं या रिटायर हो गये. इन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति कौन लायेगा.
इस पर लालू के वकील की ओर से कहा गया कि सीबीआइ अभियोजन स्वीकृति लायेगी. इतना सुनना के बाद न्यायाधीश ने कहा कि सीबीआइ तो नहीं चाहती है कि एजी के अधिकारी अभियुक्त बने, इसलिए वह कैसे लायेगी. जब आपके पिटिशन पर कार्रवाई होगी, तो उनका पता वगैरह सब आपको ही बताना पड़ेगा.
सीबीआइ ने किया विरोध : अधिवक्ता राकेश प्रसाद ने अदालत में सीबीआइ का पक्ष रखा. उन्होंने कहा : पिटिशन मेंटेनेबल नहीं है. बचाव पक्ष की ओर से आरसी 20 में सीबीआइ अधिकारी एके झा सहित अन्य की गवाही को उद्धृत किया गया है. इसके लिए सर्टिफाइड कॉपी नहीं दी गयी है.
न ही शपथ पत्र के माध्यम से यह बात कही गयी है कि एके झा ने अपने बयान में यह कहा था कि उन्होंने एजी की भूमिका की जांच नहीं की. एके झा इस मामले में जांच अधिकारी नहीं हैं. इसलिए उनके खिलाफ इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है. बचाव पक्ष ने एजी को अभियुक्त बनाये जाने के मामले में अपने पिटिशन में तथ्यों को छिपाया है. बचाव पक्ष एजी को अभियुक्त बनाये जाने की मांग को लेकर कर दो बार हाइकोर्ट जा चुका है.
पर हाइकोर्ट ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया. पिटिशन में इस तथ्य को छिपाया गया है. एजी ने अपनी रिपोर्ट में बजट से अधिक खर्च का उल्लेख किया था. इसके अलावा नमूना जांच में स्कूटर पर चारा और जानवर ढोने का उल्लेख किया था. चारा घोटाले को बताने के लिए यह काफी था. पर नमूना जांच की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
सीबीआइ की ओर से यह भी कहा गया कि अगर अदालत एजी के अधिकारियों को अभियुक्त बनाने के लिए नोटिस जारी करना चाहती है, तो करे, पर घोटाले के इस मामले में अपना फैसला सुना दे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में नौ महीने में मामलों को निबटाने की समय सीमा तय की है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में नौ माह का समय छह मार्च को पूरा हो गया, इसलिए इस मामले में फैसला टालना उचित नहीं है.
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