भुरकुंडा. विधायक रोशनलाल चौधरी ने विधानसभा सत्र के छठे दिन पीटीपीएस के विस्थापितों के मुद्दे को गंभीरता से उठाया. विधायक ने कहा कि बलकुदारा, रसदा व जयनगर गांव की 432 एकड़ भूमि का अधिग्रहण 1972-73 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत हुआ था. उस वक्त स्थानीय रैयतों ने आपत्ति भी दर्ज करायी थी. जांच में हजारीबाग के तत्कालीन अपर समाहर्ता ने आपत्तियों को सही पाया था. 1984-85 में प्रशासन ने भूमि का मुआवजा 12 से 20 रुपये प्रति डिसमिल निर्धारित कर दिया, जो उस समय की बाजार दर व सरकारी दर से काफी कम थी. इसके अलावा, प्रभावित रैयतों को न तो स्थायी नौकरी दी गयी, न ही पुनर्वास को लेकर कोई ठोस नीति लागू की गयी. रैयतों के विरोध के बावजूद प्रशासन ने भूमि का हस्तांतरण कर दिया. ग्रामीणों ने विरोध स्वरूप मुआवजा नहीं लिया, फिर भी 1996 में इस भूमि को पीटीपीएस को हस्तांतरित कर दिया गया. बाद में इस भूमि में से 340 एकड़ भूमि पीवीयूएनएल को हस्तांतरित कर दी गयी. 2018 तक रैयतों द्वारा इस भूमि पर लगान भुगतान किया जाता रहा. जमीन पर ग्रामीण जोत-आबाद करते रहे. विधायक ने सदन में कहा कि आज भी रैयतों का दावा है कि जमीन पर उनका कब्जा व मालिकाना हक है. इसके बदले वे उचित मुआवजा, पुनर्वास नीति व न्याय की मांग कर रहे हैं. विधायक ने इस मुद्दे पर सरकार से स्पष्ट निर्णय देने की मांग की.
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