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झारखंड : सरकार जनभावना समझती, तो यह नौबत नहीं आती : सुदेश महतो

रांची : आजसू पार्टी के अध्यक्ष व राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश कुमार महतो ने कहा है कि लोकतंत्र हठ से नहीं, जनभावना से चलता है़ संवाद इसका माध्यम है़ स्थानीय नीति में संशोधन की मांग प्रदेश में जनभावना बन चुकी है़ सरकार जनभावना को समझी होती, तो ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं होती़ सरकार […]

रांची : आजसू पार्टी के अध्यक्ष व राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश कुमार महतो ने कहा है कि लोकतंत्र हठ से नहीं, जनभावना से चलता है़ संवाद इसका माध्यम है़ स्थानीय नीति में संशोधन की मांग प्रदेश में जनभावना बन चुकी है़
सरकार जनभावना को समझी होती, तो ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं होती़ सरकार को लाेगाें की भावना का सम्मान करते हुए नीति में तुरंत संशोधन करना चाहिए. यही राज्यहित में होगा़ जनभावना के अनादर से प्रदेश में अराजकता पैदा होती है़
अलग-अलग नीति लोगों के बीच भ्रम पैदा कर रही है : श्री महतो ने कहा कि राज्य गठन के बाद से ही स्थानीयता के मुद्दे पर जनता उद्वेलित थी़ आजसू पार्टी के प्रमुख मुद्दे में स्थानीयता तथा नियोजन नीति शामिल रही है़ पार्टी द्वारा लोक संवाद के माध्यम से सुझाव लेकर सरकार को जनता की भावनाओं से अवगत कराया गया़ 16 मार्च 2016 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष उपवास रख कर सरकार को मामले की गंभीरता का बोध कराया़
उन्होंने कहा कि अगस्त 2016 में वर्तमान सरकार द्वारा स्थानीय नीति बनायी गयी, लेकिन इसमें ऐसा नहीं लगता है कि यह आदिवासियों और मूलवासियों के न्यायपूर्ण हक, अधिकार एवं उनकी भावनाओं को ध्यान में रख कर बनाया गया है़ इसके साथ ही नीति में एकरूपता नहीं है़ राज्य के 13 जिलों और 11 जिलाें में अलग-अलग नीति है़ यह भी झारखंडियों के लिए बड़ा भ्रम खड़ा कर रही है़ ऐसी नीति में मौलिकता नहीं हो सकती है़
संवेदनशील मुद्दे पर सरकार का गंभीर न होना दु:खद : श्री महतो ने कहा कि आजसू पार्टी ने मुख्यमंत्री से मिल कर स्थानीय नीति में त्रुटियों की जानकारी दी़ मुख्यमंत्री की ओर से कोई पहल संशोधन की दिशा में आज तक नहीं की गयी़ आजसू अध्यक्ष ने कहा कि स्थानीय नीति में संशोधन हेतु 8 अगस्त 2016 को निर्मल महतो की शहादत दिवस के अवसर पर ‘जन की बात’ अभियान पूरे प्रदेश में प्रारंभ किया गया़
प्रदेश के 24 जिले में अभियान चलाया गया जो 15 नवंबर भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को समाप्त हुई़ तीन महीने के अभियान के बाद लाखों लोगों ने पोस्टकार्ड भेज कर अपनी भावना से मुख्यमंत्री को अवगत कराया़ वर्तमान विधानसभा के बहुतायत विधायक स्थानीय नीति में संशोधन के पक्ष में है़ चाहे वो सत्ता पक्ष हों या विपक्ष के. इसके बाद भी इतने संवेदनशील मुद्दे पर सरकार का गंभीर न होना दु:खद है़
उन्होंने कहा कि झारखंड के मूलवासी यहां के मौजूदा कानूनों (सीएनटी, एसपीटी एक्ट, विल्किनसन रूल) में वर्णित कास्तकार (जाति एवं जनजाति) पहले से ही चिह्नित हैं. इनको फिर से चिह्नित करने की जरूरत नहीं है़ 1932 का खतियान या अंतिम सर्वे के माध्यम से इनकी स्थानीयता पूर्णत: प्रमाणित है़ दूसरा स्वैच्छिक प्रवासी जो यहां रोजी रोटी, रोजगार, नौकरी के उद्देश्य से राज्य में निवास कर रहे है़
दोनों की अलग-अलग व्याख्या तथा विवेचना की जानी चाहिए़ सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के संदर्भ में झारखंड में सेवा की अवधि और निरंतरता का कोई जिक्र नहीं है़ जबकि अन्य के लिए 30 साल की सीमा और सत्यापन का मानक तय किया गया है़ सरकार को इसमें सुधार करनी चाहिए, क्योंकि अंतिम सर्वे और मैट्रिक का प्रमाणपत्र बराबर मानक नहीं हो सकता है.

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