रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने मंगलवार को राज्य के अभ्यारण्यों व राष्ट्रीय पार्क के आसपास के क्षेत्र को इको सेंसेटिव जोन बनाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अधिकारियों की कार्यशैली पर नाराजगी जतायी. जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दाैरान अधिकारियों की शिथिलता व अधूरे जवाब को गंभीरता से लेते हुए फटकार लगायी.
खंडपीठ ने माैखिक रूप से कहा कि सरकार यदि काम नहीं करेंगी, तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगी. आम लोगों को सरकार के रहमोकरम पर नहीं छोड़ सकते हैं. कानून के अनुसार सिर्फ कागज पर गाइडलाइन लिख देने से ही वन्य प्राणियों का संरक्षण नहीं होनेवाला है. सरकार का जवाब सिर्फ दिखावा है. इस मामले में सरकार गंभीर प्रतीत नहीं होती है. कहा कि कोई भी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी सुरक्षित नहीं है. जंगलों में बाउंड्री-ट्रेंच नहीं है. वन्य प्राणी जंगल से निकल कर मानव आबादी की अोर आ जाते हैं.
इससे जानमाल का नुकसान होता है. वन्य प्राणी भी मारे जाते हैं. खंडपीठ ने यह भी कहा कि राज्य गठन के समय से अधिकारियों ने कुछ काम किया होता, तो उसका परिणाम दिखता. अधिकारियों ने ग्रास रूट स्तर पर कार्य ही नहीं किया है. अधिकारी काम नहीं करेंगे, तो कोर्ट चुपचाप बैठा नहीं रहेगा. अधिकारियों को काम करना होगा. खंडपीठ ने जनहित याचिका के दायरे को बढ़ाते हुए कहा कि दलमा के अलावा किसी भी अभ्यारण्य व नेशनल पार्क को इको सेंसेटिव जोन घोषित नहीं किया जा सका है. केंद्र सरकार ने राज्य के मुख्य वन्य प्राणी प्रतिपालक से पूरी जानकारी मांगी थी, वह जानकारी केंद्र को अब तक नहीं दी गयी है. जानकारी नहीं देेने के कारण इको सेंसेटिव जोन की अधिसूचना जारी होने में विलंब हो सकता है.
खंडपीठ ने सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. दस्तावेज भी प्रस्तुत करने काे कहा़ जवाब में यह भी बताया जाये कि 17 वर्षों में जंगलों व वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए क्या कार्य किये गये आैर परिणाम क्या रहा. मामले की अगली सुनवाई अब नाै अक्तूबर को होगी़ उल्लेखनीय है कि प्रार्थी महेश राय ने जनहित याचिका दायर की है. इसमें कहा गया है कि वन्य प्राणियों व मानव जीवन के संरक्षण के लिए इको सेंसेटिव जोन बनाया जाना चाहिए. याचिका में बाघों के संरक्षण का भी उल्लेख किया गया है.
टिप्पणी से गलत संदेश : महाधिवक्ता
महाधिवक्ता अजीत कुमार ने खंडपीठ को बताया कि प्रार्थी ने अपनी याचिका में इको सेंसेटिव जोन से संबंधित ड्रॉफ्ट नोटिफिकेशन के संबंध में अग्रेतर कार्रवाई में हुए विलंब का विषय उठाया है. उसके जवाब में सरकार ने शपथ पत्र में स्पष्ट रूप से बताया है कि जो ड्रॉफ्ट पॉलिसी याचिका में लगायी गयी है, वह आम जनता से आपत्ति हेतू किया गया प्रकाशन था. पुन: कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने स्पष्ट बताया कि केंद्र सरकार ने ड्रॉफ्ट प्रस्ताव पर आपत्तियां जतायी थी, इसका निराकरण करते हुए पुन: राज्य सरकार ने मई 2017 में प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है. महाधिवक्ता श्री कुमार ने कहा कि सरकार के कार्य के प्रति कोर्ट द्वारा माैखिक टिप्पणी किया जाना उचित नहीं है. परंतु ऐसे मामले में प्रार्थना कोई आैर की गयी है, उसमें अन्य मामले को उठाया जाना सही नहीं है. उन्होंने कहा कि कोर्ट की माैखिक टिप्पणियों को समाचार पत्रों में प्रमुखता देकर प्रकाशित किया जाता है. ऐसे मामलों में भी जहां सरकार अच्छा कार्य कर रही है, वहां गलत संदेश जाता है. कोर्ट को इस संबंध में भी सोचने की जरूरत है. महाधिवक्ता ने कोर्ट द्वारा की गयी माैखिक टिप्पणियों पर आपत्ति जतायी.