रांची/भुरकुंडा : परमवीर चक्र विजेता शहीद अलबर्ट एक्का के साथी रहे 1971 युद्ध के सैनिक निर्मल बारला आज बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं. भुरकुंडा के स्लम एरिया न्यू बैरेक के पास सीसीएल द्वारा बनाये गये एक बंकर में जैसे-तैसे अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं. बिहार बटालियन आठ में रहते हुए उन्होंने अलबर्ट एक्का के साथ युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ मोरचा लिया था. सेना में 1961 में बहाल हुए बारला 1977 में सेवानिवृत हो गये.
इसके बाद उन्होंने 1980 में सीसीएल के गिद्दी वाशरी में सुरक्षा कर्मी के रूप में योगदान दिया.
अपनी क्षीण हो चुकी स्मरण शक्ति को झंझोर कर वे सिर्फ इतना बताते हैं कि 1971 के युद्ध में अलबर्ट एक्का से अक्सर उनकी बातचीत होती थी. हालांकि अलबर्ट व उनका बटालियन अलग-अलग था. उन्होंने बताया कि अलबर्ट एक वीर योद्धा थे. देश के लिए हमेशा मर-मिटने को आतुर रहते थे. मूल रूप से रांची जिले के लापुंग प्रखंड, ग्राम चंपी के रहनेवाले बारला के पास गांव में अब कुछ ही जमीन बची है. जहां उनका पुत्र राजेश बारला रहता है.
निर्मल बारला को आर्मी से छह हजार रुपये पेंशन मिलता है. वे इसी पैसे से किसी तरह अपनी दो बच्चियों नीलिमा व अनिमा बारला और पत्नी अगुस्टीना हेंब्रम का भरण-पोषण कर रहे हैं. नीलिमा के पति जयप्रकाश मुंडा आर्मी में हैं. सास-ससुर को वे भी आर्थिक सहयोग करते रहते हैं.
भुरकुंडा में बंकर में रहता है बारला का परिवार
सीसीएल द्वारा पांच दशक पूर्व भुरकुंडा सीएचपी के पास बनाये गये एक जीर्ण-शीर्ण बंकर में निर्मल बारला का पूरा परिवार रहता है. यह बंकर तेज बारिश, ठंडी हवा व तेजी गरमी का एहसास इस परिवार को कराता है.
यहां तक कि इस परिवार को पीने के लिए पानी भी आसपास इलाके से ढो कर लाना पड़ता है. बारला की छोटी बेटी ने पूछने पर बताया कि आज तक उनके सैनिक पिता की सुध लेने सरकारी महकमा से कोई नहीं आया. उसने कहा कि उसके पिता ने देश के दुश्मनों से लोहा लिया. लेकिन सरकार को उनकी कोई फिक्र नहीं है. आज उनके परिवार की जिंदगी मुश्किल से कट रही है.