रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने एक अनूठी पहल की है. झारखंडमें अब कोई गरीब बेवजह जेल नहीं जायेगा. हर आरोपी और वारंटी को अपने बचाव का पूरा-पूरा मौका मिलेगा. उसे कानूनी मदद भी मिलेगी. इसके लिए उनकी जेब भी ढीली नहीं होगी. व्यवस्था पहले भी थी, लेकिन इसके बारे में किसी को मालूम नहीं था. हाइकोर्ट ने एक निर्देश जारी किया है, जिसमें कहा है कि वारंट या नोटिस जारी करते समय कोर्ट एक परचा भी भेजें, जिसमें स्पष्ट बताया जाये कि उन्हें कहां से कानूनी मदद मिल सकती है.
हाइकोर्ट की इस अनूठी योजना का लाभ राज्य के गरीब लोगों को मिलेगा, जो कानून के पचड़े में फंस कर रह जाते हैं. कानूनी पेचीदगियों की जानकारी के अभाव कई लोग जीवन भर आरोपों से बरी नहीं हो पाते. वहीं, देश में ऐसे भी लोग हैं, जो कानून की बारीकियों की समझ के अभाव में मदद के लिए यहां से वहां भटकते रहते हैं. लेकिन, हाइकोर्ट के ताजा निर्देश के बाद उन्हें पहले दिन से कानूनी मदद मिलने का रास्ता साफ हो जायेगा.
विधिक सहायता केंद्र अब विलेज लीगल केयर व सपोर्ट सेंटर
झारखंड के सभी प्रधान जिला जजों, सत्र न्यायाधीशों और रांची के ज्यूडिशियल कमिश्नर को जारी अपने आदेश में हाइकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने कहा है कि सभी महिलाएं, बच्चे और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोग, कैदी, दिव्यांग, उद्योगों में काम करनेवाले लोग, तस्करी के शिकार लोग, अवांछित इच्छा के शिकार लोग, ऐसे लोग जिनकी आमदनी साल में 1 लाख रुपये से कम है, लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज की धारा 12 के तहत मुफ्त कानूनी सलाह के हकदार होंगे.
इसी तरह, सालाना 5 लाख रुपये तक कमानेवाले लोग झारखंड हाइकोर्ट मिडिल-इनकम ग्रुप लीगल एड स्कीम के तहत झारखंड हाइकोर्ट स्तर पर कानूनी सेवा पाने के हकदार हैं. हाइकोर्ट ने आगे कहा है कि अन्य सभी लोगों को उनकी आय के आधार पर कानूनी सेवा के लिए भुगतान करना होगा. पेड लीगल सर्विस स्कीम फॉर पर्सन्स ऑफ स्पेिसिफाइड केटेगरीज 2017 में इसका ब्योरा दिया गया है.
समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को मिलना चाहिए न्याय
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि झारखंड स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी ने परचा जारी किया है, जिसमें विभिन्न श्रेणियों के लाभुकों के लिए उपलब्ध कानूनी सहायता का विवरण दिया गया है. हाइकोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसमें स्पष्ट कहा गया है कि जिसे नोटिस जारी किया जा रहा है और जो वारंटी हैं, उन्हें यह जानने का हक है कि उन्हें कानूनी सहायता कहां से और कैसे मिल सकती है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी कहा है कि ऐसे लोगों को मध्यस्थता के लाभ के बारे में भी बताया जाना चाहिए.
हाइकोर्ट ने कहा है कि राज्य के सभी अदालतों के साथ-साथ हाइकोर्ट को भी इस प्रक्रिया का पालन करना चाहिए.