Holi 2025: रामगढ़-बसंत पंचमी के आगमन के साथ ही होली के गीत बजने लगते हैं. होली को लेकर उत्साह बढ़ने लगता है. होली सभी पर्व से अलग है. तीन-चार दशक पहले और अब की होली में काफी अंतर आ गया है. होली को लेकर कुछ लोगों ने अपने विचार रखे हैं. इस संबंध में सेवानिवृत्त शिक्षक रामगढ़ निवासी आशुतोष कुमार सिंह ने कहा कि तीन-चार दशक पहले और अब की होली में काफी अंतर आया है. पहले के दौर में होली सिर्फ रंगों का खेल नहीं, बल्कि सामूहिक उत्सव के रूप में मनाया जाता था. लोग समूह में एक-दूसरे के घर जाकर होली खेलते थे. बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने की परंपरा थी. इसमें कमी आयी है. पलाश के फूल, हल्दी, मुल्तानी मिट्टी और प्राकृतिक रंगों की होली होती थी.
होली गीतों में नहीं होती थी अश्लीलता
शिक्षाविद बासुदेव महतो ने कहा कि पहले लोग रंग-अबीर से होली मनाते थे. होली गीत में अश्लीलता नहीं होती थी. अलग-अलग मंडली बना कर ढोल -नगाडा, गीत, रंग-अबीर के साथ होली का पर्व खेला जाता था. नशा सेवन पर नियंत्रण था. अमीर-गरीब एक साथ होली मनाते थे.
हफ्तेभर पहले से होती थी होली की तैयारी
डॉ बीएन ओहदार ने कहा कि तीन दशक पहले की होली की बात ही निराली थी. पहले गांवों की होली शहर की होली से अलग थी. अब गांवों में भी होली की हुड़दंग है. शहर की विकृति का असर गांव तक पहुंच गया है. होली के आगमन के एक सप्ताह पहले से ही इसकी तैयारी होती थी. खोखले बांस से पिचकारी बनायी जाती थी.
अब बड़ों से आशीर्वाद लेने की परंपरा भी लुप्त
नयीसराय शास्त्रीनगर निवासी सीताराम प्रसाद ने कहा कि अब समय के साथ होली का स्वरूप बदल गया है. पहले की तरह आत्मीयता-भाईचारा कम दिखाई देता है. हानिकारक केमिकल रंगों-गुलालों का व्यवहार बढ़ा है. अब बड़ों से आशीर्वाद लेने की परंपरा भी लुप्त हो रही है. 70 वर्षीय बलराम सिंह ने कहा कि तीन-चार दशक पहले बसंत के आगमन के साथ होली का पर्व शुरू होता था. रंग-अबीर उड़ने लगते थे. महीने भर के उमंग के बाद फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन होता था.
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